Gujarat Board GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 16 चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 16 चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती
GSEB Class 11 Hindi Solutions चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती Textbook Questions and Answers
अभ्यास
कविता के साथ
प्रश्न 1.
चंपा ने ऐसा क्यों कहा कि कलकत्ता पर बजर गिरे ?
उत्तर :
कलकत्ता पर बजर गिरे ऐसा चंपा ने इसलिए कहा क्योंकि कलकत्ता और उसके जैसे अन्य महानगरों में रोजी-रोटी की तलाश में गये हुए ग्रामीण युवा न चाहते हुए भी महानगर के समुद्र में डूब जाता है। उसे घर-परिवार की याद आने पर भी या नवविवाहित पत्नी की मधुर स्मृतियों के बावजूद वह लौट नहीं सकता। चम्पा ने अपने गाँव की ऐसी कई महिलाओं को अपने पति के विरह में तड़पते देखा है। यहाँ कलकत्ते पर यज्र गिरने की इच्छा जीवन के ठोस यथार्थ के प्रति, चंपा के संघर्ष और उसकी जिजीविषा को भी प्रकट करती है।
प्रश्न 2.
चंपा को इस पर क्यों विश्वास नहीं होता कि गाँधी बाबा ने पढ़ने-लिखने की बात कही होगी ?
उत्तर :
चंपा को इस बात पर इसलिए विश्वास नहीं होता कि गाँधी बाबा ने पढ़ने-लिखने की बात की होगी। क्योंकि एक तो वह अनपढ़ है, सरल है और ग्राम्य बाला है। उसे महात्मा गाँधी के महान व्यक्तित्व से क्या लेना-देना ! हाँ, इतना जरूर है कि गाँधी जी के व्यक्तित्व से पूरा देश प्रभावित था। वह समय ही कुछ ऐसा था, क्या गाँव और क्या शहर में, किसी न किसी बात को लेकर गाँधी जी का जिक्र जरूर होता था।
इसलिए चम्पा के मन में यह धारणा स्पष्ट थी कि गाँधी जी एक बहुत बड़े और अच्छे व्यक्ति हैं। ऐसा अच्छा व्यक्ति पढ़ने-लिखने की बात कैसे कर सकता है। क्योंकि चम्पा क्या जाने पढ़ाई लिखाई का महत्त्व। उसके लिए तो मुक्त मन से बातें करना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। यहाँ परोक्ष रूप से कवि ने भारतीय ग्राम्य जीवन के कटु यथार्थ से भी हम स्वरू करवाया है। क्योंकि आज भी गरीबी अज्ञानता के घोर अंधकार में डूबे लोगों के बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं। उनके हाथ में कलम की जगह कुदाल है, फावड़ा है।
प्रश्न 3.
कवि ने चंपा की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ?
उत्तर :
कवि ने चंपा की अनेक विशेषताओं का अत्यंत सहज सरल शब्दों में उल्लेख किया है। चंपा गाय, भैंसों को चराने जाती है। वह अच्छी है, यह स्वभाव से चंचल और नटखट है, हाँ कभी-कभार उद्यम या शरारत भी कर देती है। कभी-कभी तो यह कवि की कलम ही चुरा लेती है, उन्हें बड़ा परेशान करती है, जैसे-तैसे करके वे कलम को ढूंढकर लाते हैं, तो उनके लिखने के कागज ही गायब कर देती है, वे फिर हैरान-परेशान हो जाते हैं।
वे उनकी मुँह लगी भी तो है। कवि को पढ़ते हुए देखकर उसे बड़ा आश्चर्य होता है कि इन काले अच्छरों में कैसे अर्थ प्रकट होता है। वह लिखने-पढ़ने की बात को अच्छा नहीं समझती। वह निरीह है, निश्छल है।
प्रश्न 4.
आपके विचार में चम्पा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मैं तो नहीं पढूंगी ?
उत्तर :
‘मैं तो नहीं पढूंगी’ ऐसा चम्पा ने इसलिए कहा होगा कि उसकी उम्र दस बारह वर्ष की होगी। वह गाय चराने जंगल में जो जाती है। इस उम्र में यदि वह स्कूल जाये तो उसके सहपाठी उससे बहुत छोटे होंगे। वह उनके बीच अनुकूलन कैसे साध सकती है। दूसरी बात यह कि उसका जीवन इतना खुला हुआ मुक्त और स्वतंत्र हो गया है कि पढ़ने-लिखने की औपचारिकता में उसका मन नहीं लगता। इसलिए वह पढ़ने-लिखने की बात को अच्छा नहीं समझती।
कविता के आस-पास
प्रश्न 1.
यदि चंपा पढ़ी-लिखी होती, तो कवि से कैसे बातें करतीं ?
उत्तर :
यदि चंपा पढ़ी-लिखी होती तो कवि को पढ़ते हुए देखकर आश्चर्य करने की बजाय यह सवाल पूछती कि आप क्या पढ़ रहे हैं ? इतना ही नहीं, उत्तर पाने से पहले ही कई विकल्प भी रख देती कि उपन्यास पढ़ रहे हैं या कहानी या धार्मिक पुस्तक या अन्य कुछ ओर। पढ़ने-लिखने की बात को बुरा भी न मानती। कवि को ऐसा भी न कहती कि ‘तुम कागद ही गोदा करते हो दिन-भर’।
शिक्षा के महत्त्व को लेकर गाँधी के विचारों पर सन्देह करने की बजाय समर्थन करती। बालम को वहीं गाँव में संग रखने की बजाय वह स्वयं ही कलकत्ता या किसी अन्य किसी शहर में अपने भविष्य को बनाने के लिए निकल पड़ती। कलकत्ता पर बजर न गिराती। अपने पति का संदेशा पढ़ने या भेजने की विवशता न रहती।
प्रश्न 2.
इस कविता में पूर्वी-प्रदेशों की स्त्रियों की किस विडम्बनात्मक स्थिति का वर्णन हुआ है ?
उत्तर :
इस कविता में कवि ने पूर्वी प्रदेश की स्त्रियों की विडम्बनात्मक स्थिति का यथार्थ वर्णन किया है। पूर्वी प्रदेश के ग्रामीण अंचल से कलकत्ता ही ऐसा महानगर है जो दिल्ली, बम्बई, मद्रास जैसे अन्य शहरों की अपेक्षा नजदीक है। अतः रोजी-रोटी की तलाश में इस प्रदेश के लोग अक्सर कलकत्ता की ओर ही रुख करते हैं। पीछे रह जाती हैं स्त्रियाँ।
घर-परिवार और रिश्तेदारी, बालबच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर बड़े-बूढ़ों की देखभाल से लेकर खेत-खलिहान की सारी जवाबदारियाँ उन्हीं के माथे होती हैं। पति के बिना अकेले हाथों इन जवाबदारियों का निर्वाह करना अपने-आप में कितना कठिन है इसका अनुमान सहज लगाया जा सकता है।
प्रश्न 3.
संदेश ग्रहण करने और भेजने में असमर्थ होने पर एक अनपढ़ लड़की को किस वेदना और विपत्ती को भोगना पड़ता है, अपनी कल्पना से लिखिए।
उत्तर :
अनपढ़ रहने की वेदना अपने-आप में सबसे बड़ी वेदना और अभिशाप है। उस पर भी एक लड़की का अनपढ़ रहना तो अपने आप में एक महाभिशाप है। क्योंकि भारतीय समाज में एक तो लड़कियों पर वैसे ही अनेक प्रकार की पाबन्दियाँ होती हैं। उस पर भी जिस नव-विवाहिता का पति परदेश गया हो उसकी तो बात ही क्या करना।
अनपढ़ लड़की खुद तो संदेश भेजने में असमर्थ होती है अतः उसे खत लिखने के लिए किसी ओर का मुँह ताकना पड़ेगा, उससे मिन्नतें करनी पड़ेगी। उसके समय के अनुसार, उसकी अनुकूलता के अनुसार खत लिखवाने जाने होगा। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि अपने पति के प्रति व्यक्त की गयी भावनाएँ-सार्वजनिक होने का खतरा भी बना रहता है।
ठीक यही बात अपने पति का खत आने पर उसे पढ़ने के लिए भी उसे दूसरों के सहारे रहना पड़ता है। कई बातें ऐसी भी होती हैं किसी अन्य के साथ बैठकर पढ़ने में संकोच या लज्जा का सामना करना पड़ता है।
प्रश्न 4.
त्रिलोचन पर एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा बनाई गयी फिल्म देखिए।
Hindi Digest Std 11 GSEB चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती Important Questions and Answers
कविता के साथ
प्रश्न 1.
कवि चम्पा से पढ़ने-लिखने का आग्रह क्यों करते हैं ?
उत्तर :
कवि चम्पा से पढ़ने-लिखने का आग्रह इसलिए करते हैं कि जीवन में शिक्षा का बड़ा महत्त्व है। चंपा जैसी अनपढ़ लड़की के लिए तो ओर भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। यदि भविष्य में उसका पति रोजीरोटी की तलाश में गाँव छोड़ किसी महानगर में जायेगा तब उसके द्वारा भेजे गये पत्र को पढ़ने के लिए उसे दूसरे के आश्रित न रहना पड़े और उसे स्वयं खत भेजना हो तो भी।
प्रश्न 2.
कविता की नायिका चंपा किसके प्रतीक का प्रतिनिधित्व करती है ?
उत्तर :
कविता की नायिका चंपा देश की निरक्षर व ग्रामीण स्त्रियों के प्रतीक का प्रतिनिधित्व करती है। ये अबोध बालिकाएँ प्राय उपेक्षा का शिकार होती हैं। ये पढ़ाई-लिखाई को निरर्थक समहाकर पढ़ने के अवसर को त्याग देती हैं।
प्रश्न 3.
विवाह और पति के बारे में चंपा के क्या विचार हैं ?
उत्तर :
जब कवि चंपा से विवाह की बात करता है तो चंपा विवाह की बात सुनते ही लजाकर शादी करने से मना करती है, परंतु जब पति की बात आती है तो वह सदैव उसे अपने साथ रखने की बात कहती है। यह पति को अलग करनेवाले कलकत्ता शहर के विनाश की कामना तक करती है।
प्रश्न 4.
कविता में गाँधी जी का प्रसंग किस संदर्भ में आया है और क्यों ?
उत्तर :
कविता में गाँधी जी का प्रसंग साक्षरता के सिलसिले में आया है। गाँधी जी की इच्छा थी कि सभी लोग पढ़ना-लिखना सीखें। गाँव में गाँधी जी का अच्छा प्रभाव है। कवि इसी प्रभाव के जरिए चंपा को पढ़ने के लिए तैयार करना चाहता है। इस कारण कविता में गाँधी जी का प्रसंग आया है।
प्रश्न 5.
‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता का केन्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता ‘धरती’ संग्रह में संकलित है। यह पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त करती है। इसमें ‘अक्षरों’ के लिए ‘काले-काले’ विशेषण का प्रयोग किया गया है जो एक ओर शिक्षा-व्ययस्था के अंतर्विरोधों को उजागर करता है तो दूसरी ओर उस दारूण यथार्थ से भी हमारा परिचय कराता है, जहाँ आर्थिक मजबूरियों के चलते घर टूटते हैं।
काव्य नायिका चंपा अनजाने ही उस शोषक व्यवस्था के प्रतिपक्ष में खड़ी हो जाती है, जहाँ भविष्य को लेकर उसके मन में अनजान खतरा है। यह कहती है कलकत्ते पर बजर गिरे। कलकत्ते पर वन गिरने की कामना, जीवन के खुरदरे यथार्थ के प्रति चंपा के संघर्ष और जीवन को प्रकट करती है।
निम्नलिखित विकल्पों में से योग्य विकल्प पसंद करके प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
प्रश्न 1.
त्रिलोचन शास्त्री का मूल नाम क्या था ?
(A) वासुदेव सिंह
(B) भूषण सिंह
(C) देव सिंह
(D) ब्रिजभूषण
उत्तर :
(A) वासुदेव सिंह
प्रश्न 2.
त्रिलोचन शास्त्री का जन्म कब हुआ था ?
(A) 1916
(B) 1917
(C) 1918
(D) 1919
उत्तर :
(B) 1917
प्रश्न 3.
‘उस जनपद का कवि हूँ’ किसकी रचना है ?
(A) दुष्यंत
(B) अज्ञेय
(C) भवानी
(D) त्रिलोचन
उत्तर :
(D) त्रिलोचन
प्रश्न 4.
सन् 1981 में त्रिलोचन शास्त्री को किस कृति के लिए ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया ?
(A) धरती
(B) दिगन्त
(C) ताप के ताये हुए दिन
(D) तुम्हें सौंपता हूँ
उत्तर :
(C) ताप के ताये हुए दिन
प्रश्न 5.
त्रिलोचन के पिता का नाम क्या था ?
(A) मगरदेव सिंह
(B) देवसिंह
(C) जगत सिंह
(D) जगरदेव सिंह
उत्तर :
(D) जगरदेव सिंह
प्रश्न 6.
त्रिलोचन जी की माता का नाम क्या था ?
(A) मनबरता देवी
(B) देवी
(C) मालती
(D) माला
उत्तर :
(A) मनबस्ता देवी
प्रश्न 7.
‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता के रचनाकार कौन हैं ?
(A) भवानीप्रसाद मिश्र
(B) प्रेमचंद
(C) त्रिलोचन शास्त्री
(D) दुष्यंतकुमार
उत्तर :
(C) त्रिलोचन शास्त्री
प्रश्न 8.
“चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता की नायिका कौन है ?
(A) चमेली
(B) चंपा
(C) फूलमती
(D) सुन्दरी
उत्तर :
(B) चंपा
प्रश्न 9.
चंपा किसकी लड़की है ?
(A) मोहन
(B) सोहन
(C) सुरेन्द्र
(D) सुन्दर
उत्तर :
(D) सुंदर
प्रश्न 10.
चंपा किसको लेकर चरवाही करने जाती है ?
(A) चौपायों (गाय, भैंस)
(B) बिल्लियों
(C) मुर्गी
(D) कोई नहीं
उत्तर :
(A) चौपायों (गाय, भैंस)
प्रश्न 11.
चंपा कभी-कभी कवि की क्या चुरा लेती है ?
(A) स्याही
(B) पैसा
(C) कलम
(D) किताब
उत्तर :
(C) कलम
प्रश्न 12.
सब जन पढ़ना-लिखना सीखें किसकी इच्छा है ?
(A) नेहरू बाबा
(B) सुभाष
(C) लोकमान्य
(D) गाँधी बाबा
उत्तर :
(D) गाँधी बाबा
प्रश्न 13.
चंपा कवि को किस बात के लिए मना कर देती है ?
(A) पढ़ने
(B) सीखने
(C) लिखने
(D) बोलने
उत्तर :
(A) पढ़ने
प्रश्न 14.
चंपा किस पर बजर गिरने की बात कहती है ?
(A) कलकत्ता
(B) मुम्बई
(C) दिल्ली
(D) अहमदाबाद
उत्तर :
(A) कलकत्ता
प्रश्न 15.
कौन गाँव की उन निरक्षर लड़कियों की प्रतीक है जिन्हें पढ़ने-लिखने का अवसर नहीं मिल पाता है ?
(A) सुन्दर
(B) चंपा
(c) चमेली
(D) माला
उत्तर :
(B) चंपा
प्रश्न 16.
चंपा किसे हमेशा अपने साथ रखने की बात करती है ?
(A) माँ
(B) बाप
(C) बालम
(D) बहन
उत्तर :
(C) बालम
योग्य विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
प्रश्न 1.
- ‘देशकाल’ कहानी संग्रह के रचनाकार ………… हैं। (त्रिलोचन शास्त्री, अज्ञेय, दिनकर पंत)
- 1983-84 में त्रिलोचन जी को गजलों और रूबाईयों के महत्त्वपूर्ण संग्रह …………… पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सम्मान पुरुस्कार प्रदान किया गया। (शब्द, गुलाब और बुलबुल, धरती, दिगन्त)
- त्रिलोचन शास्त्री का निधन सन् ………….. में हुआ था। (1991, 1990, 1992, 1925)
- त्रिलोचन नाम गाँव के संस्कृत गुरु श्री ………….. ने दिया था। (देवीदत्त, देवव्रत, देवदत्त, देवराज)
- त्रिलोचन जी की पत्नी का नाम …………….. था। (मूर्ति, जया, जयमूर्ति, मंगलमूर्ति)।
- ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता उनके ……… नामक काव्य संग्रह में संकलित है। (शब्द, धरती, चैत, अरधान)
- चंपा …………… की लड़की है। (सुरेन्द्र, सुंदर, नरेन्द्र, सुरेश)
- सुंदर एक …………… है। (ग्वाला, किसान, श्रमिक, शिक्षक)
- ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता के रचनाकार ………. हैं। (त्रिलोचन, दिनकर, पाश, महादेवी वर्मा)
- चंपा कहती है : तुम …………. ही गोदा करते हो दिन भर। (कपड़ा, चादर, कागद, रूमाल)
- त्रिलोचन हिंदी साहित्य में ………….. काव्यधारा के प्रमुख कयि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। (स्वच्छंदतावादी, प्रयोगशील, प्रगतिशील, छायावादी)
- चंपा कवि द्वारा बोले गए …………. को सुनती है। (अक्षरों, गानों, कहानी, चित्रों)
- चंपा को ……….. होता है कि इन काले अक्षरों से कवि ध्वनियाँ कैसे बोल लेता है। (आश्चर्य, दुःख, खुशी, उत्साह).
- चंपा के माध्यम से कवि ने समाज में फैली ……….. की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। (गंदगी, साक्षरता, निरक्षरता, अज्ञानता)
- चंपा कवि की………………. चुरा लेती है। (किताब, चश्मा, कलम, अंगूठी)
- कवि चंपा को ………… की सीख देता है। (खेलने, घर संभालने, रसोई बनाने, पढ़ने-लिखने)
- लोग गाँव को छोड़ ………… की तलाश में कलकत्ता शहर जाते हैं। (शिक्षा, पत्नी, रोजगार, घर)
- चंपा ………. को झूठा कहती है। (कवि, बालम, गाँधी जी, माँ)
- चंपा अपने बालम को …………. नहीं जाने देने की बात कहती है। (अहमदाबाद, कलकत्ता, मुम्बई, चैबई)
- चंपा कलकत्ते पर ………….. गिरने की बात करती है। (बजर, बाजरी, वानर, बम)
उत्तर :
- त्रिलोचन शास्त्री
- गुलाब और बुलबुल
- 1990
- देवदत्त
- जयमूर्ति
- धरती
- सुंदर
- ग्वाला
- त्रिलोचन
- कागद
- प्रगतिशील
- अक्षरों
- आश्चर्य
- निरक्षरता
- कलम
- पढ़ने-लिखने
- रोजगार
- कवि
- कलकत्ता
- बजर।
सही या गलत बताइए।
प्रश्न 1.
- ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता के रचनाकार त्रिलोचन नहीं है।
- त्रिलोचन का जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के चिरानी पट्टी में सन् 1917 में हुआ।
- ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता ‘धरती’ संग्रह में संकलित नहीं है।
- इसमें अक्षरों के लिए ‘काले-काले’ विशेषण का प्रयोग किया गया है।
- चंपा गाँव की अनपढ़ बालिका नहीं है।
- चंपा के माध्यम से कवि ने समाज में फैली निरक्षरता की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।
- चंपा सुंदर की लड़की नहीं है।
- चंपा का व्यवहार अच्छा है, वह नटखट है, कभी-कभी बहुत शरारतें करती है।
- कवि चंपा को पढ़ने-लिखने की सीख देता है ताकि कष्ट के समय उसे कोई परेशानी न हो।
- कवि का मानना है कि ग्रामीण भी गाँधी जी का बहुत सम्मान करते हैं तथा उनकी बात मानते हैं, उन्हें लगा कि शिक्षा के बार, में गाँधी जी की इच्छा जानने के बाद चंपा पढ़ना सीखेगी।
- ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता के महत्त्व को सहज तरीके से समझाया गया है।
- ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता में महानगरों की तरफ पलायनवादी प्रवृत्ति को नहीं बताया गया है।
उत्तर :
- गलत
- सही
- गलत
- सही
- गलत
- सही
- गलत
- सही
- सही
- सही
- सही
- गलत
अपठित पद्य
नीचे दी गई कविता को पढ़कर उस पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
अरी वरुणा की शांत कछार !
तपस्वी के विराग की प्यार !
सतत व्याकुलता के विश्राम, अरे ऋषियों के कानन-कुंज,
जगत नश्वरता के लघु त्राण, लता, पादप, सुमनों के पुंज !
तुम्हारी कुटियों में चुपचाप, चल रहा था उज्ज्वल व्यापार,
स्वर्ग की वसुधा से शुचि संधि, गूंजता था जिससे संसार।
अरी वरुणा की शान्त कछार !
तपस्वी के विराग की प्यार !
तुम्हारे कुंजों में तल्लीन, दर्शनों के होते थे वाद –
देवताओं के प्रादुर्भाव, स्वर्ग के स्वप्नों के संवाद !
स्निग्ध तरु की छाया में बैठ परिषदें करती थी सुविचार –
भाग कितना लेगा मस्तिष्क, हृदय का कितना है अधिकार।
अरी वरुणा की शान्त कछार !
तपस्वी के विराग की प्यार !
छोड़कर पार्थिव भोग विभूति, प्रेयसी का यह दुर्लभ प्यार,
पिता का वक्ष भरा वात्सल्य, पुत्र का शैशव-सुलभ दुलार।
दुःख का करके सत्य निदान, प्राणियों का करने उद्धार,
सुनाने आरण्यक संवाद, तथागत आया तेरे द्वार।
अरी वरुणा की शान्त कछार !
तपस्वी के विराग की प्यार !
– जयशंकर ‘प्रसाद’
प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
प्रश्न 1.
‘तपस्वी के विराग’ से कवि किसकी ओर संकेत कर रहा है ?
उत्तर :
‘तपस्वी के विराग’ से कवि महात्मा बुद्ध की ओर संकेत कर रहा है।
प्रश्न 2.
कवि ने ऋषियों के ‘कानन-कुंज’ की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं ?
उत्तर :
कवि कहता है कि ये कानन कुंज व्याकुल व्यक्तियों को उनकी व्याकुलता दूर करने के विश्रामस्थल हैं। इनके पेड़, लताएँ तथा पुष्पपुंज नश्वरता से छुटकारा देनेवाले हैं।
प्रश्न 3.
कुंजों में होनेवाली परिषदों में किन बातों पर सुविचार चलता था ?
उत्तर :
कुंजों में होनेवाली परिषदों में दर्शनों, स्वर्ग के स्वप्नों के वाद-संवाद के साथ ही इस बात पर भी सुविचार होता था कि जीवन में हृदय तथा बुद्धि का कितने अंशों तक उपयोग करना चाहिए।
प्रश्न 4.
‘तथागत’ किस उद्देश्य से वरुणा के शांत कछार में आए ?
उत्तर :
दुःखों का सत्य-निदान करने, प्राणियों का उद्धार करने तथा जीवों से आरण्यक संवाद करने हेतु तथागत वरुणा की शांत कछार में आए थे।
प्रश्न 5.
‘तथागत’ के दो नाम और लिखिए।
उत्तर :
‘तथागत’ यानी गौतम बुद्ध, अमिताभ।
चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती Summary in Hindi
कवि-परिचय :
मूल नाम : वासुदेव सिंह
जन्म : सन् 1917 चिरानी पट्टी जिला सुल्तानपुर (उ.प्र.)
प्रमुख रचनाएँ
काव्य संग्रह :
- धरती (1945)
- गुलाब और बुलबुल (1956) (गज़लों और रूबाइयों का संग्रह)
- दिगन्त (1957) (सोनेट संग्रह)
- ताप के ताये हुए दिन (1980)
- शब्द (1980)
- उस जनपद का कवि हूँ (1981)
- अरधान (1984)
- अमोला (1986)
- तुम्हें सौंफ्ता हूँ (1985)
- अनकहनी भी कुछ कहनी है (1985)
- फूल नाम है एक (1985)
- चैती (1987)
- सबका अपना आकाश (1987)
- मेरा घर (2002)
- जीने की कला (2004)
कहानी संग्रह :
- देशकाल (1986) डायरी
- रोजनामचा (1992)
आलोचना :
- काव्य और अर्थबोध (1995)
- मेरे साक्षात्कार (2004)
पुरस्कार :
सन् 1981 में ‘ताप के ताए हुए दिन’ नामक काव्य-कृति पर त्रिलोचन को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया । 1983-84 में इनके गज़लों और रुबाइयों के महत्त्वपूर्ण संग्रह ‘गुलाब और बुलबुल’ पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सम्मान पुरस्कार प्रदान किया गया । 1981 में त्रिलोचन को मध्य प्रदेश के पुरस्कार ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’ से सम्मानित किया गया । शलाका सम्मान, महात्मा गाँधी पुरस्कार (उ. प्र.) ।
मृत्यु – सन् 1990
त्रिलोचन का व्यक्तित्व : हिन्दी की प्रगतिशील कविता के प्रमुख हस्ताक्षर त्रिलोचन का वास्तविक नाम वासुदेव सिंह है । इनका जन्म 20 अगस्त, 1917 को चिरानी पट्टी – कटघरापट्टी, जिला सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था । किंतु श्री एस. पी. चैतन्य के साथ हुई बातचीत में त्रिलोचन कहते हैं ‘मेरी वास्तविक उम्र सर्टिफिकेट की उम्र से डेढ़ साल अधिक है । मेरा जन्म 1917 में नहीं, अपितु 1916 में हुआ था ।’
‘शास्त्री’ उपाधि और त्रिलोचन साहित्यिक नाम से जुड़कर त्रिलोचन शास्त्री ने प्रारंभिक रचनाएँ की; बाद में सिर्फ ‘त्रिलोचन’ नाम से ही पुस्तकें प्रकाशित हुई । त्रिलोचन नाम गाँव के संस्कृत गुरु श्री देवदत्त ने दिया था । गुरु श्री देवदत्त तिवारी ब्राह्मण थे किंतु नाम के साथ तिवारी नहीं लिखते थे । उन्होंने निर्देश दिया था कि ‘त्रिलोचन’ के साथ कभी ‘सिंह’ मत जोड़ना ।
शायद इसी कारण त्रिलोचन ने ‘सिंह’ ही नहीं बाद में ‘शास्त्री’ लिखना भी छोड़ दिया । सिर्फ त्रिलोचन । इनके पिता का नाम श्री जगरदेवसिंह तथा माता का नाम मनबरता देवी था । इनकी पत्नी का नाम जयमूर्ति देवी था, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं । त्रिलोचन की शिक्षा गाँव में दोस्तपुर में आरंभ हुई । वाराणसी से इन्होंने ‘साहित्यरत्न’ डिग्री हासिल की ।
इन्होंने एम.ए. (पूर्वार्द्ध) बी.एच.यु. (बनारस हिंदू युनिवर्सिटी) से अंग्रेजी साहित्य से किया । त्रिलोचन का समूचा जीवन विविधता से भरा हुआ है । इन्होंने अपने बहुत से सर्जनात्मक कार्यों के द्वारा हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता और काव्य को नयी दिशा दी । 1930 से 1941 तक इन्होंने बनारस से निकलनेवाली मासिक पत्रिका ‘कहानी’ के सम्पादन कार्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।
1943 से 1946 तक त्रिलोचन ने ‘हंस’ नामक अत्यंत महत्त्वपूर्ण साहित्यिक पत्र के सम्पादन-कार्य में अत्यधिक सहयोग किया । 1946 से 1950 तक ये मासिक पत्र ‘चित्ररेखा’ तथा ‘बृहद हिन्दी कोश’ के सहायक सम्पादक रहे । 1952 से 1953 तक ये गणेशराय नेशनल इण्टर कॉलेज, डोभी, जौनपुर में अंग्रेजी के प्रवक्ता रहे ।
1953 से 1954 तक इन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा निर्गत ‘हिन्दी-अंग्रेजी मानक-कोश’ के संपादन में महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया । 1954 से जून 1959 तक त्रिलोचन ने ‘हिन्दी शब्द-सागर’ के सम्पादन का कार्य किया । 1959 में ये राँची राष्ट्रीय प्रेस में मैनेजर हो गये । 1960 से 1967 तक त्रिलोचन ‘हिन्दी शब्द-सागर’ का संशोधित परिवर्तित संस्करण निकालने में जुटे रहे ।
1967 से 1972 तक इन्होंने विदेशी छात्रों को हिन्दी, संस्कृत और उर्दू की शिक्षा दी । 1972 से 1975 तक दैनिक पत्र ‘जनवार्ता के सहायक सम्पादक रहे । 1975 से 1978 तक ये हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल के भाषा-सम्पादक हे । 1978 से 10 मार्च, 1984 तक ये उर्दू विभाग, द्वैमासिक कोश (उर्दू-हिन्दी) परियोजना, दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े रहे । 28 मार्च, ’84 के ये मुक्तिबोध – सृजन पीठ के अध्यक्ष हुए ।
त्रिलोचन द्वारा किया गया बहुत-सा कार्य उनके संघर्ष को प्रमाणित करता है । इन्होंने कई कोशों के सम्पादन कार्य में सहयोग दिया, जो इनके भाषा-ज्ञान की समृद्धि का सूचक है । विभिन्न पत्रों का सम्पादन कार्य इनके कुशल, तटस्थ सम्पादक होने को प्रमाणित करता है ।
आज भी त्रिलोचन की लेखनी अपनी पूरी स्वरा में सक्रिय है, इसका कारण यह है कि एक सृजनशील व्यक्ति की लेखनी कभी विराम ले ही नहीं सकती । वह चीजों को महसूस करता है तथा अपने सशक्त शिल्प-पक्ष द्वारा उसे वाणी देता है । यह उसके लिए अनिवार्य है।
विवेचकों ने त्रिलोचन को ‘साधारण का असाधारण कवि’ भी कहा है । त्रिलोचन प्रगतिशील कवि हैं जो औसत भारतीय जनों के एक सशक्त कवि हैं । ये हिन्दी में निराला के बाद के दूसरे किसान कवि हैं, जिनमें भारतीयता का संस्कार कूट-कूटकर भरा है । अत्यंत सहज, अर्थयुक्त इनका व्यक्तित्व एवं काव्य भी है । तभी तो मानवीय अनुभूतियाँ थिराई हुई दृष्टिगत होती है ।
‘मानवता की पुकार’ इनकी कविता का मुख्य स्वर है । कविवर गजानन माधव मुक्तिबोध के शब्दों में – ‘त्रिलोचन की वाणी का ओज उनके हृदय की प्रथा नहीं है, वह अमर मानवता की पुकार है ।’ यह कवि काल को अपने में समेटे हुए कालातीत बन जाता है । गीत, गजल, रूबाई, सॉनेट, काव्य-नाटक, प्रबंध, कविता आदि अनेक काव्य रूपों से समृद्ध शब्द के जादूगर कवि त्रिलोचन का समूचा काव्य-संचार निजी वैशिष्ट्य के कारण समकालीन कविता में स्थायी महत्त्व रखता है ।
त्रिलोचन प्रगतिवादी कवि होते हुए भी ये नागार्जुन और केदारनाथ छाप के प्रगतिवादी नहीं हैं । इनकी प्रगतिवाद की श्रेणी में आनेवाली कविताएँ संख्या में कम हैं पर अवध जनपद के सामान्य जीवन के संघर्ष और ऋतु-चित्र उनकी कविता में भरे पड़े हैं ।
स्वयं के संघर्षपूर्ण जीवन को ध्यान में रखकर त्रिलोचन ने जन-संवेदना को अपनी रचनाओं में काव्यानुभूति द्वारा प्रकट किया है । तभी तो उन्हें सामान जन के प्रबल पक्षधर भी कहा जा सकता है । प्राकृतिक सौंदर्य, प्रेम आत्मपरकता के इस कवि की कविता में लोक-जीवन के गहरे साक्षात्कार को भी अभिव्यक्त किया है । तभी तो इनके व्यक्तित्व की गहरी छाप इनके विभिन्न काव्य-रूपों एवं बिम्बों में भी नजर आते हैं ।
इसीलिए तो इनकी काव्य भाषा आलोचना-शास्त्र के लिए चुनौती होते हुए शिल्प-विहीन सपाट-बयानीसी लगती है । इनकी भाषा छायावादी रूमानियत से मुक्त है तथा उसका ठाठ ठेठ गाँव की जमीन से जुड़ा हुआ है । त्रिलोचन हिंदी में सॉनेट (अंग्रेजी छंद) को स्थापित करनेवाले कवि के रूप में भी जाने जाते हैं ।
त्रिलोचन का कवि बोल-चाल की भाषा को चुटीला और नाटकीय बनाकर कविताओं को नया आयाम देता है । कविता की प्रस्तुति का अंदाज कुछ ऐसा है कि वस्तु और रुप की प्रस्तुति का भेद नहीं रहता । उनका कवि इन दोनों के बीच फाँक की गुंजाइश नहीं छोड़ता ।
‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ शीर्षक कविता उनके ‘धरती’ नामक काव्यसंग्रह में संकलित है । प्रस्तुत कविता में कवि ने गाँवों के टूटने और शहर के आकर्षण के कारणों को सांकेतिक रूप में अभिव्यक्त किया है । अनपढ़ चम्पा के माध्यम से कवि ने शिक्षा तंत्र में फैले अन्तर विरोधों को अत्यंत सहज भाव से उजागर किया है ।
काव्य के अन्त में जब वह यह कहती है कि ‘कलकत्ते पर बजर गिरे’ तो इसमें यह कटु यथार्थ भी व्यक्त हुए बिना नहीं रहता आखिर आर्थिक विपन्नता और विवशता के कारण ही तो गाँव टूट रहे हैं । कवि ने परोक्ष रूप से ग्रामीण भोली-भाली जनता को अपने अपने तरीकों से लूटनेवाले शोषण के केन्द्रों पर भी प्रहार किया है । वही चम्पा की जिजीविषा और संघर्ष चेतना भी ध्यान आकर्षित करती है ।
काव्य का सारांश :
‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कवि के ‘धरती’ नामक काव्य संकलन में संग्रहीत है । आर्थिक विपन्नता के कारण रोजीरोटी की तलाश में ग्रामीण युवकों के शहर में पलायन की वेदना तथा तद्जन्य लोक अनुभवों की पीड़ा की अभिव्यक्ति इस कविता का मूल स्वर है । शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्विरोधों को उजागर करती काव्यनायिका चंपा यहाँ अनजाने ही शोषण व्यवस्था के विरोध में खड़ी दिखती है ।
कविता में ‘अच्छर’ (अक्षर) के लिए काले-काले विशेषण तो कवि की ओर से दिया गया है जो शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्विरोध को व्यक्त करता है तो दूसरी ओर काव्यनायिका द्वारा ‘कलकत्ते पर बजर गिरे’ जैसी कामना भविष्य को लेकर उसके मन में उठनेवाले अनजान खतरे का भी संकेत देता है । वह इस बात पर दृढ़ है कि वह अपने जीवन साथी को कमाई करने के लिए कोलकाता न जाने देगी ।
काव्य का भावार्थ :
चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती
मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है
खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है
उसे बड़ा अचरज होता है :
इन काले चीन्हों से कैसे ये सब स्वर
निकला करते हैं ।
प्रस्तुत काव्यांश में कवि त्रिलोचन ने भोले-भाले अनपढ़ ग्राम्य बालिका की जिज्ञासा को अत्यंत सहज भाव में व्यक्त करते हुए कहा है कि चम्पा काले काले अच्छरों को नहीं पहचान पाती, नहीं पढ़ पाती । कवि को पढ़ते हुए देखकर वह उनके पास आकर खड़ी हो जाती है । कवि के पास ही खड़ी-खड़ी चम्पा चुपचाप कवि को सुनती रहती है और चेहरे पर आश्चर्य के भावों को उभारती है ।
यह मन ही मन सोचती है कि इन काले अक्षरों से ये सब स्वर यानी तरह-तरह की बातें, विचार, प्रसंग और गीत आदि कैसे फूट पड़ते हैं । चम्पा को यह आश्चर्य होना स्वाभाविक है क्योंकि अनपढ़ लोगों के लिए तो ‘काले अक्षर भैंस बराबर’ होते हैं । यहाँ कवि ने अक्षर के लिए ‘काले काले’ विशेषण का प्रयोग किया है ।
जो शिक्षा तंत्र में फैले विसंगतियों, शिक्षा के अधिकार से वंचित लोगों, विशेषकर ग्राम्य जनों और उसमें भी ग्राम्य बालिकाओं के वंचित रहने या रखे जाने के षड़यंत्र की ओर भी इशारा किया है । यहाँ ‘अच्छर’, ‘चीन्हती’ आदि शब्द प्रयोग बड़े ही सटीक हैं । भाषा पात्रानुकूल है और कथ्य को हृदयस्पर्शी बनाने में सक्षम हैं ।
चंपा सुन्दर की लड़की है
सुन्दर ग्वाला है : गाय-भैंसे रखता है
चंपा चौपार्यों को लेकर
चरवाही करने जाती है
चंपा अच्छी है
चंचल है
न ट रा ट भी है
कभी कभी ऊधम करती है
कभी कभी वह कलम चुरा देती है
जैसे तैसे उसे दूर कर जब लाता हूँ
पाता हूँ अब कागज़ गोपब
परेशान फिर हो जाता हूँ।
यहाँ कवि चंपा का सीधा सरल परिचय करवाते हुए कहा है कि चंपा के पिता का नाम सुंदर है । सुंदर एक ग्बाला है जिसके पास अपनी कुछ गाय भैंसे हैं । चंपा उन गाय भैंसों को चराने जाती है । वह अच्छी है । वह स्वभाव से चंचल और नटखट है, हाँ कभीकभार ऊद्यम या शरारत भी कर देती है । कभी-कभी तो वह कांधे की कलम ही चुरा देती है, उन्हें बड़ा परेशान करती है, जैसेतैसे करके वे कलम को ढूंढकर लाते हैं । तो उनके लिखने के कारज ही गायब कर देती है, वे फिर हैरान परेशान हो जाते हैं ।
चंपा कहती है : तुम कागद ही गोदा करते हो दिन भर क्या यह काम बहुत अच्छा है यह सुनकर मैं हँस देता हूँ फिर चंपा चुप हो जाती है । इतना ही नहीं उल्टा उन्हें डाँटते हुए या शिकायत के स्वर में कहती है कि तुम दिन भर कागद ही गोदा करते हो । लिखने के कार्य से या सृजन कार्य से उसको क्या लेना देना, फिर चाहे वह अच्छी रचना हो या बुरी उसे उससे क्या; उसके लिए सब कुछ लिखना नहीं गोदना है, व्यर्थ का श्रम है ।
वह इस काम को अच्छा नहीं समझती । उसके लिए (अनपढ़) तो बोलना, बतियाना, नजर से नजर मिलाना, हँसना-हँसाना, हँसी-ठिठोली करना, तर्क करना, चर्चा करना या आपस में संवाद करना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है । सृजन की साधना से उसका कोई वास्ता नहीं है । उसके इस भोलेपन पर कवि को हँसी आ जाती है और चंपा चुप हो जाती है ।
उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि
चंपा, तुम भी पढ़ लो
हारे गाढ़े काम सरेगा
गांधी बाबा की इच्छा है
सब जन पढ़ना-लिखना सीखें
चंपा ने यह कहा कि
मैं तो नहीं पढूंगी
तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं
वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे
मैं तो नहीं पढूँगी ।
प्रस्तुत कविता उनके ‘धरती’ नामक काव्यसंग्रह में संकलित है जिसका प्रकाशन सन् 1945 में हुआ था । उस समय देश के कवियों, कलाकारों, विचारकों और राजनीतिज्ञों पर गाँधी के विचारों का व्यापक प्रभाव था । प्रस्तुत काव्यांश में भी कवि ने गाँधी जी का हवाला देते हुए चंपा से कहा है कि देखो चंपा तुम थोड़ा-बहुत पढ़ लिख लो ।
यह शिक्षा ज्ञान तुम्हारे जीवन में काम आयेगा । कटिनाई के समय तुम्हें उपयोगी होगा । महात्मा गाँधी जी की भी यही इच्छा है । इसीलिए वह सर्वजन के लिए पढ़ने-लिखने की बात करते हैं । मगर चंपा तो चंपा है वह कवि के इस प्रस्ताव को अच्छा नहीं समझाती । उल्टा कहती है तुम तो कहते थे कि गाँधी बाबा अच्छे हैं ।
यदि वह अच्छे हैं तो पढ़ने-लिखने की बात कैसे कर सकते हैं ? कहने का आशय यह है कि चंपा को विश्वास ही नहीं होता कि गाँधी बाबा ने लोगों को पढ़ने-लिखने की बात कही होगी । क्योंकि चम्पा अनपढ़ है, ग्राम्य बालिका है, उसके गाँव, महौले के अधिकतर बच्चे, उसकी सखी सहेलियाँ भी अनपढ़ होंगे । वो क्या जाने पढ़ाई-लिखाई का महत्त्व ।
उसके लिए तो मुक्त मन से बातें करना-ज्यादा महत्त्वपूर्ण है । वह कवि के मुँह लगी भी तो है । यहाँ परोक्ष रूप से कवि ने भारतीय ग्राम्य जीवन के कटु यथार्थ से भी हमें रूबरू करवाया है । क्योंकि आज भी गरीबी अज्ञानता के घोर अंधकार में डूबे लोगों के बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं । उनके हाथ में कलम की जगह कुदाल है, फावड़ा है । इसलिए तो प्रभाकर श्रोत्रिय लिखते हैं – ‘वे जन से, उसकी रोजमर्रा की समस्याओं से अंतरंग रूप में प्रतिबद्ध होने के कारण प्रगतिशील है।’
मैंने कहा कि चंपा, पढ़ लेना अच्छा है ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी, कुछ दिन बालम संग साथ रह चला जाएगा जब कलकत्ता बड़ी दूर है वह कलकत्ता कैसे उसे सैंदेसा दोगी कैसे उसके पत्र पढ़ोगी चंपा पढ़ लेना अच्छा है ! यहाँ कवि चंपा को पढ़ाई-लिखाई का महत्त्व समझाते हो कहते हैं कि देखो चम्पा तुम्हें नहीं पता कि पढ़ाई-लिखाई का क्या महत्त्व है ।
कल तुम बड़ी हो जाओगी, तुम्हारा विवाह होगा, ससुरोल जाओगी, तुम्हारा पति कुछ दिन तुम्हारे साथ रहकर कमाने-धमाने के लिए कलकत्ता चला जायेगा । कलकत्ता बहुत दूर है । तुम अपने दिल की बातें या अपने संदेशें उस तक कैसे भेजोगी ? यदि तुम्हारा पति कलकत्ते से कोई खत भेजेगा तो तुम कैसे पढ़ोगी । तुम्हें दूसरों का सहारा लेना पड़ेगा । इसलिए कहता हूँ पढ़-लिख लेना अच्छा है । यहाँ कवि ने चंपा के बहाने भारत के पूर्वी प्रदेशों की स्त्रियों की मातक पीड़ा को व्यक्त किया है।
चंपा बोली : तुम कितने झूठे हो, देखा,
हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो
मैं तो ब्याह कभी न करूँगी
और कहीं जो ब्याह हो गया
तो मैं अपने बालम को सँग साथ रखूगी
कलकत्ता मैं कभी न जाने दूंगी
कलकत्ते पर बजर गिरे ।
चंपा अपने ही अंदाज में उत्तर देते हुए कवि को कहती है कि ‘हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो !’ पहली बात तो यह कि ब्याह करूँगी ही नहीं और यदि मेरा ब्याह हो भी गया तो मैं अपने बालम को कलकत्ता नहीं जाने दूंगी, अपने साथ ही रचूगी । कलकत्ते पर ‘बजर’ गिरे । यहाँ कवि ने ग्राम्य जनों की आर्थिक मजबूरियों के चलते शहर की ओर ताकने की विवशता के सवाल को उठाया है ।
वहीं कलकत्ते पर वन गिरने की इच्छा, जीवन के ठोस यथार्थ के प्रति, चंपा के संघर्ष और उसकी जिजीविषा को भी प्रकट करती है । प्रस्तुत काव्यांश में बोलचाल की भाषा का अपना ठाठ है, अपनी एक गरिमा है । ‘हाय-राम, कलकत्ते पर बजर गिरे’ जैसे शब्द इसका प्रमाण है।
शब्द-छवि :
- चीन्हती – पहचानती
- चीन्हों – अक्षरों
- चोपायों – चार पैरोंवाले (जानवर के लिए) यहाँ गाय-भैंसों के लिए प्रयुक्त हुआ है।
- कागद – कागज
- हारे गाढ़े काम सरेगा – कठिनाई में काम आएगा
- बालम – पति
- बजर गिरे – वज्र गिरे, भारी विपत्ति आए
- अचरज – आश्चर्य, हैरानी
- अच्छर – अक्षर
- चरवाही करना – पशुओं को चराना
- उद्यम – शरारत
- ब्याह – विवाह
- संग – साथ
- ग्वाला – गाय चरानेवाला
टिप्पण :
कलकत्ता – यहाँ कलकत्ता सिर्फ कलकत्ता शहर के लिए ही उपयुक्त नहीं हुआ है । लेकिन भारत के उन सभी महानगरों का प्रतीक है, जिसकी चकाचौंध और रोजगारी की तलाश में ग्रामीण युया उस ओर अभिमुख/आकर्षित होते हैं ।