Gujarat Board GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 5 गलता लोहा Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 5 गलता लोहा
GSEB Class 11 Hindi Solutions गलता लोहा Textbook Questions and Answers
अभ्यास
पाठ के साथ :
प्रश्न 1.
कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है ।
उत्तर :
धनराम अपनी मंदबुद्धि या डर के कारण तेरह का पहाड़ा सुना नहीं सका, तब मास्टर त्रिलोक सिंह बेत का उपयोग करने की बजाय जबान की चाबुक लगाते हुए कहते हैं कि ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे ! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें ?’ अर्थात् उनके पिता में विद्या का ताप लगाने का सामर्थ्य नहीं थी ।
इसीलिए बचपन में ही अपने पुत्र धनराम को धौंकनी फूंकने और सान लगाने के काम में लगा दिया था और धनराम धीरे-धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखने लगा । उपर्युक्त प्रसंग में किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है ।
प्रश्न 2.
धनराम मोहन को अपना प्रतिबंदी क्यों नहीं समझता था ?
उत्तर :
धनराम त्रिलोक सिंह मास्टर के आदेश के कारण कई बार मोहन के हाथों मार खा चुका था । मोहन के प्रति थोड़ी ईर्ष्या रहने पर भी धनराम प्रारंभ से ही मोहन के प्रति स्नेह और आदर का भाव रखता था । बचपन से ही धनराम के मन में जातिगत हीनता का भाव घर कर दिया गया था । दूसरी ओर मोहन होशियार भी था ।
इसीलिए मास्टर जी ने उन्हें मोनीटर बनाया था । औरतों और मास्टर जी बार-बार यह कहते रहते थे कि मोहन एक न एक दिन बड़ा आदमी बनकर स्कूल और उनका नाम रोशन करेगा ! इन सभी कारणों से वह मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानता था ।
प्रश्न 3.
धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है और क्यों ?
उत्तर :
ब्राह्मण शिल्पकारों के टोले में उठते-बैठते नहीं थे । किसी काम से अगर वे उनके यहाँ जाते तो भी वे बैठते नहीं थे, खड़े-खड़े ही बात करते थे । अगर कोई उन्हें बैठने के लिए कहे तो भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध था । जब मोहन धनराम की दुकान पर काफी देर तक बैठता है तभी धनराम अपने काम में सफल नहीं हो पा रहा था ।
यह देखकर मोहन धनराम के हाथ से हथौड़ा लेकर लोहे पर नपी-तुली चौटें मारता है और धौंकनी फूंकते हुए भट्ठी में लोहे को गरम करके उसे ठोक-पीटकर गोल रूप में परिवर्तित कर देता है । मोहन ब्राह्मण होते हुए भी निम्न जाति का काम कर रहा था यह देखकर धनराम को आश्चर्य होता है।
प्रश्न 4.
मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है ?
उत्तर :
मोहन मेधावी और होशियार लड़का था । मास्टर जी का भी मानना था कि यह एक बड़ा आदमी बनेगा । इसीलिए उसके पिता उसे रमेश के साथ लखनऊ भेज देते है । और वहीं से मोहन के जीवन का नया अध्याय शुरू हो जाता है । लखनऊ जाने के बाद मेधावी छात्र की प्रतिभा कुंठित हो जाती है । वहाँ सुबह से शाम तक नौकर की तरह काम करना पड़ता था ।
उसने जो उज्ज्वल भविष्य के सपने देखे थे वे चकनाचूर हो जाते है । अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए मोहन को फैक्टरी और कारखानों के चक्कर काटने पड़ते थे किन्तु फिर भी उन्हें कोई काम नहीं मिला था । इसीलिए लेखक ने मोहन के लखनऊ प्रवास को उसके जीवन का एक नया अध्याय कहा है ।
प्रश्न 5.
मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने ज़बान के चाबुक कहा है और क्यों ?
उत्तर :
धनराम पढ़ाई में कमजोर था तथा बार-बार उन्हें मास्टर जी मोहन के हाथों पिटवाते थे । इसलिए उसमें डर का भाव घर कर गया था । धनराम पूरा दिन घोटा लगाता है फिर भी तेरह का पहाड़ा याद नहीं कर पाया और यह मास्टर जी के सामने तेरह का पहाड़ा सुनाते-सुनाते लड़खड़ा गया । आखिर मास्टर जी बेंत का उपयोग करने के बजाय जबान की चाबुक का उपयोग करते हुए व्यंग्य से कहते हैं – ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे ।
विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें ?’ लेखक ने इसी व्यंग्य वचनों को जबान की चाबुक कहा है । चमड़े की चाबुक शरीर पर चोट करती है किन्तु जबान की चाबुक मन और हृदय पर चोट करती है और यह चोट कभी ठीक नहीं होती । आखिर धनराम पढ़ाई छोड़कर पुश्तैनी काम में लग जाता है ।
प्रश्न 6.
1. बिरादरी का यही सहारा होता है ।
(क) किसने किससे कहा ?
(ख) किस प्रसंग में कहा ?
(ग) किस आशय से कहा ?
(घ) क्या कहानी में यह आशय पूरा हुआ है ?
उत्तर :
(क) यह वाक्य मोहन के पिता वंशीधर ने बिरादरी के संपन्न युवक रमेश से कहा ।
(ख) वंशीधर जब मोहन की पढ़ाई की चिंता रमेश के सामने व्यक्त करते है तब रमेश वंशीधर को सुझाव देते है कि वे मोहन को उसके साथ ही लखनऊ भेज दें ताकि वहाँ अच्छी तरह पढ़-लिख सकेगा ।
(ग) बिरादरी के लोग ही एक-दूसरे की मदद करते है । यह कथन रमेश के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए भी कहा गया।
(घ) नहीं, यह आशय कहानी में पूरा नहीं हो पाया है । क्योंकि रमेश पर जो भरोसा वंशीधर ने किया था वह भरोसा रमेश तोड़ देते है । लखनऊ ले जाकर वे मोहन को नौकर की तरह काम करवाते है । रमेश तथा उसके परिवार ने तेजस्वी एवं मेधावी मोहन का भविष्य चौपट कर दिया, आखिर अंत में उसे बेरोजगार बनाकर घर वापस भेज देते हैं ।
2. उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी – कहानी का यह वाक्य
(क) किसके लिए कहा गया है ?
(ख) किस प्रसंग में कहा गया है ?
(ग) यह पात्र-विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है ?
उत्तर :
(क) यह कथन मोहन के लिए कहा गया है।
(ख) धनराम एक मोटी लोहे की छड़ को गरम करके उसका गोल घेरा बनाने का प्रयास कर रहा था किन्तु सफल नहीं हो पा रहा था । मोहन यह दृश्य देख रहा था । आखिर मोहन अपनी जगह से खड़ा होकर अपनी जाति की परवाह न करके धनराम के हाथ में से हथौड़ा लेकर उस पर नपी-तुली चोट मारकर उसे सुघड़ गोल रूप दे देता है । अभ्यास के साथ साथ मोहन की आँखों में एक सर्जक की चमक थी ।
(ग) ब्राह्मण जाति के लोग कभी शिल्पकार के यहाँ बैठते नहीं थे । मोहन ब्राह्मण का पुत्र होने पर भी अपने बाल सखा धनराम – के आफर पर काम करता है । यही मोहन के जाति-निरपेक्ष व्यवहार को बताता है । साथ ही यह कार्य उसकी बेरोजगारी को भी दर्शाता है तथा मित्र की मदद करने का भाव भी इससे उजागर होता है ।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1.
गाँव और शहर, दोनों जगहों पर चलनेवाले मोहन के जीवन-संघर्ष में क्या फ़र्क है ? चर्चा करें और लिखें ।
उत्तर :
मोहन जब गाँव में पढ़ाई करता था तब वह बहुत ही प्रतिभाशाली तथा मेधावी था । मास्टर जी भी उसकी प्रशंसा करते थकते नहीं थे । किन्तु अधिक पढ़ाई के लिए उन्हें चार मील दूर जाना पड़ता था । नदी पार करनी पड़ती थी । बाढ़ की स्थिति में उन्हें दूसरे गाँव यजमान के घर रहना पड़ता था । इस प्रकार गाँव में उन्हें परिस्थितिजन्य संघर्ष करना पड़ा था ।
जब वह पिताजी के आदेश पर लखनऊ जाता है तो वहाँ उन्हें नौकर की तरह काम करवाया जाता है । उसकी प्रतिभा नष्ट हो जाती है, मेधावी होने पर भी वह पढ़ाई में कमजोर हो जाता है, अंतः वह बेरोजगार बन जाता है । इस प्रकार मोहन को गाँव व शहर दोनों जगह पर संघर्ष करना पड़ा था ।
प्रश्न 2.
एक अध्यापक के रूप में त्रिलोक सिंह का व्यक्तित्व आपको कैसा लगता है ? अपनी समझ में उनकी खूबियों और खामियों पर विचार करें ।
उत्तर :
प्रस्तुत कहानी में मास्टर त्रिलोक सिंह के व्यक्तित्व का अत्याधिक महत्त्व है । उसके व्यक्तित्व में हमें विशेषताएँ और मर्यादाएँ दोनों देखने को मिलती है । विशेषताओं की बात करें तो वे अच्छे अध्यापक की तरह बच्चों को लगन से पढ़ाते थे । वे किसी के. सहयोग के बिना पाठशाला चलाते थे । वे अनुशासन प्रिय हैं तथा दंड के भय के द्वारा बच्चों को पढ़ाते हैं ।
होशियार बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कामना भी वे करते थे । इन सभी लाक्षणिकताओं के बावजूद उसमें कई कमियाँ थी । सबसे बड़ी मर्यादा उसकी जातिगत भेदभाव की भावना थी/ दूसरी ओर वे छात्रों को सख्त दंड देते थे । उसके पसंदीदा छात्र मोहन से सबकी पिटाई करवाते थे । कमजोर छात्रों को ये चमड़े की चाबुक से अधिक ज़बान की चाबुक से कटू बोल बोलकर छात्रों के दिल को ठेस पहुँचाते थे । ऊँच-नीच-जातिगत भेदभाव की उनकी नीति अशोभनीय थी ।
प्रश्न 3.
‘गलता लोहा’ कहानी का अंत एक खास तरीके से होता है । क्या इस कहानी का कोई अन्य अंत हो सकता है ? चर्चा करें ।
उत्तर :
प्रस्तुत कहानी का अंत अस्पष्ट है । क्योंकि लेखक ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि मोहन ने लोहार का व्यवसाय स्थायी तौर पसंद किया हो । मोहन ने लुहार का काम क्या जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए किया ? किन्तु उसमें भी बचपन की मित्रता का पुट भी हो सकता है । कहानी का अन्त निम्न तरीके से भी हो सकता है –
(क) लुहा का काम मोहन द्वारा स्थायी रूप से पसंद करना ।
(ख) मोहन की प्रगति दिखाकर जातिगत भेदभाव को मिटाना ।
(ग) रमेश का गाँव में लौटते ही बिरादरी द्वारा सख्त कदम उठाना ।
(घ) मोहन-धनराम दुबारा मित्रता से जातिगत भेदभाव मिटाना ।
भाषा-अभिव्यक्ति
प्रश्न 1.
पाठ में निम्नलिखित शब्द लौहकर्म से संबंधित हैं । किसका क्या प्रयोजन है शब्द के सामने लिखिए ।
उत्तर :
- धौंकनी – यह आग को सुलगाने का काम करती है ।
- दरांती – यह घास या फसल काटने का काम करती है ।
- सँडसी – यह ठोस वस्तु को पकड़ने का काम करती है ।
- आफर – लुहार की दुकान या भट्ठी ।
- हथौड़ा – ठोस वस्तु पर चोंट करने का औजार है । यह लौहे को पीटता-कूटता है ।
प्रश्न 2.
पाठ में काट-छाँटकर जैसे कई संयुक्त क्रिया शब्दों का प्रयोग हुआ है । कोई पाँच शब्द पाठ में से चुनकर लिजिए और अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
- खा-पीकर – हम लोग खा-पीकर उपवन में टहलने लगे ।
- उठा-पटककर – मैंने गुस्से में आकर घर का सारा सामान उठा-पटककर बिखेर दिया ।
- पढ़-लिखकर – हमारा सपना है कि हम पढ़-लिखकर बड़े अफसर बनेंगे ।
- उलट-पलट – बच्चों ने दुकान का सारा सामान उलट-पलट कर दिया ।
- सहमते-सहमते – इम्तहान में अनुत्तीर्ण होने के कारण विजय सहमते-सहमते घर गया ।
- सुबह-सुबह – सुबह-सुबह आम के पेड़ पर से कोयल की मधुर आवाज सुनाई देती है ।
- पहुँचते-पहुँचते – नदी की धार से निकलकर किनारे पहुँचते-पहुँचते नाव डूब गई ।
- घूम-फिरकर – आज हम बाज़ार में घूम-फिरकर बहुत थक गये थे ।
प्रश्न 3.
बूते का प्रयोग पाठ में तीन स्थानों पर हुआ है उसे छाँटकर लिखिए और जिन संदर्भो में उनका प्रयोग है, उन संदर्भो में उन्हें स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
क. बूढ़ी बंशीधर के बूते का अब यह सब काम नहीं रहा ।
संदर्भ – वृद्ध होने के कारण वंशीधर से खेती का काम नहीं होता यहाँ लेखक स्पष्ट करना चाहते है ।
ख. दान-दक्षिणा के बूते पर वे किसी तरह परिवार का आधा पेट भर पाते थे ।
संदर्भ – यह वंशीधर की दयनीय दशा-गरीबी का वर्णन करता है, साथ ही पुरोहित के व्यवसाय के बल पर वे परिवार के लिए पूरा भोजन भी नहीं जुटा पाते थे ।
ग. सीधी चढ़ाई चढ़ना पुरोहित के बूते की बात नहीं थी।
संदर्भ – वंशीधर वृद्ध हो गए हैं इसी कारण वे पुरोहिताई का काम करने में भी समर्थ नहीं थे । साथ ही सीधी चढ़ाई चढ़ना उनके लिए पहाड़ चढ़ने जितना कठिन है ।
प्रश्न 4.
मोहन ! थोड़ा दही तो ला दे बाज़ार से ।
मोहन ! ये कपड़े धोबी को दे तो आ ।
मोहन ! एक किलो आलू तो ला दे ।
ऊपर के वाक्यों में मोहन को आदेश दिए गए हैं । इन वाक्यों में आप सर्वनाम का इस्तमाल करते हुए उन्हें दुबारा लिखिए ।
उत्तर :
(क) आप बाज़ार से थोड़ा दहीं तो ला दीजिए ।
(ख) आप ये कपड़े धोबी को दे तो आइए ।
(ग) आप एक किलो आलू तो ला दीजिए ।
Hindi Digest Std 11 GSEB गलता लोहा Important Questions and Answers
पाठ के साथ :
प्रश्न 1.
वंशीधर की आँखों में पानी क्यों छलछलाने लगता है ?
उत्तर :
बिरादरी के एक संपन्न परिवार का युवक रमेश लखनऊ से छुट्टियों में गाँव आता है । वंशीधर रमेश के सामने मोहन की पढ़ाई के संबंध में चिंता प्रकट करते है, तब रमेश सहानुभूति दिखाकर वंशीधर को सुझाव देते है कि वे मोहन को उसके साथ लखनऊ भेज दें, वह उसे लखनऊ में मोहन को अच्छी तरह पढ़ाएगा-लिखाएगा । वंशीधर को जैसे रमेश के रूप में साक्षात् भगवान मिल गए हो । रमेश की ऐसी बातें सुनकर वंशीधर की आँखों में पानी छलछलाने लगता है ।
प्रश्न 2.
त्रिलोक सिंह मास्टर ने मोहन के बारे में क्या घोषणा की थी ?
उत्तर :
मोहन पढ़ाई में तेज था और एक तो वह ब्राह्मण था । पढ़ाई में होशियार होने के कारण त्रिलोक सिंह मास्टर ने उन्हें क्लास का मोनीटर बनाया था । मोहन स्कूल प्रार्थना भी करता था तथा मास्टर जी के आदेश से कमजोर और शिस्त में न रहनेवाले बच्चों के कान भी खींचता था । मोहन की तेजस्विता देखकर ही मास्टर जी ने यह घोषणा की थी कि मोहन एक बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल व उनका नाम रोशन करेगा ।
प्रश्न 3.
तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे ! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें ? – कहानी का यह वाक्य
(क) किसके लिए कहा गया है ?
(ख) किस प्रसंग में कहा गया है ?
(ग) किस आशय से कहा गया है ?
उत्तर :
(क) यह वाक्य धनराम के लिए कहा गया है ।
(ख) धनराम को बारह का पहाड़ा तो पूरी तरह याद आ गया था किन्तु तेरह का पहाड़ा उसके लिए पहाड़ हो गया था । मास्टरजी जब धनराम से तेरह का पहाड़ा पूछते हैं तब वह लड़खड़ा जाता है । तब मास्टरजी बेंत का उपयोग करने के बजाय जबान की चाबुक लगा देते है ।
(ग) चमड़े की चाबुक की चोट से तो शरीर पर घाव लगता है जो जल्दी भर जाता है किन्तु जबान की चाबुक से तो मन और हृदय को चोट पहुँचती है जो कभी नहीं भरती है । यह वाक्य धनराम पर इतना हावी हो जाता है कि वह पढ़ाई छोड़कर पुश्तैनी काम में जुट जाता है ।।
संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए :
1. घर में जहाँ चार प्राणी हैं एक और बढ़ जाने में कोई अंतर नहीं पड़ता, बल्कि बड़े शहर में रहकर वह अच्छी तरह पढ़लिख सकेगा ।
सन्दर्भ : उपर्युक्त संदर्भ शेखर जोशी रचित ‘गलता लोहा’ कहानी में से लिया गया है । यह कथन लखनऊ से गाँव आए युवक रमेश का है, जो मोहन के पिता को आश्वासन देने के लिए कहा गया है ।
व्याख्या : मोहन को उसके पिता दूसरे गाँव पढ़ाई के लिए भेजते हैं । एक दिन स्कूल से आते वक्त नदी में अधिक पानी आ जाने पर जैसे-तैसे नदी पार कर रहे मोहन बच गए थे, तब से वंशीधर मोहन की पढ़ाई को लेकर चिंतित रहने लगे थे । एक दिन बिरादरी के एक संपन्न परिवार का युवक रमेश छुट्टियों में गाँव आया हुआ था ।
वंशीधर बातों-बातों में रमेश के सामने मोहन की पढ़ाई की चिंता प्रगट करते हैं । तभी रमेश एक अच्छे व्यक्ति की तरह मात्र सहानुभूति नहीं जताते बल्कि सुझाव भी देते हैं कि वे मोहन को उसके साथ ही लखनऊ भेज दें । और वे आगे उपर्युक्त कथन कहते हैं कि जहाँ घर में चार प्राणी हैं एक और बढ़ जाने में कोई अंतर नहीं पड़ता, बल्कि बड़े शहर में रहकर वह अच्छी तरह पढ़-लिख सकेगा ।
विशेष :
- रमेश का सेवाभावी व्यक्तित्व प्रकट होता है।
- भाषा सरल एवं भावपूर्ण है।
2. सामान्य तौर पर ब्राह्मण टोले के लोगों का शिल्पकार टोले में उठना-बैठना नहीं होता था । किसी काम-काज के सिलसिले में यदि शिल्पकार टोले में आना ही पड़ा तो खड़े-खड़े बातचीत निपटा ली जाती थी । ब्राह्मण टोले के लोगों को बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था।
संदर्भ : प्रस्तुत संदर्भ शेखर जोशी कृत ‘गलता लोहा’ कहानी में से लिया गया है । जातिगत भेदभाव के बारे में धनराम मन ही मन गाँव की परम्परागत सोच को उजागर करता है ।
व्याख्या : मोहन लंबे बेंटवाले हँसुये को लेकर धनराम के आफर पर पहुँचता है । धनराम और मोहन अपने बचपन की यादों में खोकर बातें करने लगते है । मोहन धनराम के पास ही बैठ जाता है । धनराम ने मोहन के हँसुवे के फाल को बेंत से निकालकर भट्टी में तपाया और मन लगाकर उसकी धार गढ़ दी । और हँसुवे को मोहन को देते है ।
मोहन हँसुवे को हाथ में लेकर फिर वहीं बैठा रहता है । यह दृश्य देखकर धनराम सोचता है कि ब्राह्मण लोग कभी भी निम्न जाति के घर या दुकान पर अधिक समय खड़े नहीं रहते है । अगर कुछ काम से जाना भी पड़े तो भी वे लोग कभी भी शिल्पकारों के यहाँ बैठते नहीं है किन्तु यहाँ मोहन पुरोहित का पुत्र होने पर श्री धनराम के आफर में जाता है, बातें करता है यहाँ तक कि काफी समय तक बैठा भी रहता है धनराम यह देखकर असमंजस में पड़ जाता है ।
विशेष :
- लेखक ने यहाँ समाज में फैले जातिगत भेदभाव को उजागर किया है।
- मोहन के द्वारा लेखक ने सर्वधर्म समभाव की सूक्ति को सार्थक करने का प्रयास किया है ।
- भाषा सरल एवं सहज है ।
विचार-विस्तार
चमड़े की चाबुक शरीर पर चोंट पहुँचाती है, किन्तु जबान की चाबुक मन को चोंट पहुँचाती है ।’ मनुष्य अपनी मधुर वाणी से सभी को अपनी ओर आकर्षित कर सकता है । जिस मनुष्य की वाणी मधुर होगी वह अवश्य सफल होता है । कटु वाणी से वैमनस्य बढ़ता है । लोगों के रिश्तों के बीच दरारे पैदा होती है ।
साथ ही मनुष्य को अगर घाव लगता है अर्थात् चमड़े की चाबुक से या अन्य तरीके से बाह्य शरीर पर घाव लगता है वह जल्द ही भर जाता है किन्तु कटु वाणी से किसी को या जबान की चाबुक से किसी को चोट पहुँचती है तो वह मन या दिल तक पहुँचता है और ऐसे घाव उम्रभर भरते नहीं है । इसलिए वाणी ऐसी बोलनी चाहिए जिससे अपने आपको खुशी मिले और साथ-साथ दूसरों को भी खुशी दें।
अन्य प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘गलता लोहा’ कहानी में चित्रित सामाजिक परिस्थिति को समझाइए ।
उत्तर :
प्रस्तुत कहानी में परंपरागत ग्रामीण समाज का चित्रण किया गया है । इस गाँव में जातिगत भेदभाव प्राचीन समय से चला आ रहा था । ब्राह्मण स्वयं को श्रेष्ठ मानते थे । वे शिल्पकारों के घर या दुकानों में आते-जाते नहीं थे । अगर कामकाज के कारण जाना भी पड़े तो ये वहाँ बैठते नहीं थे, अगर कोई शिल्पकार उन्हें बैठने के लिए कहता भी तो यह उनकी मर्यादा के विरुद्ध माना जाता था । मोहन लखनऊ से बेरोजगार होकर गाँव आता है और इस जातिगत भेदभाव की बुराई को चुनौती देता है । मोहन अपने बचपन के सख्या धनराम के आफर जाता है, बैठता है तथा हथौड़ा उठाकर काम भी करता है ।
प्रश्न 2.
धनराम पढ़ाई क्यों छोड़ देता है ?
उत्तर :
मोहन और धनराम एक ही वर्ग में साथ-साथ पढ़ते है । मोहन मेधावी और तेजस्वी था । किन्तु धनराम पढ़ाई में कमजोर था । मास्टर त्रिलोक सिंह मोहन की पढ़ाई से खुश थे और वे उसे स्कूल का मोनिटर भी बनाते है तथा कमजोर छात्रों को पीटाई करने का, कान खींचने का भी आदेश देते थे । धनराम भी कई बार मोहन की मार खा चुका था ।
इसलिए थोड़ी बहुत ईर्ष्या भी मोहन के प्रति, फिर भी वह मोहन के प्रति आदर और स्नेह रखता है । एक दिन धनराम को तेरह का पहाड़ा नहीं आया । तो मास्टर जी ने उन्हें मारने के बजाय जबान की चाबुक से खूब खरी-खोटी सुनाते है । मास्टर जी की बातें धनराम के दिल को चोंट पहुँचाती है । आखिर विवश होकर धनराम पढ़ाई छोड़कर लुहारी का अपना पुस्तैनी काम करने लगता है ।
प्रश्न 3.
‘गलता लोहा’ शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए ।
उत्तर :
‘गलता लोहा’ कहानी में समाज के जातिगत विभाजन और स्तरीकरण पर कई कोणों से टिप्पणी की गई है । यह कहानी लेखक के लेखन में अर्थ की गहराई को दर्शाती है । इस पूरी कहानी में लेखक की कोई मुखर टिप्पणी नहीं है । इसमें एक मेधावी, किन्तु निर्धन ब्राह्मण युवक मोहन किन परिस्थितियों के चलते उस मनोदशा तक पहुँचता है, जहाँ उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हो जाता है ।
मोहन सामाजिक जातिगत भेदभावों को तोड़कर धनराम लोहार के आफर पर जाता है, बैठता है, साथ ही उसके काम में भी अपनी कुशलता भी दिखाता है । वैसे ब्राह्मणों का शिल्पकारों के मुहल्ले में उठना-बैठना नहीं होता था । किसी काम-काज के सिलसिले में यदि शिल्पकार होले में आना ही पड़ा तो खड़े-खड़े बातचीत निपटा ली जाती थी ।
ब्राह्मण होले के लोगों को बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था । मोहन इन जातिगत भेदभाव को भूलकर धनराम के हाथ से हथौड़ा लेकर नपी-तुली चोट मारते, अभ्यस्त हाथों से धौंकनी फूंककर लोहे को दुबारा भट्ठी में गरम करते और फिर निहाई पर रखकर उसे ठोकते-पिटते सुघड़ गोले का रूप दे डालता है । इस प्रकार मोहन जातिगत भेदभाव को गलाकर नया आकार दे देता है । इस प्रकार प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘गलता लोहा’ सार्थक है ।
प्रश्नोत्तर
1. लंबे बेंटवाले हँसुये को लेकर वह घर से इस उद्देश्य से निकला था कि अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को काट-छाँटकर साफ़ कर आएगा । बूढ़े वंशीधर जी के बूते का अब यह सब काम नहीं रहा । यही क्या, जन्म भर जिस पुरोहिताई के बूते पर उन्होंने घर-संसार चलाया था, वह भी अब वैसे कहाँ कर पाते हैं । यजमान लोग उनकी निष्ठा और संयम के कारण ही उन पर श्रद्धा रखते हैं ।
प्रश्न 1.
- मोहन घर से किस उद्देश्य के लिए निकला ?
- वंशीधर ने कौन-सा कार्य करके घर-संसार चलाया था ?
- यजमान किस पर श्रद्धा रखते हैं ? तथा क्यों ?
उत्तर:
- मोहन अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को काट-छाँटकर साफ़ कर ने के उद्देश्य से घर से लंबे बेंटवाला हँसुआ लेकर निकला था ।
- 2. वंशीधर ने जन्म भर पुरोहिताई के बूते पर ही अपना घर-संसार चलाया था ।
- यजमान लोग वंशीधर पर विश्वास रखते है क्योंकि वंशीधर निष्ठा और संयम से कार्य करते थे ।
2. धनराम भी उन अनेक छात्रों में से एक था जिसने त्रिलोक सिंह मास्टर के आदेश पर अपने हमजोली मोहन के हाथों कई बार बेंत खाए थे या कान खिंचवाए थे । मोहन के प्रति थोड़ी बहुत ईर्ष्या रहने पर भी धनराम प्रारंभ से ही उसके प्रति स्नेह और आदर का भाव रखता था । इसका एक कारण शायद यह था कि बचपन से ही मन में बैठा दी गई जातिगत हीनता के कारण धनराम ने कभी मोहन को अपना प्रतिद्वंदी नहीं समझा बल्कि वह इसे मोहन का अधिकार ही समझता रहा था । बीच-बीच में त्रिलोक सिंह मास्टर का यह कहना कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल का और उनका नाम ऊँचा करेगा, धनराम के लिए किसी और तरह से सोचने की गुंजाइश ही नहीं रखता था ।
प्रश्न 1.
- धनराम ने किसके हाथों अपने कान खिंचवाए थे ?
- धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंदी क्यों नहीं मानता था ?
- त्रिलोक सिंह मास्टर मोहन के बारे में क्या कहते थे ?
उत्तर :
- धनराम ने त्रिलोक सिंह मास्टर के आदेश पर अपने हमजोली मोहन के हाथों कई बार बेंत खाए थे तथा कान भी खिंचवाए थे।
- धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानता था, क्योंकि उसके मन में बचपन से ही जातिगत हीनता के बीज बोये गये थे । इसीलिए वह मोहन की मार को अपना अधिकार समझता था ।
- त्रिलोक सिंह मास्टर मोहन के बारे में कहते थे कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल का और उनका नाम ऊँचा करेगा ।
3. बिरादरी के एक संपन्न परिवार का युवक रमेश उन दिनों लखनऊ से छुट्टियों में गाँव आया हुआ था । बातों-बातों में वंशीधर ने मोहन की पढ़ाई के संबंध में उससे अपनी चिंता प्रकट की तो उसने न केवल अपनी सहानुभूति जतलाई बल्कि उन्हें सुझाव दिया कि वे मोहन को उसके साथ ही लख्खनऊ भेज दें । घर में जहाँ, चार प्राणी है एक और बढ़ जाने में कोई अंतर नहीं पड़ता, बल्कि बड़े शहर में रहकर वह अच्छी तरह पढ़-लिख सकेगा । वंशीधर को जैसे रमेश के रूप में भगवान मिल गए हों । उनकी आँखों में पानी छलछलाने लगा ।
प्रश्न 1.
- लखनऊ से गाँव कौन आया था और क्यों ?
- रमेश ने वंशीधर को क्या सुझाव दिया ?
- वंशीधर की आँखों में पानी क्यों छलछलाने लगा ?
उत्तर:
- लखनऊ से बिरादरी के एक संपन्न परिवार का युवक रमेश गाँव आया था क्योंकि उसकी छुट्टियाँ पड़ गई थी ।
- वंशीधर ने रमेश के समक्ष जब मोहन की पढ़ाई के संबंध में चिंता प्रकट की तब रमेश ने वंशीधर को सुझाव दिया कि वे मोहन को उसके साथ ही लखनऊ भेज दें तथा घर में जहाँ चार प्राणी है वहाँ एक बढ़ जाने में कोई अंतर नहीं पड़ता ।
- वंशीधर की आँखों में पानी छलछलाने लगा क्योंकि रमेश मोहन को लखनऊ ले जाने के लिए तैयार था । वंशीधर को मानो रमेश के रूप में साक्षात् भगवान मिल गए थे ।
4. लोहे की एक मोटी छड़ को भट्ठी में गलाकर धनराम गोलाई में मोड़ने की कोशिश कर रहा था । एक हाथ में सँड़सी पकड़कर जब वह दूसरे हाथ से हथौड़े की चोट मारता तो निहाई पर ठीक घाट में सिरा न फँसने के कारण लोहा उचित ढंग से मुड़ नहीं पा रहा था । मोहन कुछ देर तक उसे काम करते हुए देखता रहा फिर जैसे अपना संकोच त्यागकर उसने दूसरी पकड़ से लोहे को स्थिर कर लिया और धनराम के हाथ से हथौड़ा लेकर नपी-तुली चोट मारते-अभ्यस्त हाथों से धौंकनी फूंककर लोहे को दुबारा भट्टी में गरम करते और फिर निहाई पर रखकर उसे ठोकते-पीटते सुघड़ गोले का रूप दे डाला ।
प्रश्न 1.
- पमोहन जब धनराम के आफर गया तब वह क्या कर रहा था ?
- धनराम अपने काम में सफल क्यों नहीं हो रहा था ?
- धनराम का अधूरा काम मोहन ने कैसे पूरा किया ?
उत्तर :
- मोहन जब धनराम के आफर गया तब धनराम लोहे की एक मोटी छड़ को भट्टी में गलाकर उसे गोलाई में मोड़ने का व्यर्थ प्रयास कर रहा था ।
- धनराम अपने काम में इसलिए सफल नहीं हो पा रहा था क्योंकि वह एक हाथ से सँडसी पकड़कर दूसरे हाथ से हथौड़े की चोट मारता तो निहाई पर तीक घाट में सिरा न फँसने के कारण लोहा सही तरीके से मुड़ नहीं रहा था ।
- कुछ देर तक मोहन धनराम के काम को देखता रहा । बाद में अचानक उठकर लोहे को स्थिर करके धनराम का हथौड़ा लेकर नपी-तुली चोट की । उसके बाद स्वयं धौंकनी फूंककर लोहे को दोबारा भट्ठी में गरम किया और फिर निहाई पर रखकर उसे ठोक-पीटकर सुघड़ गोल आकार में बदल देता है ।
योग्य विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए ।
प्रश्न 1.
- शेखर जोशी का जन्म सन् …………… में हुआ है । (1935, 1932, 1943)
- ‘एक पेड़ की याद’ शेखर जोशी का …………. है । (उपन्यास संग्रह, कहानी संग्रह, शब्द-चित्र संग्रह)
- …………….. कहानी पर चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी द्वारा फिल्म का निर्माण हुआ है । (दाज्यु, हलवाहा, नॉरंगी बीमार)
- शेखर जोशी को …………… शब्दचित्र संकलन के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी-संस्थान द्वारा महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार प्राप्त हुआ है । (कोसी का घटवार, दाज्यू, एक पेड़ की बात)
- शेखर जोशी का जन्म ………… में हुआ है । (अल्मोड़ा, काशी, नेपाल)
- वंशीधर को ……….. के यहाँ रुद्रीपाठ करने जाना था । (गोपालसिंह, चंद्रदत्त, त्रिलोक सिंह)
- मास्टर त्रिलोक सिंह ……….. की दुकान पर हुक्के का कश खींचने जाते थे । (धनराम, रमेश, गोपालसिंह)
- मास्टर त्रिलोक सिंह ने ………… को स्कूल का मोनीटर बनाया था । (मोहन, धनराम, रमेश)
- धनराम को …………… का पहाड़ा याद नहीं रहा था । (ग्यारह, तेरह, बारह)
- रमेश ……………. से छुट्टीयाँ लेकर गाँव आते है । (लखनऊ, अहमदाबाद, अल्मोड़ा)
- धनराम ………………. को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानता था । (गंगाराम, रमेश, मोहन)
- मोहन ब्राह्मण होकर भी …………….. का काम करता है । (लुहार, मोची, नायी)
उत्तर :
- 1932
- शब्द-चित्र संग्रह
- दाज्यू
- एक पेड़ की बात
- अल्मोड़ा
- चंद्रदत्त
- गोपालसिंह
- मोहन
- तेरह
- लखनऊ
- मोहन
- लुहार
अपठित गद्यांश :
मैंने अपने आज तक के जीवन में जिस सबसे महान व्यक्तित्व का परिचय प्राप्त किया है, वह मेरी माँ है । यह भावुकता नहीं है । मैंने बहुत बार तटस्थ रूप में इस नारी को समझने का प्रयत्न किया है और हर बार मेरे छोटेपन ने – मुझे लज्जी कर दिया है । बड़े से बड़े दुःख में मैंने उसे अविचल धैर्य में स्थिर देखा है । जीवन की किसी परिस्थिति ने उसे कर्तव्यनिष्ठा से नहीं हटाया ।
परंतु अपनी कर्मण्यता के लिए रत्तीभर अहंभाव भी उसमें नहीं है । वह कर्म करती है, जैसे कर्म उसका अस्तित्व है, जीवन है, स्वभाव है । वह जो नहीं कर सकती उसके लिए उसे खेद अवश्य होता है, पर जो कर लेती है, उसका गर्व नहीं । और घर में उसका अस्तित्व वैसे ही है जैसे विश्व में वायु का – वह प्राण देती है, परन्तु अदृश्य रहकर । घर में सब कुछ संभला, सिमटा रहता है – हर चीज व्यवस्थित रहती है – परंतु माँ कुछ भी करने के लिए वही समय चुनती है, जब वह करना किसी को दिखाई न दे ।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
प्रश्न 1.
‘हर बार मेरे छोटेपन ने मुझे लज्जित कर दिया है’ इसका आशय स्पष्ट कीजिए ।।
उत्तर :
लेखक कहता है उसने बहुत बार तटस्थ भाव से अपनी माँ को समझने का प्रयत्न किया है । उसका मूल्यांकन करना चाहा है और हर बार उसे लगा है जैसे यह उसका छोटापन है । ऐसा करना उसकी ओछी हरकत है । अपनी इन हरकतों के लिए उसे लज्जा आई है । वह माँ की महानता को माप सकने में अपने आपको असमर्थ समझता है । इस तरह उसके मूल्यांकन के विचार से वह लज्जित हुआ है ।
प्रश्न 2.
माँ की कर्तव्यनिष्ठा के बारे में लेखक क्या कहता है ?
उत्तर :
माँ की कर्तव्यनिष्ठा के बारे में लेखक का कहना है कि कर्म ही मानो माँ का अस्तित्व है, जीवन है, स्वभाव है । वह कर्म करती है किन्तु उसे करने का जरा भी अहंकार उसमें नहीं होता, न ही उसे अपने किये पर किसी तरह का गर्व ।
प्रश्न 3.
लेखक का घर व्यवस्थित कैसे रहता है ?
उत्तर :
लेखक के घर को व्यवस्थित रखने का कार्य उसकी माँ करती है । वह काम करने का ऐसा समय चुनती है जब वह करना किसी को दिखाई न दे । लेखक के घर में माँ उसी तरह अदृश्य रहकर कार्य करती है जैसे हवा | माँ के कारण ही उसका घर व्यवस्थित, सँभला, सिमटा रहता है ।
प्रश्न 4.
माँ की किन विशेषताओं का चित्रण इस गयांश में है ? समझाइए ।
उत्तर :
माँ के व्यक्तित्व में कर्तव्यनिष्ठा, अविचल धैर्य है । उसमें अहंभाव नाम मात्र को नहीं है । माँ के लिए कर्म ही मानो उसका अस्तित्व है । जो कर्म नहीं कर पाती उसके लिए उसे खेद अवश्य होता है किन्तु किये गए कर्म के लिए उसे थोड़ा-सा भी गर्व नहीं होता । कर्तव्य ही उसका जीवन है, स्वभाव है ।
प्रश्न 5.
“भावुकता’ शब्द का विशेषण रूप लिखिए ।
उत्तर :
भावुकता का विशेषण रूप – भावुक ।
प्रश्न 6.
इस गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए ।
उत्तर :
‘माँ की महिमा’ इस गद्यांश का उचित शीर्षक हो सकता है ।
गलता लोहा Summary in Hindi
लेखक परिचय :
बीसवीं शताब्दी के छठे दशक के नई कहानी आंदोलन की एक सशक्त प्रतिनिधि कहानीकार शेखर जोशी का जन्म अल्मोड़ा जनपद के ओलिया गाँव में सितम्बर, 1932 में हुआ । शेखर जोशी की प्रारंभिक शिक्षा अजमेर और देहरादून में हुई । कथा लेखन को दायित्यपूर्ण कर्म माननेवाली शेखर जोशी हिन्दी की सुपरिचित कथाकार हैं । शेखर जोशी ने कहानी संग्रह, उपन्यास एवं शब्दचित्र लिख्खे हैं ।
- उपन्यास – अथ मूषक उवाच, चींटे के पर, मेरा पहाड़
- कहानी संग्रह . कोसी का घटवार, साथ के लोग, दाज्यू, हलवाहा, नौरंगी बीमार है
- शब्दचित्र संग्रह – एक पेड़ की याद इनकी कहानियाँ कई भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी, पोलिश और रूसी में भी अनूदित हो चुकी है । इनकी प्रसिद्ध कहानी दाज्यू पर चिल्ड्रंस फिल्म सोसायटी द्वारा फिल्म का निर्माण भी हुआ है।
पुरस्कार :
शेखर जोशी को सन् 1987 में “एक पेड़ की याद’ शब्दचित्र संकलन के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी’ पुरस्कार प्राप्त हुआ है । जोशी को सन् 1995 में साहित्य भूषण तथा सन् 1997 में ‘पहल सम्मान’ भी प्राप्त हुआ है । साथ ही ‘राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त’ सम्मान सहित अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान से सम्मानित हुई हैं ।
शेखर जोशी नई कहानी आंदोलन की एक प्रतिभाशाली कहानीकार है । जोशीजी की कुछ कहानियों का सफल मंचन भी हुआ है । जोशी जी कहानियों में पहाड़ी इलाकों की गरीबी, कठिन जीवन संघर्ष, उत्पीड़न, यातना, प्रतिरोध, उम्मीद और नाउम्मीदी से भरे औद्योगिक मजदूरों के हालात, शहरी-कस्बाई और निम्नवर्ग के सामाजिक-नैतिक संकट, धर्म और जाति से जूड़ी रूढ़ियाँ आदि का यथार्थ चित्रण किया गया है । जोशी जी के साहित्य में समकालीन जनजीवन की बहुविध विडंबना को महसूस किया जा सकता है । जोशीजी निरन्तर अपनी कथा-रचना को ताजा और जनसंवेदी बनाए रखने में तत्पर और सावधान रही हैं ।
पाठ्य रचना की विशिष्टताएँ :
‘गलता लोहा’ कहानी में एक मेधावी बालक मोहन के गाँव से बेहतर भविष्य के लिए शहर जाने और वहाँ के कुचक्र में फँस जाने और वापस गाँव लौट आने की कथा है । यह कहानी समाज के जातिगत विभाजन पर हर तरफ से टिप्पण करती है । मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे की प्रस्तावना करता प्रतीत होता है ।
कहानी के पात्रों में मोहन का सहपाठी धनराम है, वह एक मेहनतकश लड़का है । अन्य पात्रों में मोहन के पिता वंशीधर, मास्टर त्रिलोकसिंह, रमेश की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है । प्रस्तुत कहानी के द्वारा जोशी जी का लक्ष्य सिर्फ लोहे को गलाकर मात्र आकार देना नहीं है बल्कि लोहे पर चोट करके कहानीकार वर्ण और जाति के लोहे को गलाना चाहती हैं ।
पाठ का सार :
‘गलता लोहा’ कहानी में शेखर जोशी ने जातिगत भेदभाव को उजागर किया है । प्रस्तुत कहानी में लेखक ने एक मेधावी किन्तु निर्धन ब्राह्मण युवक मोहन की मनोदशा को चित्रित करने का सफल प्रयास किया है । गाँव तथा शहर में भी मोहन परिस्थितिजन्य संघर्ष करता है । शहर से लौटकर जब वह निराश होकर गाँव लौटता है तो अपनी पुरोहित छोड़कर धनराम के आफर में काम करने लगता है । मोहन जातिगत निर्मित झूठे भाईचारे को छोड़कर महेनतकशी सच्चे भाईचारे की भावना को प्रस्तावित करता है ।
मोहन का धनराम ने आफर पर जाना :
मोहन के पिता वंशीधर जीवनभर पुरोहिती करते रहे किन्तु अब वृद्ध हो जाने के कारण उनसे कठिन परिश्रम तथा व्रत या उपवास नहीं होता था । वंशीधर को चन्द्रदत्त के घर रूद्रीपाठ करने जाना था किन्तु तबियत ठीक न होने के कारण जा नहीं पाये थे । मोहन पिता की स्थिति को भली-भाँति समझते थे कि उनमें अनुष्ठान करने की कुशलता न थी ।
इसीलिए वह खेत में काम करने के लिए हँसुवे को हाथ में लेता है । किन्तु हँसुवे की धार कुंद हो चुकी थी । उसे अपने बचपन के दोस्त धनराम के आजर पर जाकर धार निकलवाने जाता है । लंबे बेंटवाले हँसुवे से मोहन खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को काट-छाँटकर साफ़ करना चाहता था । मोहन धनराम के आजर पर पहुँचता है ।
मोहन और धनराम का बचपन की यादों में खो जाना :
धनराम मोहन का बचपन का सहपाठी था । जब मोहन धनराम के आजर पर पहुँचता है तो दोनों बचपन की यादों में खो जाते है । मोहन मास्टर त्रिलोकसिंह के विषय में पूछते है । धनराम बताते है कि वे पिछले साल ही गुजर गये थे । मोहन और धनराम स्कूल के दिनों को विशेषकर मास्टर जी की बातें करके हँस रहे थे । मोहन पढ़ाई में बहुत ही तेज था । मोहन मास्टरजी का चहेता शिष्य था ।
मोहन पढ़ाई के साथ साथ गायन में बेजोड़ था । इसीलिए मास्टर जी ने उसे पूरे स्कूल का मॉनीटर बना रखा था । मोहन ही सुबह-सुबह प्रार्थना शुरू करवाता था । मोहन को लेकर मास्टर त्रिलोकसिंह को बड़ी उम्मीदें थी । मास्टर जी के हर सवालों के जवाब मोहन देता था । इसलिए कमजोर बच्चों को दंड देने का अधिकार भी मोहन को देते थे ।
धनराम ने भी कई बार मास्टर जी के आदेश पर मोहन से डंडे खाए थे । धनराम के मन इसके चलते थोड़ी-बहुत ईर्ष्या थी किन्तु उसे मोहन के प्रति आदर द स्नेह भी था । क्यूँकि बचपन से धनराम के मन में जातिगत भेदभाव की हीनता बैठा दी गई थी । तथा मास्टर जी भी मोहन को ही तेजस्वी छात्र मानते थे तथा कहते रहते थे कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल का और उनका नाम ऊँचा करेगा । इन सब बातों को लेकर धनराम ने कभी भी मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा था ।
मास्टर जी द्वारा जबान की चाबुक का प्रयोग :
खेतिहर या मजदूर परिवारों के लड़कों की तरह धनराम की किसी तीसरे दर्जे तक ही स्कूल का मुँह देख पाया था । कभीकभार मास्टर जी उस पर विशेष ध्यान देते थे । इसीलिए तेरह का पहाड़ा याद न होने के कारण धनराम की पिटाई होती है । मास्टर सजा पानेवाले छात्रों ने ही मजबूत संटी मँगवाकर उसीसे पिटते थे । धनराम अपनी मंदबुद्धि या डर के कारण पूरा दिन घोटा लगाने पर भी तेरह का पहाडा याद नहीं कर पाया था ।
छुट्टी के समय जब मास्टर जी ने दुबारा तेरह का पहाड़ा पूछा, तब भी धनराम तेरह का पहाड़ा सुना नहीं पाया । किन्तु इस बार मास्टर जी उसके लाए हुए संटी का उपयोग करने की बजाय जबान की चाबुक का उपयोग करते हुए कहते हैं – ‘तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे ! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें ?’
इतना कहकर मास्टरजी अपने “थेले में से पाँच-छह दरौलियाँ निकालकर धनराम को धार लगाने के लिए पकड़ा देते है । पिता गंगाराम ने अपने बेटे धनराम को हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखा दी थी । एक दिन गंगाराम अचानक चल बसते है । धनराम भी पढ़ाई छोड़कर अपना पुश्तैनी व्यवसाय सहज भाव से सँभाल लेता है ।
मोहन को छात्रवृत्ति मिलना :
मास्टर त्रिलोकसिंह की भविष्यवाणी को सार्थक करते हुए मोहन प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करके आगे की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त करता है । वंशीधर का हौसला भी बढ़ जाता है क्योंकि पीढ़ियों से चले आते पैतृक धंधे ने उन्हें निराश कर दिया था । दानदक्षिणा के बूते पर वे किसी तरह परिवार का आधा पेट ही भर पाते थे ।
मोहन पढ़-लिखकर वंश का दारिद्र्य मिटाएगा इसी उद्देश्य हेतु वे गाँव से चार मील दूर दूसरे गाँव की स्कूल में मोहन का दाखिला करया देते है । मोहन बरसात के मौसम में नदी पार करते हुए दो मील की चढ़ाई करके स्कूल जाता है । भारी वर्षा के दिनों में मोहन नदी पार गाँव में यजमान के घर रहता था । एक दिन नदी में पानी कम था तथा मोहन परिवारों के साथ नदी पार करके घर आ रहा था ।
पहाड़ों पर भारी वर्षा के कारण अचानक नदी में पानी बढ़ जाता है । किसी तरह वह घर पहुँचता है । इस घटना के बाद वंशीधर घबरा जाते है और बाद में वे मोहन को स्कूल नहीं भेजते हैं।
मोहन की जिन्दगी का नया अध्याय :
एक दिन वंशीधर की बिरादरी के संपन्न परिवार का युवक रमेश लखनऊ से गाँव आया हुआ था । बातों-बातों में वंशीधर रमेश के सामने मोहन की पढ़ाई की चिंता व्यक्त करते है । रमेश मोहन को लखनऊ ले जाने के लिए तैयार हो जाता है । वंशीधर को रमेश के रूप में साक्षात् भगवान मिल जाने का अहसास होता है । मोहन रमेश के साथ लखनऊ पहुँचता है ।
यहाँ से मोहन की ज़िन्दगी का नया अध्याय शुरू होता है । लखनऊ में मोहन एक नौकर बनकर रह जाता है । घर की महिलाओं के साथ-साथ उसे गली की सभी औरतों के घरों का काम करना पड़ता है । रमेश मोहन को घरेलू नौकर से अधिक हैसियत नहीं देता था । जैसे-तैसे मोहन का एक स्कूल में दाखिला करा दिया जाता है । किन्तु काम के बोझ के कारण मोहन की तेजस्विता नष्ट होती जा रही थी ।
गर्मियों की छुट्टियों में मोहन गाँव जाने की बात करता तो उन्हें अगले दरजे की तैयारी के नाम पर शहर में ही रोक दिया जाता था । मोहन परिस्थिति से समझौता कर लेता है । घरवालों को असलियत बताकर दुःखी नहीं करना चाहता था । आठवीं कक्षा पास करने पर भी
उसे आगे पढ़ाया नहीं जाता बल्कि बेरोजगारी का तर्क देकर तकनीकी स्कूल में दाखिल करा दिया जाता है । डेढ़-दो वर्ष के बाद मोहन अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए कारखानों तथा फैक्टरियों के चक्कर काटने लगता है । इधर वंशीधर अपने बेटे को बड़े अफसर बनने की उम्मीदे लगाए हुए थे ।
जब उन्हें वास्तविकता का पता चला तो उन्हें बहुत दुख हुआ । धनराम वंशीधर से मोहन के बारे में पूछते है तो उन्हें भी झूठ बता देते है।
मोहन द्वारा जाति के लोहे को गलाना :
मोहन और धनराम जीवन के कई प्रसंगों पर बातें करते है । धनराम ने हँसुवे के फाल को बेंट से निकालकर तपाया फिर उसे धार लगा दी । धनराम को मोहन का अपने यहाँ आना और बैठना असमंजस में डाल रहा था । क्योंकि आम तौर पर ब्राह्मण टोले के लोगों का शिल्पकार टोले में उठना-बैठना नहीं होता था । कामकाज के सिलसिले में वे खड़े-खड़े बातचीत निपटा देते थे ।
अगर ब्राह्मण लोगों को उठने-बैठने के लिए कहें तो भी उनकी मर्यादा विरुद्ध समझा जाता था । धनराम अपना काम कर रहा था, मोहन बैठकर सब देख रहा था । धनराम लोहे की एक मोटी छड़ को भट्ठी में गलाकर गोलाई में मोड़ने की कोशिश कर रहा था । किन्तु वह छड़ निहाई पर ठीक से फँस नहीं पा रही थी । अतः लोहा ठीक ढंग से मुड़ नहीं पा रहा था ।
मोहन कुछ देर तक उसे काम करते हुए देखता रहा फिर जैसे अपना संकोच त्यागकर उसने दूसरी पकड़ से लोहे को स्थिर कर लिया और धनराम के हाथ से हथौड़ा लेकर नपी-तुली चाटे मारते, अभ्यस्त हाथों से धौंकनी फूंककर लोहे को दुबारा भट्ठी में गरम करते और फिर निहाई पर रखकर उसे ठोकते-पीटते सुघड़ गोले का रूप दे डाला ।
मोहन के काम में स्फूर्ति देखकर धनराम आश्चर्यचकित था । धनराम मोहन द्वारा बनाये गये लोहे के छल्ले की त्रुटीहीन गोलाई की जाँच करते हुए मोहन की आँखों में एक सर्जक की चमक को देखकर आवाक् रह जाता है । इस प्रकार मोहन जातिगत भेदभाववाले लोहे को गलाकर गोल बना देता है ।
शब्दार्थ :
- अनायास – बिना प्रयास के
- अनुगूंज – प्रतिध्वनि
खनक – आवाज - यजमान – पूजा-पाठ करानेवाला
- जर्जर – टूटा-फूटा, फटा-पुराना
- अनुत्तरित – बिना उत्तर पाए
- धौंकनी – लोहे को गलाने के लिए हवा देनेवाला साधन
- समवेत – सामूहिक
- हीनता – छोटापन
- गुंजाइश – जगह
- विरासत – पुरखों से प्राप्त
- दारिद्रय – गरीबी
- बिरादरी – समान जाति
- मेधावी – होशियार
- सेक्रेटेरियट – सचिवालय
- सैंडसी – किसी वस्तु या लोहे को पकड़ने का कैचीनुमा औजार
- फाल – लोहे का बना हल का अग्र भाग
- अवाक् – मौन, चकित
- निहाई – लोहे का ठोस टुकड़ा जिस पर रखकर लोहे को पीटते हैं
- हँसुबे – घास या फसल काटने का औजार, दरौंती
- पुरोहिताई – पुरोहित का काम
- निष्ठा – लगन, श्रद्धा, विश्वास
- रुद्रीपाठ – भगवान शंकर की पूजा के लिए मंत्र का पाठ
- कुंद – धारहीन, भोथरा, मंदबुद्धि
- कनिस्तर – लोहे का चौकोर पीपा
- कुशाग्र – तेज बुद्धिवाला
- प्रतिद्वंदी – विपक्षी, विरोधी, प्रतिस्पर्धी
- संटी – छड़ी, सोटी
- पैतृक – माँ-बाप का
- विद्याव्यसनी – पढ़ने में रुचि रखनेवाला
- रेला – समूह, प्रवाह
- घसियारा – घास काटने का काम करनेवाला
- असमंजस – दुविधा
- त्रुटिहीन – जिसमें कोई कमी न हो
- हस्तक्षेप – दखल
मुहावरे :
- साँप सूंघ जाना – डर जाना
- डेरा तय करना – रहने का स्थान निर्धारित करना
- लीक पर चलना – परंपरा के आधार पर चलना
- घोटा लगाना – रटना
- हाथ बँटाना – सहयोग करना, मदद करना