<div class=”entry-content clear” itemprop=”text” style=”height: auto !important;”>
<span id=”dpsp-post-sticky-bar-markup” data-mobile-size=”720″></span><span id=”dpsp-post-content-markup” data-image-pin-it=”false”></span><p>Gujarat Board <a href=”https://bhavyeducation.com/gseb-solutions-class-11-sanskrit/”>GSEB Solutions Class 11 Sanskrit</a> Chapter 9 काव्यमधुबिन्दवः Textbook Exercise Questions and Answers, Notes Pdf.</p>
<h2>Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 9 काव्यमधुबिन्दवः</h2>
<p><strong>GSEB Solutions Class 11 Sanskrit काव्यमधुबिन्दवः Textbook Questions and Answers</strong></p>
<p style=”text-align: center;”><span style=”color: #0000ff;”>काव्यमधुबिन्दवः Exercise</span></p>
<p><span style=”color: #0000ff;”>1. योग्यं विकल्पं चित्वा उत्तरं लिखत।</span></p>
<p>પ્રશ્ન 1.<br>
महीमण्डलमण्डनानि के सन्ति ?<br>
(क) काकाः<br>
(ख) शुकाः<br>
(ग) मयूराः<br>
(घ) हंसाः<br>
उत्तर :<br>
(घ) हंसाः</p>
<p><img src=”https://bhavyeducation.com/wp-content/uploads/2021/03/bhavy-logo-final-01.png” alt=”GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 9 काव्यमधुबिन्दवः” width=”167″ height=”17″ data-pin-nopin=”true”></p>
<p>પ્રશ્ન 2.<br>
विप्रयोगः – इत्यस्य कोऽर्थः ?<br>
(क) वियोगः:<br>
(ख) संयोगः<br>
(ग) विप्रलाभः<br>
(घ) विमोहः<br>
उत्तर :<br>
(क) वियोगः</p>
<p>પ્રશ્ન 3.<br>
स्नेहं के मुञ्चन्ति ?<br>
(क) मुद्गाः (ख) तिलाः<br>
(ग) तैलम्<br>
(घ) कलमाः<br>
उत्तर :<br>
(ख) तिलाः</p><div class=”google-auto-placed ap_container” style=”width: 100%; height: auto; clear: both; text-align: center;”><ins data-ad-format=”auto” class=”adsbygoogle adsbygoogle-noablate” data-ad-client=”ca-pub-5202228354256304″ data-adsbygoogle-status=”done” style=”display: block; margin: auto; background-color: transparent; height: 0px;” data-ad-status=”unfilled”><div id=”aswift_2_host” style=”border: none; height: 0px; width: 744px; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; visibility: visible; background-color: transparent; display: inline-block; overflow: hidden; opacity: 0;” tabindex=”0″ title=”Advertisement” aria-label=”Advertisement”><iframe id=”aswift_2″ name=”aswift_2″ style=”left: 0px; position: absolute; top: 0px; border: 0px; width: 744px; height: 0px;” sandbox=”allow-forms allow-popups allow-popups-to-escape-sandbox allow-same-origin allow-scripts allow-top-navigation-by-user-activation” width=”744″ height=”0″ frameborder=”0″ marginwidth=”0″ marginheight=”0″ vspace=”0″ hspace=”0″ allowtransparency=”true” scrolling=”no” src=”https://googleads.g.doubleclick.net/pagead/ads?client=ca-pub-5202228354256304&output=html&h=280&adk=3651454548&adf=3417169089&pi=t.aa~a.2614655166~i.19~rp.4&w=744&fwrn=4&fwrnh=100&lmt=1664448810&num_ads=1&rafmt=1&armr=3&sem=mc&pwprc=9649435001&psa=1&ad_type=text_image&format=744×280&url=https%3A%2F%2Fgsebsolutions.in%2Fgseb-solutions-class-11-sanskrit-chapter-9%2F&fwr=0&pra=3&rh=186&rw=744&rpe=1&resp_fmts=3&wgl=1&fa=27&uach=WyJXaW5kb3dzIiwiMTAuMC4wIiwieDg2IiwiIiwiMTA1LjAuNTE5NS4xMjciLFtdLGZhbHNlLG51bGwsIjY0IixbWyJHb29nbGUgQ2hyb21lIiwiMTA1LjAuNTE5NS4xMjciXSxbIk5vdClBO0JyYW5kIiwiOC4wLjAuMCJdLFsiQ2hyb21pdW0iLCIxMDUuMC41MTk1LjEyNyJdXSxmYWxzZV0.&dt=1664448810733&bpp=5&bdt=2796&idt=5&shv=r20220927&mjsv=m202209220101&ptt=9&saldr=aa&abxe=1&cookie=ID%3Deb68ee7b5bb6b8b7-2208ba6bbfd60071%3AT%3D1664447142%3ART%3D1664447142%3AS%3DALNI_MZzvwiFah8MxTw2c6IxiiSpwAnu-g&gpic=UID%3D000009fec41fec59%3AT%3D1664447142%3ART%3D1664447142%3AS%3DALNI_Mbw1WYyb2lKaSAwuZJWa-FpyhA_kg&prev_fmts=0x0%2C1200x280&nras=3&correlator=3398596431920&frm=20&pv=1&ga_vid=1305702814.1664448810&ga_sid=1664448810&ga_hid=1294551398&ga_fc=0&u_tz=330&u_his=1&u_h=768&u_w=1366&u_ah=728&u_aw=1366&u_cd=24&u_sd=1&dmc=4&adx=129&ady=2030&biw=1349&bih=625&scr_x=0&scr_y=89&eid=44759875%2C44759926%2C44759842%2C31069956%2C42531706%2C44773614%2C44774606&oid=2&pvsid=2895080486681853&tmod=608694005&uas=0&nvt=1&ref=https%3A%2F%2Fgsebsolutions.in%2Fgseb-solutions-class-11-sanskrit%2F&eae=0&fc=1408&brdim=0%2C0%2C0%2C0%2C1366%2C0%2C1366%2C728%2C1366%2C625&vis=1&rsz=%7C%7Cs%7C&abl=NS&fu=128&bc=31&ifi=3&uci=a!3&btvi=1&fsb=1&xpc=ErpE1gFES1&p=https%3A//gsebsolutions.in&dtd=144″ data-google-container-id=”a!3″ data-google-query-id=”CPP-soDrufoCFVNBiwodUmECYA” data-load-complete=”true”></iframe></div></ins></div>
<p>પ્રશ્ન 4.<br>
कलमाः नाम के ?<br>
(क) अक्षताः<br>
(ख) गोधूमाः<br>
(ग) तिलाः<br>
(घ) मुद्गाः<br>
उत्तर :<br>
(क) अक्षताः</p>
<p>પ્રશ્ન 5.<br>
रणनदीमध्ये कैवर्तकः कः ?<br>
(क) भीष्मः<br>
(ख) केशवः<br>
(ग) द्रोणाचार्यः<br>
(घ) दुर्योधनः<br>
उत्तर :<br>
(ख) केशवः</p>
<p><img src=”https://bhavyeducation.com/wp-content/uploads/2021/03/bhavy-logo-final-01.png” alt=”GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 9 काव्यमधुबिन्दवः” width=”167″ height=”17″ data-pin-nopin=”true”></p>
<p><span style=”color: #0000ff;”>2. अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदानि पाठात् चित्वा लिखत।</span></p>
<table>
<tbody>
<tr>
<td width=”96″>(1) मन्दाकिनी</td>
<td width=”138″>…………………………….</td>
</tr>
<tr>
<td width=”96″>(2) त्रिनेत्रः</td>
<td width=”138″>…………………………….</td>
</tr>
<tr>
<td width=”96″>(3) कमलम्</td>
<td width=”138″>…………………………….</td>
</tr>
<tr>
<td width=”96″>(4) मरालः</td>
<td width=”138″>…………………………….</td>
</tr>
</tbody>
</table>
<p>उत्तर :</p>
<table>
<tbody>
<tr>
<td width=”96″>शब्दः</td>
<td width=”312″>पर्यायशब्दाः</td>
</tr>
<tr>
<td width=”96″>1. मन्दाकिनी</td>
<td width=”312″>भागीरथी, जाह्नवी, गङ्गा</td>
</tr>
<tr>
<td width=”96″>2. त्रिनेत्रः</td>
<td width=”312″>नीलकण्ठः, शिवः, रूद्रः, शङ्करः, महादेवः, शम्भुः, भवः</td>
</tr>
<tr>
<td width=”96″>3. कमलम्</td>
<td width=”312″>जलजम्, उत्पलम्, नीरजम्, कञ्जम्, पद्मम्, अरविन्दम्</td>
</tr>
<tr>
<td width=”96″>4. मराल:</td>
<td width=”312″>हंसः</td>
</tr>
<tr>
<td width=”96″>5. विषम्</td>
<td width=”312″>गरलम्, हालाहलम्, क्षयम्</td>
</tr>
</tbody>
</table>
<p><span style=”color: #0000ff;”>3. Explain with the reference to context :</span></p>
<p>1. नमस्तस्मै कृता येन रम्या रामायणी कथा।<br>
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्ति पाठ्यपुस्तक के काव्यमधुबिन्दवः नामक पाठ से ली गई है। संस्कृत साहित्य की मधुरता की झाँकी इस पाठ में प्रयुक्त पद्यों से होती है। इस पंक्ति में रामायण की कथा का सौंदर्य अभिलक्षित होता है।</p>
<p>अनुवाद : जिसने सुन्दर रामायण की कथा का वर्णन किया उसे नमन।</p><div class=”google-auto-placed ap_container” style=”width: 100%; height: auto; clear: both; text-align: center;”><ins data-ad-format=”auto” class=”adsbygoogle adsbygoogle-noablate” data-ad-client=”ca-pub-5202228354256304″ data-adsbygoogle-status=”done” style=”display: block; margin: auto; background-color: transparent; height: 280px;”><div id=”aswift_3_host” style=”border: none; height: 280px; width: 744px; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; visibility: visible; background-color: transparent; display: inline-block;”></div></ins></div>
<p>व्याख्या : रामायण की कथा अद्भुत सौन्दर्य-पूर्ण है। यह दूषण युक्त होते हुए भी निर्दोष है। यहाँ दूषण शब्द का आशय दूषण नामक राक्षस है। इस प्रकार यहाँ दूषण शब्द का अभिधेयार्थ (सामान्य व्यावहारिक अर्थ) दोष-युक्त है। इस प्रकार दूषण-युक्त होते हुए भी निर्दोष है।</p>
<p>रामायण की एक अन्य विशेषता यह है कि यह सखरा अर्थात् कठोरता-युक्त होते हुए भी कोमल है। सखरा शब्द का यहाँ आशय है ‘खर’ नामक राक्षस से युक्त। इस प्रकार यह कथा सखरा होते हए भी कोमल है। यह कथा अत्यन्त सुन्दर है।</p>
<p>अतः इस कथा को वर्णन करनेवाले आदि कवि वाल्मीकि को प्रणाम करते हैं। जिन्होंने दूषण-युक्त किन्तु दूषण मुक्त ही ग्रन्थ की रचना की।</p>
<p><img src=”https://bhavyeducation.com/wp-content/uploads/2021/03/bhavy-logo-final-01.png” alt=”GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 9 काव्यमधुबिन्दवः” width=”167″ height=”17″ data-pin-nopin=”true”></p>
<p>2. हंसा महीमण्डलमण्डनानि।<br>
सन्दर्भ : प्रश्न 1 के अनुसार पूर्ववत् – इस पंक्ति में हंसों के माध्यम से विद्वज्जनो के महत्त्व को दर्शाया गया है।</p>
<p>अनुवाद : हंस भूमण्डल के आभूषण है।</p>
<p>व्याख्या : हंस इस भूमण्डल के आभूषण होते हैं। यहाँ इस पद्य में अन्योक्ति का प्रयोग किया गया है। अन्योक्ति का सामान्य अर्थ भी यही है किसी अन्य को कुछ कहने के लिए किसी अन्य को माध्यम बनाया जाता है। अन्योक्ति प्रकार के काव्य में प्रस्तुत के द्वारा अप्रस्तुत की बात की जाती है।</p>
<p>यहाँ हंस की बात प्रस्तुत है। कवि कहते हैं कि हंस जहाँ भी होते है इस भूमंडल के आभरण होते है। हंस इस पृथ्वी के जिस किसी भी स्थान पर हो वे इस वसुन्धरा की श्री में अभिवृद्धि करते है।</p><div class=”google-auto-placed ap_container” style=”width: 100%; height: auto; clear: both; text-align: center;”><ins data-ad-format=”auto” class=”adsbygoogle adsbygoogle-noablate” data-ad-client=”ca-pub-5202228354256304″ data-adsbygoogle-status=”done” style=”display: block; margin: auto; background-color: transparent; height: 280px;”><div id=”aswift_4_host” style=”border: none; height: 280px; width: 744px; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; visibility: visible; background-color: transparent; display: inline-block;”></div></ins></div>
<p>परंतु किसी सरोवर में रह रहे हंस यदि उस सरोवर का परित्याग करके अन्यत्र चले जाते हैं तो उस सरोवर के सौंदर्य में अवश्य न्यूनता आ जाती है।</p>
<p>इस प्रकार प्रस्तुत हंसों के माध्यम से कवि अप्रस्तुत विद्वज्जनों, पंडितों, कलाकारों आदि की बात करते है। समाज के प्रतिष्ठित, विद्वज्जन, कलाकार आदि को यदि राज्याश्रय प्राप्त नहीं हो तो वे उस राज्य को त्याग कर अन्यत्र चले जाएँगे अत: अधिकृत जन इस विषय पर विशिष्ट ध्यान दे कि राज्य के विद्वज्जन जो उस राज्य या राष्ट्र की अमूल्य धरोहर है उसका परित्याग न करे आज भारतवर्ष के कई विद्वज्जन भारत से बाहर जाकर अपनी प्रज्ञा से विश्व के विविध भूभागों को लाभान्वित कर रहे है। इस परिस्थिति में यह पंक्ति विशिष्ट रूप से प्रासंगिक है।</p>
<p><img src=”https://bhavyeducation.com/wp-content/uploads/2021/03/bhavy-logo-final-01.png” alt=”GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 9 काव्यमधुबिन्दवः” width=”167″ height=”17″ data-pin-nopin=”true”></p>
<p>3. स्नेहं विमुच्य सहसा खलतां प्रयान्ति :<br>
सन्दर्भ : प्रश्न 1 के अनुसार पूर्ववत्।<br>
इस पंक्ति में दुर्जनों के स्वभाव का वर्णन किया है।</p>
<p>अनुवाद : स्नेह (स्निग्धता) को त्याग कर सहसा खलता (खर के रूप को) प्राप्त करते है।</p>
<p>व्याख्या : इस पंक्ति में कवि ने श्लेष अलंकार के द्वारा अद्भुत अर्थ चमत्कृति दर्शाई है। इस पद्य में कवि कलम (धान्य) एवं तिल के माध्यम से सुन्दर तथ्य प्रस्तुत करते हैं। यहाँ धान्य स्वयं उदात्त चरित्र का गान करते हैं।</p><div class=”google-auto-placed ap_container” style=”width: 100%; height: auto; clear: both; text-align: center;”><ins data-ad-format=”auto” class=”adsbygoogle adsbygoogle-noablate” data-ad-client=”ca-pub-5202228354256304″ data-adsbygoogle-status=”done” style=”display: block; margin: auto; background-color: transparent; height: 280px;”><div id=”aswift_5_host” style=”border: none; height: 280px; width: 744px; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; visibility: visible; background-color: transparent; display: inline-block;”></div></ins></div>
<p>धान स्वयं कहते हैं कि जितना अधिक मूसलों का प्रहार उन पर होता है उतनी ही अधिक उनकी शुद्धि (अवदातता) होती है। धान कहते हैं कि हम तिलों के समान नहीं हैं कि यदि कोई थोड़ा ही प्रहार करे तो तत्काल अन्तःस्थ स्नेह (स्निग्धता, तेल) को त्याग कर खल-खर बन जाते हैं।</p>
<p>यहाँ धान एवं तिल के बहाने कवि ने सज्जन और दुर्जन के चरित्र का वर्णन किया है। सज्जन जितना अधिक कष्ट सहन करते है उतना ही अधिक शुद्ध-कान्तिमान् – उत्तम् बनते जाते हैं। परंतु दुर्जन की स्थिति इससे अत्यन्त विपरीत होती है।</p>
<p>दुर्जन पर यदि कोई संकट आता है तो – अनुक्षण वह अपने हृदयस्थ स्नेह-प्रेम को त्याग देता है, तथा खलता, दुष्टता का आचरण करने लगता है। इस प्रकार सज्जन व्यक्ति धान-सदृश होते हैं तथा दुर्जन व्यक्ति तिल-सदृश होते हैं। इस पंक्ति में स्नेह का आशय तिल तथा प्रेम हैं।</p>
<p>उसी प्रकार खलता अर्थात् खर एवं दुर्जनता अर्थ ग्राह्य हैं। इस प्रकार दुर्जन एवं सज्जन के लक्षणों के साथ-साथ सुन्दर शब्द रचना के संयोग से इस पद्य का सौन्दर्य और अधिक निखर गया है।</p>
<p><img src=”https://bhavyeducation.com/wp-content/uploads/2021/03/bhavy-logo-final-01.png” alt=”GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 9 काव्यमधुबिन्दवः” width=”167″ height=”17″ data-pin-nopin=”true”></p>
<p>4. सोत्तीर्णा खलु पाण्डवै रणनदी – कैवर्तक: केशव: :<br>
सन्दर्भ : प्रश्न 1 के अनुसार पूर्ववत्।</p>
<p>अनुवाद : उस रण रूपी नदी को पाण्डवों के द्वारा पार कर लिया गया, जिसके नाविक श्रीकृष्ण थे।</p><div class=”google-auto-placed ap_container” style=”width: 100%; height: auto; clear: both; text-align: center;”><ins data-ad-format=”auto” class=”adsbygoogle adsbygoogle-noablate” data-ad-client=”ca-pub-5202228354256304″ data-adsbygoogle-status=”done” style=”display: block; margin: auto; background-color: transparent; height: 280px;”><div id=”aswift_6_host” style=”border: none; height: 280px; width: 744px; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; visibility: visible; background-color: transparent; display: inline-block;”></div></ins></div>
<p>व्याख्या : इस पद्य में महाभारत के युद्ध की कल्पना नदी के रूप में की गई है। रण-नदी का आशय है ‘रण एव नदी’ अर्थात् रण, युद्ध ही नदी है। इस प्रकार नदी एवं युद्ध में साम्यता प्रदर्शित करते हुए रूपकालंकार का सुन्दर प्रयोग इस पद्य में दिखाई देता है।</p>
<p>किसी भी नदी में सामान्यतया तट, जल, नीलोत्पल, ग्राह, वहनी, वेला, मकर एवं आवर्त (भंवर) आदि लक्षण विद्यमान होते हैं उसी प्रकार महाभारत युद्ध रूपी नदी में भी ये सभी लक्षण विद्यमान है।</p>
<p>यथा पितामह भीष्म एवं द्रोणाचार्य जी तट-रूप हैं, जयद्रथ जल रूप है, गान्यास (शकुनि) नील-कमल के रूप में हैं, शल्यराज ग्राह के रूप में, कृपाचार्य एक लघु नौका के रूप में, प्रवाह से व्याकुल नदा क रूप में कर्ण, अश्वत्थामा एवं विकर्ण भयंकर मगर के रूप में तथा दुर्योधन भयंकर भंवर के रूप में हैं। इस प्रकार सभी पात्रों के व्यवहार को देखकर युद्ध रूपी नदी के लक्षणों का रूपक तत्पद पात्रों को प्रदान किया है।</p>
<p>उपरोक्त काव्य-पंक्ति इस पद्य का अन्तिम चरण है। महाभारत युद्ध के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पात्र ‘केशव’ का वर्णन यहाँ इस अन्तिम पद्य में करते हुए कहा गया है। इस युद्ध रूपी नदी के नाविक स्वयं श्रीकृष्ण हैं।</p>
<p>भगवान श्रीकृष्ण रूपी नाविक के कारण इस भयंकर गंभीर युद्ध रूपी नदी को पार करने में पाण्डव सफल हो सके। भगवान श्रीकृष्ण रूपी नाविक की सहायता से पाण्डवों ने युद्ध रूपी नदी को पार कर लिया।</p>
<p><span style=”color: #0000ff;”>4. Write a critical note on:</span></p>
<p>(1) Story of Ramayana/Ramayani story<br>
रामायणी कथा :<br>
रामायण की कथा अत्यन्त मनोहर है। पात्रों के उदात्त चरित्र का यह एक अद्भुत ग्रन्थ है। आध्यात्मिक या धार्मिक दृष्टि से ही नहीं प्रत्युत सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक आदि दृष्टि से भी यह कथा महत्त्वपूर्ण एवं अनुकरणीय है। सात काण्डों से युक्त यह कथा सदा-सर्वदा मानव-मात्र को जीवन-यापन की कला का दर्शन कराती है तथा प्रेरणा भी प्रदान करती है।</p>
<p><img src=”https://bhavyeducation.com/wp-content/uploads/2021/03/bhavy-logo-final-01.png” alt=”GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 9 काव्यमधुबिन्दवः” width=”167″ height=”17″ data-pin-nopin=”true”></p>
<p>पाठ्यपुस्तक में आदि कवि वाल्मीकि कृत रामायणी-कथा का वैशिष्ट्य प्रदर्शन करते हुए कहा है कि यह दूषण-युक्त (सदूषणा) होते हुए भी निर्दोषा है अर्थात् दोष-मुक्त है। यहाँ दूषण युक्त का अर्थ दोष-युक्त न होकर दूषण नामक राक्षस से है अत: दूषण नामक राक्षस से युक्त होने के कारण यह रामायणी कथा सदूषणा है। अत: कहा गया है दूषण-युक्त होते हुए भी दूषण-युक्त है। इस प्रकार यह कथा सखरा होते हुए भी सुकोमल है।</p>
<p>यहाँ खर शब्द के दो अर्थ हैं : (1) खर नामक राक्षस एवं (2) कठोर। इन दो शब्दों के आधार पर रामायणी कथा का वैशिष्ट्य वर्णन किया है। यह कथा खर नामक राक्षस के प्रसंग से युक्त है, परंतु वास्तविक रूप से यह कथा खर अर्थात् काठिन्य से युक्त नहीं है। वाल्मीकि द्वारा रचित यह रामायणी कथा अनुष्टुप छन्द में अत्यन्त लोकप्रिय है।</p><div class=”google-auto-placed ap_container” style=”width: 100%; height: auto; clear: both; text-align: center;”><ins data-ad-format=”auto” class=”adsbygoogle adsbygoogle-noablate” data-ad-client=”ca-pub-5202228354256304″ data-adsbygoogle-status=”done” style=”display: block; margin: auto; background-color: transparent; height: 280px;”><div id=”aswift_7_host” style=”border: none; height: 280px; width: 744px; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; visibility: visible; background-color: transparent; display: inline-block;”></div></ins></div>
<p>(2) ‘Anyokti’ of Swan<br>
हंस की अन्योक्ति :<br>
हंस इस भूमण्डल के आभूषण हैं। हँस इस भूमण्डल के जिस किसी भी भू भाग पर रहें वे उसकी शोभा में अभिवृद्धि करते हैं। इस प्रकार कवि यहाँ हँस की अन्योक्ति के माध्यम से सज्जनों, सत्पुरुषों, विद्वज्जनों, कलाओं में कुशल-कलाविद् आदि का वर्णन किया है।</p>
<p>जिस प्रकार हंस इस भूभाग पर सर्वत्र शोभायमान होते हैं उसी प्रकार विद्वज्जन, कलाविद्, सत्पुरुष भी इस समस्त भूमण्डल के अलंकार है। संस्कृत में यह उक्ति प्रसिद्ध है – ‘विद्वान् सर्वत्र पूज्यते’ इस अवनितल पर सर्वत्र विद्वज्जनों की, कलाविदों का पूजन अर्थात् सम्मान होता है।</p>
<p>ये हंसों की भाँति सर्वत्र वन्दनीय हैं। किसी सरोवर पर रह रहे हंस उसे त्याग कर यदि अन्यत्र चले जाते हैं तो हंसों की लेश मात्र भी हानि नहीं होती परन्तु हानि उस सरोवर की होती है जिसे त्यागकर वे हँस चले जाते हैं।</p>
<p>इस प्रकार सरोवर के माध्यम से कवि उन राज्यों, देशों के अधिकृत जनों से कहते हैं कि उन्हें इस विषय का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि विद्वज्जन सरोवर के समान आश्रय-स्थल रूपी राज्य या राष्ट्र को त्याग कर कहीं भी अन्यत्र न जाएँ। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी यह पंक्ति उतनी ही अत्यधिक प्रासंगिक है।</p>
<p><img src=”https://bhavyeducation.com/wp-content/uploads/2021/03/bhavy-logo-final-01.png” alt=”GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 9 काव्यमधुबिन्दवः” width=”167″ height=”17″ data-pin-nopin=”true”></p>
<p>(3) Difference between rice and sesame<br>
धान एवं तिल का भेद :<br>
धान एवं तिल के माध्यम से कवि ने सज्जन एवं दुर्जन व्यक्तियों का चरित्र चित्रण किया है। धान से चावलों को पृथक् करने हेतु जितना अधिक मूसलों का प्रहार धान पर किया जाता है उतनी ही अधिक उसमें अवदातता (शुद्धि या कान्ति) उसमें बढ़ जाती है। इसी प्रकार सज्जनों, सत्पुरुषों पर जितने अधिक संकट आते हैं उतने ही अधिक उत्कृष्ट हो जाते हैं और अधिक श्रेष्ठ हो जाते हैं।</p>
<p>दूसरी ओर तिलों की प्रकृति का वर्णन करते हुए कवि ने दुर्जनों के स्वभाव का वर्णन किया है। जिस प्रकार तिलों पर थोड़ा ही हलका ही प्रहार हो तो वे स्नेह (स्निग्धता) अर्थात् तेल को अपने से पृथक् कर देते हैं तथा स्वयं खट बन जाते हैं।</p>
<p>इस प्रकार दुर्जन भी थोड़ा ही संकट आने पर स्नेह-प्रेम को त्याग देते हैं तथा खलता अर्थात् दुष्टता का आचरण करने लगते हैं। इस प्रकार यहाँ धान एवं तिल के भेद को दर्शाते हुए कवि ने सज्जन एवं दुर्जन के भेद को भी स्पष्ट किया है।</p><div class=”google-auto-placed ap_container” style=”width: 100%; height: auto; clear: both; text-align: center;”><ins data-ad-format=”auto” class=”adsbygoogle adsbygoogle-noablate” data-ad-client=”ca-pub-5202228354256304″ data-adsbygoogle-status=”done” style=”display: block; margin: auto; background-color: transparent; height: 280px;”><div id=”aswift_8_host” style=”border: none; height: 280px; width: 744px; margin: 0px; padding: 0px; position: relative; visibility: visible; background-color: transparent; display: inline-block;”></div></ins></div>
<p>(4) Form of Mahadeva<br>
महादेव का स्वरूप :<br>
भगवान महादेव के सुन्दर स्वरूप का वर्णन पाठ्य-पुस्तक में प्रदत्त पद्य में किया गया है। भगवान शिव के कण्ठ में जामुन की भाँति विष शोभायमान होता है। महादेव के शीश पर जल-बिन्दुवत् भगवती भागीरथी बिराजती हैं।</p>
<p>शिव के उत्संग में माता पार्वती का श्रीमुख कमल की भाँति सुशोभित होता है। भगवान शंकर के कटि प्रदेश पर काई की भाँति वाघाम्बर सुशोभित होता है। भगवान शिव की माया जालवत् सम्पूर्ण संसार को मोहादि के जाल में फँसाकर ईश्वर से विमुख कर देती है।</p>
<p>इस प्रकार वर्णित शिव स्वरूप अत्यन्त मनोहर है।</p>
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<p><span style=”color: #0000ff;”>5. Answer in brief in mother-tougue :</span></p>
<p>Question 1.<br>
What are the two meaning of सदूषणा?<br>
उत्तर :<br>
सदूषणा का प्रथम अर्थ है दूषण के साथ या दूषण-युक्त। लेकिन क्या रामायणी कथा भी दूषण अर्थात् दोष-युक्त हो सकती है ? भगवान राम के उदात्त, उत्कृष्टतम चरित्र से युक्त रामायणी कथा तो सम्पूर्णतया दोष-(दूषण) मुक्त – निर्दोष है।</p>
<p>सदूषणा का द्वितीय अर्थ है दूषण नामक राक्षस से युक्त। दूषण नामक राक्षस से युक्त होने के कारण रामायणी कथा को सदूषणा कहा गया है।</p>
<p>Question 2.<br>
With what is compared the power of seeing (vision) in darkness ?<br>
उत्तर :<br>
अन्धकार में दृष्टि की तुलना असत्पुरुष की सेवा से की गई है। गगन मण्डल से मानो काजल की वर्षा हो रही हो या अन्धकार मानो शरीर को आलिंगन कर रहा हो। इस प्रकार असत्पुरुष की सेवा की भाँति अन्धकार में दृष्टि निष्फल हो गई है।</p>
<p>Question 3.<br>
Which power of Shambhu has been obstructing the whole world?<br>
उत्तर :<br>
शिव की शक्ति माया सम्पूर्ण विश्व को अवरुद्ध कर रही है</p>
<p>Question 4.<br>
What is ‘Jambal’ and with what is it compared ?<br>
उत्तर :<br>
जम्बाल का अर्थ है काई। काई की तुलना भगवान शिव के कटि प्रदेश पर शोभायमान व्याघ्रचर्माम्बर से की गई है।</p>
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<p>Question 5.<br>
How many banks are there of the ‘war-river’ (Ran nadi) and who are they?<br>
उत्तर :<br>
रणनदी के दो तट हैं। पितामह भीष्म एवं द्रोणाचार्य दोनों रण रूपी नदी के दो तट हैं।</p>
<p><strong>Sanskrit Digest Std 11 GSEB काव्यमधुबिन्दवः Additional Questions and Answers</strong></p>
<p style=”text-align: center;”><span style=”color: #0000ff;”>काव्यमधुबिन्दवः स्वाध्याय</span></p>
<p><span style=”color: #0000ff;”>1. योग्यं विकल्पं चित्वा उत्तरं लिखत।</span></p>
<p>પ્રશ્ન 1.<br>
सदूषणापि निर्दोषा का ?<br>
(क) रामायणी कथा<br>
(ख) महाभारत कथा<br>
(ग) शिवपुराण कथा<br>
(घ) श्रीमद् भागवत् पुराण – कथा<br>
उत्तर :<br>
(क) रामायणी कथा</p>
<p>પ્રશ્ન 2.<br>
दृष्टिः कथं विफलतां गता ?<br>
(क) असत्पुरुषसेवेव<br>
(ख) सत्पुरुषसेवेव<br>
(ग) आत्मसेवेव<br>
(घ) गुरुसेवेव<br>
उत्तर :<br>
(क) असत्पुरुषसेवेव</p>
<p>પ્રશ્ન 3.<br>
कै: सह विप्रयोगेन सरोवराणां हानि: भवति ?<br>
(क) काकैः<br>
(ख) मरालैः<br>
(ग) बकैः<br>
(घ) कोकिलैः<br>
उत्तर :<br>
(ख) मरालैः</p>
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<p>પ્રશ્ન 4.<br>
केषां प्रचण्डमुसलैः अवदातता एव।<br>
(क) तिलानाम्<br>
(ख) सर्वपानाम्<br>
(ग) कलमानाम<br>
(घ) गोधूमानाम्<br>
उत्तर :<br>
(ग) कलमानाम</p>
<p>પ્રશ્ન 5.<br>
शिवस्य कण्ठे किम् ?<br>
(क) गरलम्<br>
(ख) मन्दाकिनी<br>
(ग) माया<br>
(घ) शिवामुखम्<br>
उत्तर :<br>
(क) गरलम्</p>
<p>પ્રશ્ન 6.<br>
रणनदी केन उत्तीर्णा ?<br>
(क) कौरवैः<br>
(ख) पाण्डवैः<br>
(ग) दुर्योधनेन<br>
(घ) शल्येन<br>
उत्तर :<br>
(ख) पाण्डवैः</p>
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<p><span style=”color: #0000ff;”>5. मातृभाषा में संक्षिप्त में उत्तर दीजिए।</span></p>
<p>પ્રશ્ન 1.<br>
रणनदी में भयंकर मगर कौन हैं ?<br>
उत्तर :<br>
रणनदी में अश्वत्थामा एवं विकर्ण की तुलना भयंकर मगर से की है।</p>
<p>પ્રશ્ન 2.<br>
रणनदी में दुर्योधन की तुलना किससे की गई है ?<br>
उत्तर :<br>
रणनदी में दुर्योधन की तुलना भंवर से की गई है।</p>
<p>પ્રશ્ન 3.<br>
जालवत् किसे कहा गया है ?<br>
उत्तर :<br>
जालवत् भगवान शिव की शक्ति माया को कहा गया है।</p>
<h3>काव्यमधुबिन्दवः Summary in Hindi</h3>
<p>सन्दर्भ : संस्कृत काव्यसाहित्य की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इसका प्रारंभ वेद से माना जाता है। वेदों में वर्णित दान स्तुति एवं नाराशंसी (वीर नायकों की प्रशस्ति) सूक्त जैसे वर्णन ऊर्मि-काव्य के सुन्दर दृष्टान्त है। तत्पश्चात् लौकिक साहित्य में वाल्मीकि काव्य रामायण भी आता है।</p>
<p>इसे आदि काव्य कहते हैं। रामायण, साहित्य में अपेक्षित सर्वविध विशेषताओं से युक्त है तथा इस प्रकार संस्कृत काव्य को उत्कृष्टतम स्थान पर पहुंचाता है। तत्पश्चात् महाभारत एवं पंच महाकाव्य आते हैं। तदनन्तर तो संस्कृत-काव्यधारा अस्खलित रूप से आज तक प्रवाहित हो रही है।</p>
<p>संस्कृति-काव्य अलंकार प्रयोग, शैली विधान, छन्दोविधान तथा सूक्ष्म एवं गंभीर कल्पनामय प्रस्तुति आदि के कारण अनुपम है।</p>
<p>प्रस्तुत पाठ के आधार पर संस्कृत काव्यधारा की अनुपमता एवं सौन्दर्य का समग्रतया आस्वादन करना असंभव है किन्तु उसकी एक झाँकी अवश्य की जा सकती है। एतदर्थ इस पाठ में संस्कृत-काव्य के छह मधु-बिन्दु प्रस्तुत किए गए है।</p>
<p>प्रथम पद्य में वाल्मीकीय रामायण की समीक्षा की गई है। इस पद्य में कवि ने श्लेष अलंकार से युक्त विरोधालंकार का प्रयोग कर सुन्दर चमत्कार का सर्जन किया है। द्वितीय पद्य में उपमा एवं उत्प्रेक्षा अलंकार का सुन्दर निरूपण किया गया है।</p>
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<p>तृतीय पद्य मुक्तक के रूप में है और इसमें अन्योक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है। हंस के व्याज से यहाँ गुणवान के गुणों की महिमा करने का उद्देश्य है। चतुर्थ पद्य भी मुक्तक के रूप में है। इसमें धान एवं तिल के दृष्टांत से सज्जन एवं दुर्जन के वर्तन का आलेखन किया गया है।</p>
<p>पंचम-पद्य एक सविशेष चमत्कृति है। यहाँ प्रथम तीन चरण में पाँच उपमेय हैं, तथा चतुर्थ चरण में एक साथ पाँच उपमानों का प्रयोग किया गया है तथा सभी शब्द जकारादि है। अन्तिम पद्य में महाभारत के युद्ध का वर्णन है।</p>
<p>यहाँ महाभारत के युद्ध की नदी के रूप में कल्पना कर सुन्दर रूपकालंकार की योजना की गई है। इस प्रकार की विविध काव्यात्मक चमत्कृतियाँ भाषागत विशेषता के कारण केवल संस्कृत भाषा में ही संभव हो सकती है।</p>
<p>यहाँ प्रस्तुत श्लोकों में से प्रथम दो श्लोक अनुष्टुप छंद में है, तृतीय पद्य इन्द्रवज्रा छन्द में है। चतुर्थ पद्य वसन्ततिलका छन्द में है। अन्तिम दोनों पद्य शार्दूल विक्रीडित छंद में है।</p>
<p><strong>अन्वय, शब्दार्थ एवं अनुवाद</strong></p>
<p><span style=”color: #0000ff;”>1. अन्वय : येन सदूषणा अपि निर्दोषा, सखरा अपि सुकोमला, रम्या रामायणी कथा कृता तस्मै (वाल्मीकये) नमः।</span></p>
<p>शब्दार्थ : सदूषणा = दूषण – दोष से युक्त, दोष-युक्त (द्वितीय अर्थ-) दूषण नामक राक्षस (पात्र) से युक्त। निर्दोषा = दोष रहित – निर्गता: दोषाः यस्याः सा-बहुव्रीहि समास। सखरा = खर – कठिनता से युक्त (द्वितीय अर्थ-) खर नामक राक्षस से युक्त – खरेण सहिता – बहुव्रीहि समास। रम्या = रमणीय सुन्दर। रामायणी = राम के जीवन से संबद्ध, श्री रामसंबंधी।</p>
<p>अनुवाद : जिसके द्वारा सदूषणा अर्थात् दूषण-युक्त अर्थात् दूषण नामक राक्षस से युक्त तथा सखरा अर्थात् काठिन्य युक्त एवं खर नामक राक्षस से युक्त सुन्दर श्री राम-कथा की रचना की गई है उसे (वाल्मीकि को) प्रणाम करते हैं।</p>
<p><span style=”color: #0000ff;”>2. अन्वय : तमः अङ्गानि लिम्पति इव, नभः अञ्जनं वर्षति इव। (मदीया) दृष्टिः असत्पुरुष सेवा इव विफलतां गता (अस्ति)।</span></p>
<p>शब्दार्थ : तमः = अन्धकार, तिमिर। लिम्पति = लीपता है, लेपन करता है, आलिंगन करता है। लिम्प धातु, वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचन। अञ्जनम् = काजल। असत्पुरुषसेवा = असत् अर्थात् दुष्ट, दुर्जन व्यक्ति की सेवा। इव = यहाँ मानो कि अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।।</p>
<p>अनुवाद : अन्धकार मानो अंगों को लीप रहा हो, मानो आकाश काजल की वर्षा कर रहा हो इस प्रकार दुर्जन व्यक्ति की सेवा की भाँति दृष्टि विफल हो चुकी है।</p>
<p><span style=”color: #0000ff;”>3. अन्वय : हंसा: यत्रापि कुत्रापि भवन्तु, (ते) हंसा: (सदैव) महीमण्डलमण्डनानि (भवन्ति)। तेषां तु सरोवराणां हि हानि:, येषां मरालैः सह विप्रयोगः (भवति)।</span></p>
<p>शब्दार्थ : महीमण्डलमण्डनानि = भू-मंडल के अलंकार – महीमण्डलस्य मण्डनानि – षष्ठी तत्पुरुष समास। मरालैः = हंसों से। विप्रयोगः = विदाई, विरह, वियोग।</p>
<p>अनुवाद : हंस जहाँ कहीं भी रहें वे इस भूमंडल के आभूषण ही है। हानि तो उन सरोवरों की है जिनका हंसों से वियोग होता</p>
<p><img src=”https://bhavyeducation.com/wp-content/uploads/2021/03/bhavy-logo-final-01.png” alt=”GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 9 काव्यमधुबिन्दवः” width=”167″ height=”17″ data-pin-nopin=”true”></p>
<p><span style=”color: #0000ff;”>4. अन्वय : अस्मान् कलमान् अवेहि, येषाम् प्रचण्डमुसलै: आहतानाम् अवदातता एव। ये स्वल्पताडनवशात् स्नेहं विमुच्य सहसा खलतां प्रयान्ति, वयम् ते तिला: न।</span></p>
<p>शब्दार्थ : कलमान् = धान्य को। अवेहि = पहचानो – अव उपसर्ग + इ धातु – आज्ञार्थ मध्यम पुरुष – एकवचन। प्रचण्डमुसलै: = मूसलों के तीव्र प्रहारों से – प्रचण्डः चासौ मुसलः, तैः, कर्मधारय समास। अवदातता = निर्मलता, शुभ्रता – अव + दा धातु (शुद्ध करना) + क्त (प्रत्यय) + ता।</p>
<p>अनुवाद : हमें धान्य को पहिचानों, जिनके ऊपर मूसलों के तीव्र प्रहारों से उनकी शुभ्रता (यथावत् ही) रहती हैं। हम वो तिल नहीं है जो कुछ हल्के प्रहार से स्नेह अर्थात् तेल को त्याग कर खलता (खर के रूप) को प्राप्त कर लेते हैं।</p>
<p><span style=”color: #0000ff;”>5. अन्वय : यत् कण्ठे जम्बूवत् गरलं (विराजतितराम् तस्मै शम्भवे नम:), (यस्य) शीर्षे मन्दाकिनी जल-बिन्दुवत् (विराजतितराम् तस्मै शम्भवे नम:), (यस्य) उत्सङ्गे शिवामुखं जलजवत् (विराजतितराम् तस्मै शम्भवे नमः), यस्य कटितटे शार्दूलचर्माम्बरं जम्बालवत् (विराजतितराम् तस्मै शम्भवे नम:), यस्य माया अखिलं विश्वं जालवत् रूणद्धि, तस्मै शम्भवे नमः।।</span></p>
<p>शब्दार्थ : जम्बूवत् = जामुन के फल के जैसा। गरलम् = विष पर्याय शब्द – विषम्, क्षयम्, हालाहलम्। शीर्षे = सिर पर, शीर्ष पर। मन्दाकिनी = पर्याय शब्द – गङ्गा, भागीरथी, जाह्नवी, सुरसरिता। उत्सङ्गे = गोद में। शिवामुखम् = शिवापार्वती का मुख। शिवायाः मुखम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। जलजवत् = कमलवत्। कटितटे = कमर पर, कटिप्रदेश पर। शार्दूलचर्माम्बरम् = बाघाम्बर, शार्दूल के चर्म – (त्वचा) निर्मित वस्त्र। – शार्दूलस्य चर्मणा निर्मितम् अम्बरम् – मध्यम-पद – लोपी – तत्पुरुष। रूणद्धि = रोकता है, रुध् धातु वर्तमान-काल, अन्य पुरुष, एकवचन। जम्बालवत् = काई की भाँति।</p>
<p>अनुवाद : जिनके कंठ में जामुन की भाँति विष (शोभायमान होता) है, (जिनके) शीर्ष पर जल बिन्दुवत् मन्दाकिनी (बिराजती) है, (जिनके) उत्संग में पार्वती का मुख कमल की भाँति (सुशोभित होता) है, (जिनके) कटि प्रदेश पर काई की भाँति वाघाम्बर (शोभायमान होता) है, (जिनकी) माया सम्पूर्ण विश्व को जाल की भाँति अवरुद्ध (मोहित) करती है उन भगवान शिव को प्रणाम करते हैं।</p>
<p><span style=”color: #0000ff;”>6. अन्वय : पाण्डवैः भीष्म-द्रोण-तटा, जयद्रथ-जला, गान्धार-नीलोत्पला, शल्य-ग्राहवती, कृपेण वहनी, कर्णेन वेलाकुला, अश्वत्थाम – विकर्ण – घोर – मकरा, दुर्योधनावर्तिनी, रणनदी खलु उत्तीर्णा, यतो हि कैवर्तक: केशवः (आसीत्।)</span></p>
<p>शब्दार्थ : भीष्म-द्रोण-तटा = भीष्म एवं द्रोणाचार्य रूपी तटवाली। जयद्रथ-जला = जयद्रथ रूपी जलवाली। गान्धार-नीलोत्पला = गान्धार-शकुनि रुपी नीलकमलवाली – (गान्धार अर्थात् गान्धार देश का निवासी शकुनि। शल्यग्राहवती = शल्यराज रूपी ग्राह अर्थात् मगर से युक्त। वहनी = नौका, नाव। वेलाकुला = वेला अर्थात् प्रवाह से व्याकुल बनी हुई। अश्वत्थामा – विकर्ण। धोरमकरा = अश्वत्थामा एवं विकर्ण रूपी भयंकर मगरवाली। दुर्योधनावर्तिनी = दुर्योधन रूपी भंवर से युक्त। रणनदी = संग्रामयुद्ध रूपी नदी। उत्तीर्णा = पार कर ली। कैवर्तकः = नाविक, खिवैया, केवट।</p>
<p><img src=”https://bhavyeducation.com/wp-content/uploads/2021/03/bhavy-logo-final-01.png” alt=”GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 9 काव्यमधुबिन्दवः” width=”167″ height=”17″ data-pin-nopin=”true”></p>
<p>अनुवाद : पाण्डवों के द्वारा पितामह एवं गुरु द्रोणाचार्य रूपी तट से युक्त, जयद्रथ रूपी जलवाली, शकुनि रूपी नीलकमलवाली, शल्यराज रूपी ग्राह से युक्त, कृपाचार्य रूपी नौकावाली वे कर्ण रूपी प्रवाह से व्याकुल, अश्वत्थामा एवं विकर्ण रूपी भयंकर मगरों से युक्त दुर्योधन रूपी भंवरवाली युद्धरूपी नदी पार कर ली गई क्योंकि इसके नाविक भगवान श्रीकृष्ण थे।</p>
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