GSEB Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Economics Chapter 1 अर्थशास्त्र : विषय-प्रवेश Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Economics Chapter 1 अर्थशास्त्र : विषय-प्रवेश
GSEB Class 11 Economics अर्थशास्त्र : विषय-प्रवेश Text Book Questions and Answers
स्वाध्याय
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए :
1. मनुष्य की आर्थिक समस्याओं के हल और मनुष्य के आर्थिक व्यवहार का अध्ययन करनेवाला शास्त्र अर्थात् …………………….
(A) तर्कशास्त्र
(B) भौतिकशास्त्र
(C) अर्थशास्त्र
(D) अंकशास्त्र
उत्तर :
(C) अर्थशास्त्र
2. Economics शब्द किस ग्रीक शब्द से आया है ?
(A) Oikonomos
(B) Ecology
(C) PHILO
(D) NOMOS
उत्तर :
(A) Oikonomos
3. किस अर्थशास्त्री को अर्थशास्त्र का वैज्ञानिक ढंग से स्वतंत्र रूप से अध्ययन करने का श्रेय मिला है ?
(A) कौटिल्य
(B) प्रो. मार्शल
(C) रॉबिन्सन
(D) एडम स्मिथ
उत्तर :
(D) एडम स्मिथ
4. अर्थशास्त्र को यथार्थवादी विज्ञान के रूप में प्रस्तुत करनेवाले अर्थशास्त्र ……………………..
(A) एडम स्मिथ
(B) रॉबिन्स
(C) सेम्युलसन
(D) मार्शल
उत्तर :
(B) रॉबिन्स
5. अर्थशास्त्र के अध्ययन और विश्लेषण क्षेत्र की दृष्टि से कितने भाग पड़े है ?
(A) चार
(B) तीन
(C) दो
(D) पाँच
उत्तर :
(C) दो
6. सामान्य रूप से देश, वर्ष, वरसाद जैसे स्वतंत्र चलराशि किस अक्ष पर दर्शाया जाता है ?
(A) ऊर्ध्व अक्ष पर
(B) क्षैतिज अक्ष पर
(C) उद्गम बिंदु पर
(D) समकोण
उत्तर :
(B) क्षैतिज अक्ष पर
7. घर के मालसामान की व्यवस्थापन करने की रीति को क्या कहते हैं ?
(A) NOMOS
(B) ELOS
(C) Oikos
(D) stats
उत्तर :
(A) NOMOS
8. भारतीय सभ्यता और संस्कृति का इतिहास लगभग कितने वर्ष पुराना है ?
(A) 500
(B) 5000
(C) 1500
(D) 2000
उत्तर :
(B) 5000
9. मनुष्य के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और ……………………………..
(A) त्याग
(B) भक्ति
(C) श्रद्धा
(D) मोक्ष
उत्तर :
(D) मोक्ष
10. कौटिल्य ने 2500 वर्ष पूर्व कौन-सी पुस्तक लिखी थी ?
(A) भौतिकशास्त्र
(B) समाजशास्त्र
(C) अर्थशास्त्र
(D) नीतिशास्त्र
उत्तर :
(C) अर्थशास्त्र
11. चाणक्य के अर्थशास्त्र पर किस शास्त्र की असर है ?
(A) नीतिशास्त्र
(B) समाजशास्त्र
(C) शिक्षाशास्त्र
(D) रसायनशास्त्र
उत्तर :
(A) नीतिशास्त्र
12. अलफ्रेड मार्शल ने 1890 में कौन-सी पुस्तक में अर्थशास्त्र की परिभाषा दी ?
(A) Principales of Science
(B) Principales of Management
(C) Principales of Economics
(D) Principales of Maths
उत्तर :
(C) Principales of Economics
13. ‘Wealth of Nations’ पुस्तक के लेखक कौन है ?
(A) एडम स्मिथ
(B) मार्शल
(C) रॉबिन्स
(D) सेम्युअलस
उत्तर :
(A) एडम स्मिथ
14. X-अक्ष पर क्या दर्शाया जाता है ?
(A) समय
(B) जन्मदर
(C) मृत्युदर
(D) विकासदर
उत्तर :
(A) समय
15. आर्थिक जगत में मनुष्य के मुख्य कितने स्वरूप है ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
उत्तर :
(C) तीन
16. मनुष्य की आवश्यकताएँ ………………………..
(A) मर्यादित हैं ।
(B) अमर्यादित हैं ।
(C) सीमित हैं ।
(D) एक भी नहीं ।
उत्तर :
(B) अमर्यादित हैं ।
17. दया, माया, प्रेम, जैसी भावना से की जानेवाली प्रवृत्ति ………………….. ।
(A) आर्थिक
(B) अनार्थिक
(C) आय
(D) खर्च
उत्तर :
(B) अनार्थिक
18. वस्तु की माँग और कीमत के बीच सम्बन्ध …………………….
(A) सीधा है ।
(B) तटस्थ है ।
(C) व्यस्त हैं ।
(D) समान हैं ।
उत्तर :
(C) व्यस्त हैं ।
19. अर्थशास्त्र के सम्बन्ध में सर्वप्रथम किस तत्त्वचिंतक ने अपने विचार प्रस्तुत किए ?
(A) ऐरिस्टोटल
(B) प्लूटो
(C) सुकरात
(D) रॉबिन्स
उत्तर :
(A) ऐरिस्टोटल
20. शिक्षक, डॉक्टर, वकील किस प्रकार आय प्राप्त करते हैं ?
(A) श्रम करके
(B) लाभ से
(C) सेवा देकर
(D) खर्च करके
उत्तर :
(C) सेवा देकर
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो वाक्य में लिखिए :
1. रॉबिन्सन के मतानुसार अर्थशास्त्र की परिभाषा लिखिए ।
उत्तर :
‘अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जिसमें साध्यों तथा उनमें सीमित एवं वैकल्पिक उपयोगोंवाले साधनों के परस्पर सम्बन्धों के रूप में मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है ।’
2. सेम्युअलसन अर्थशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में किस बात को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है ?
उत्तर :
सेम्युअलसन समाज का चयन और वितरण के मुद्दे को अर्थशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है ।
3. आर्थिक जानकारी की प्रस्तुति किन तीन रीतियों से दर्शा सकते हैं ?
उत्तर :
आर्थिक जानकारी की प्रस्तुति निम्नलिखित तीन रीतियों से दर्शा सकते हैं –
- भाषा द्वारा वर्णनात्मक रीति से
- सांख्यकीय स्वरूप में (अंकों द्वारा)
- आकृति द्वारा (प्रतीकात्मक रीति से)
4. तुलनात्मक अध्ययन का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
स्थान और समय के आधार पर दो या दो से अधिक सांख्यकीय जानकारियों की तुलना की जाए तो उसे तुलनात्मक अध्ययन कहते हैं ।
5. सामान्य रूप से आकृति या आलेख में परतंत्र और स्वतंत्र चल राशि को किस अक्ष पर दर्शाया जाता है ?
उत्तर :
सामान्य रूप से आकृति या आलेख में स्वतंत्र चल को x-अक्ष पर और परतंत्र (आधारित) चल को y-अक्ष पर दर्शाया जाता है ।
6. मनुष्य विश्लेषण और वर्गीकरण क्यों कर सकता है ?
उत्तर :
मनुष्य बुद्धिशाली प्राणी है इसलिए वह अपने चारों ओर की परिस्थिति का विश्लेषण और वर्गीकरण कर सकता है ।
7. मानवजीवन सुखरूप से व्यतीत हो इसलिए उसने कौन-कौन सी व्यवस्था खड़ी की है ?
उत्तर :
मानवजीवन सुखरूप से व्यतीत हो इसके लिए उसने समाजव्यवस्था, राज्यव्यवस्था और अर्थव्यवस्था खड़ी की है ।
8. आदि युग में मनुष्य अपने प्रश्नों और समस्याओं का समाधान किस प्रकार लाता था ?
उत्तर :
आदियुग में मनुष्य अपने प्रश्नों और समस्याओं का समाधान युद्ध या लड़ाई के द्वारा लाता था ।
9. प्राचीन ग्रीस में Oikos शब्द का सम्बन्ध किससे है ?
उत्तर :
प्राचीन ग्रीस में Oikos शब्द का सम्बन्ध घरेलू साधन-सामग्री जो व्यक्तिगत मालिकी से है ।
10. भारत में चार पुरुषार्थ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर :
भारत में चार पुरुषार्थ :
- धर्म
- अर्थ
- काम और
- मोक्ष है ।
11. ‘अर्थपूर्ण प्रवृत्ति’ किसे कहते हैं ?
उत्तर :
‘कुछ प्राप्त करने की’ अपेक्षा के साथ होनेवाली प्रवृत्ति को ‘अर्थपूर्ण प्रवृत्ति’ कहते हैं ।
12. रॉबिन्स के अनुसार अर्थशास्त्र यथार्थलक्षी शास्त्र है क्यों ?
उत्तर :
रॉबिन्स का मानना है कि ‘अर्थशास्त्र क्या है ?’ इसका अध्ययन करता है – ‘क्या होना चाहिए ?’ ऐसी नैतिक बातों का अध्ययन नहीं करता है । इसलिए अर्थशास्त्र यथार्थलक्षी शास्त्र है वह आदर्शवादी शास्त्र नहीं है ।
13. सेम्युअलसन के अनुसार अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान है कैसे ? ।
उत्तर :
सेम्युअलसन के अनुसार अर्थशास्त्र मनुष्य को आर्थिक व्यवहारों का अध्ययन करनेवाला शास्त्र है यह वास्तवदर्शी है । उसके अध्ययन की पद्धति वैज्ञानिक है इसलिए अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान है ।
14. भौतिक संपत्ति से आप क्या समझते हैं ? ।
उत्तर :
कुदरत के द्वारा मनुष्य की सहायता के लिए दी गई प्राकृतिक भेंट से मनुष्य के उपयोग योग्य बनाई गई चीजवस्तुओं को भौतिक संपत्ति कहते हैं, जिसमें उत्पादकीय श्रम का भी समावेश किया गया है । जिनमें मनुष्य को संतुष्टि प्रदान करने की क्षमता हो । हमें जिन्हें देख, खरीद और बेच सकें, जिनकी कमी हो, जिनका हम आदान-प्रदान (विनिमय) कर सकें, जिसका हम मुद्रा में मूल्य निर्धारित कर सकें उन्हें हम भौतिक संपत्ति कह सकते हैं ।
15. व्यक्ति के दैनिक व्यवहार का परिचय दीजिए ।
उत्तर :
आय प्राप्ति तथा उसे खर्च करना, संपत्ति के उत्पादन और प्राप्ति के साथ उसका उपयोग करना एवं महत्तम संतोष प्राप्त करना संपत्ति का विनिमय करना और उसका वितरण ही मनुष्य का दैनिक व्यवहार है ।
16, अभाव (कमी) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति के सामने सीमित साधनों की उपलब्धी को हम अभाव/कमी/दुर्लभता कह सकते हैं ।
17. क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है ?
उत्तर :
अर्थशास्त्र विज्ञान है, क्योंकि अर्थशास्त्र में भी विज्ञान की तरह वास्तविकता (यथार्थ) का पद्धतिसर एकत्रीकरण, वर्गीकरण और विश्लेषण के द्वारा संशोधन के माध्यम से निश्चित निष्कर्षों के द्वारा निश्चित नियम बनाये जाते हैं । मानवीय आवश्यकता और साधनों के बीच मानवीय व्यवहार का अध्ययन किया जाता है इसलिए अर्थशास्त्र विज्ञान है ।
18. सूक्ष्मलक्षी अर्थशास्त्र से आप क्या समझते है ?
उत्तर :
एक व्यक्ति या एक इकाई (पीढ़ी) ही नहीं उसमें किसी एक उद्योग की भी चर्चा की जाती है । सूक्ष्मलक्षी अर्थशास्त्र एक व्यक्ति, एक परिवार, एक इकाई या उद्योग जैसी वैयक्तिक इकाई के व्यवहारों का अध्ययन करता है । जैसे : किसी एक ग्राहक के द्वारा वस्तु की की गई माँग का अभ्यास ।
19. व्यापकलक्षी अर्थशास्त्र की व्याख्या दीजिए ।
उत्तर :
कोई एक इकाई के बदले तमाम इकाईयों के समूह के आर्थिक व्यवहारों का अभ्यास अर्थात् व्यापकलक्षी अर्थशास्त्र । जैसें : सभी उद्योगों का व्यापक रूप से सम्पूर्ण अभ्यास, समाज के सभी वर्ग के ग्राहकों के द्वारा की जानेवाली माँग का अभ्यास ।
20. अर्थशास्त्र की पूर्व विचारधारा का धर्म और नीतिशास्त्र के साथ कैसा संबंध है ?
उत्तर :
अर्थशास्त्र की पूर्व विचारधारा का धर्म और नीतिशास्त्र के साथ घनिष्ठ संबंध है ।
21. क्या आर्थिक समस्या पसंदगी की समस्या है ?
उत्तर :
आर्थिक समस्या पसंदगी की समस्या है क्योंकि असीमित आवश्यकता और सीमित साधनों के बीच के अभाव से आर्थिक समस्या उत्पन्न होती है और सीमित साधनों के वैकल्पिक उपयोगों का श्रेष्ठ उपयोग किस प्रकार करें कि महत्तम आवश्यकताओं को हम संतुष्ट कर सकें उसे हम पसंदगी की समस्या कह सकते हैं ।
22. आर्थिक प्रवृत्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर :
आवश्यकता संतुष्टि, अर्थ उपार्जन के लिए मनुष्य के द्वारा की गई प्रवृत्ति को आर्थिक प्रवृत्ति कहते हैं ।
23. अनार्थिक प्रवृत्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिस प्रवृत्ति का उद्देश्य आय प्राप्त करना, खर्च करना और विनिमय का न हो उन्हें अनार्थिक प्रवृत्ति कहते हैं ।
24. एक ही प्रकार की जानकारी के लिए कौन-सी आकृति अनुकूल है ?
उत्तर :
एक ही प्रकार की जानकारी के लिए स्तंभाकृति अधिक अनुकूल है ।
25. तुलनात्मक जानकारी के लिए कौन-सी आकृति अनुकूल है ?
उत्तर :
तुलनात्मक जानकारी के लिए पासपास की स्तंभाकृति और वृत्तांश आकृति का उपयोग करते हैं ।
26. आर्थिक जगत में मनुष्य के कितने स्वरूप हैं ?
उत्तर :
आर्थिक जगत में मनुष्य के तीन स्वरूप हैं :
- ग्राहक के रूप में
- उत्पादक के रूप में
- श्रमिक के रूप में
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर अतिसंक्षिप्त में लिखिए :
1. मार्शल की अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर :
मार्शल ने अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार दी है – ‘अर्थशास्त्र मनुष्य की दैनिक जीवन के आर्थिक व्यवहारों का अध्ययन करता है । जहाँ वह भौतिक चीजवस्तु के उपयोग से कल्याण (सुख) प्राप्त करता है ।
उपरोक्त परिभाषा से यह फलित होता है कि ‘धन’ मनुष्य के लिए है, न कि मनुष्य धन के लिए । मानवजीवन का एकमात्र लक्ष्य ‘मानव कल्याण’ है और धन का प्रयोग केवल साधन के रूप में किया जाता है ।
2. आर्थिक प्रवृत्ति और अनार्थिक प्रवृत्ति के बीच अंतर समझाइए ।
उत्तर :
आर्थिक प्रवृत्ति | अनार्थिक प्रवृत्ति |
1. मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के उद्देश्य से वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय के लिए आय प्राप्त करना या खर्च करने की प्रवृत्ति करें तो उसे आर्थिक प्रवृत्ति कहते हैं । | 1. जिस प्रवृत्ति का उद्देश्य आय प्राप्त करना, खर्च करना और विनिमय के उद्देश्य से न की जानेवाली प्रवृत्ति को अनार्थिक प्रवृत्ति कहते हैं । |
2. आर्थिक प्रवृत्ति आर्थिक उद्देश्यों से की जाती है । | 2. अनार्थिक प्रवृत्ति दया, प्रेम, भावना से प्रेरित प्रवृत्ति की जाती है । |
3. आर्थिक प्रवृत्ति में खर्च करने पर प्रत्यक्ष रूप से कुछ मिलता है । | 3. अनार्थिक प्रवृत्ति में खर्च होता है परंतु प्रत्यक्ष रूप से कुछ प्राप्त नहीं होता है । |
4. इसमें विनिमय का उद्देश्य होता है । | 4. इसमें विनिमय का उद्देश्य नहीं होता है । |
3. सूक्ष्म अर्थशास्त्र और बृहद अर्थशास्त्र के बीच अंतर स्पष्ट करो ।
उत्तर :
सूक्ष्म अर्थशास्त्र | बृहद अर्थशास्त्र |
1. इसके अन्तर्गत व्यक्तिगत आय, कीमतों, उद्योगों, माँग-पूर्ति, बेकारी, वेतनों, उत्पादनों इत्यादि का अध्ययन किया जाता है । | 1. इसके अन्तर्गत राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय उत्पादन, राष्ट्र की कुल बेकारी, सामान्य भावस्तर, औद्योगिक नीतियों इत्यादि का अध्ययन किया जाता है । |
2. यह अर्थतंत्र का सूक्ष्मावलोकन करता है । | 2. यह अर्थतंत्र का विहंगावलोकन करता है । |
3. इसके अन्तर्गत पारिवारिक बजट का अध्ययन किया जाता है । | 3. इसके अन्तर्गत केन्द्रीय बजट का अध्ययन किया जाता है । |
4. यह व्यक्तिगत माँग-पूर्ति का विश्लेषण करता है । | 4. इसमें बाजार माँग-पूर्ति का विश्लेषण किया जाता है । |
5. इसके द्वारा समस्त राष्ट्र के आर्थिक विकास का ख्याल नहीं आता । | 5. इससे सम्पूर्ण देश के आर्थिक विकास का ख्याल आता है । |
6. इसमें कीमतों का अध्ययन होता है । | 6. इसमें कीमत स्तर का अध्ययन किया जाता है । |
4. ‘अर्थतंत्र की दशा और दिशा के संबंध में व्यवहार जानने के लिए सांख्यकीय जानकारी उपयोगी है ।’ समझाइए ।
उत्तर :
व्यापक अर्थतंत्र या उसके किसी एक क्षेत्र का व्यवहार किस प्रकार है, कौन-सी दिशा है वह सांख्यकीय जानकारी के द्वारा जान सकते हैं । उदाहरण स्वरूप राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का हिस्सा घट रहा है, भारत की आयात में वृद्धि हो रही है । अर्थतंत्र में मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि हो रही है । इससे सम्बन्धित प्रवाह अंकों द्वारा ही जान सकते हैं । अंक दशा और दिशा दोनों दर्शाते हैं । अर्थतंत्र किस दशा में जा रहा है ? किस देश के साथ आर्थिक व्यवहार बढ़ रहा है ? किस क्षेत्र में उत्पादन बढ़ रहा है ? किस क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं ? यह सभी दिशाएँ सांख्यकीय जानकारी पर जान सकते हैं ।
5. कौटिल्य ने दी परिभाषा कौन-सी है ? वह समझाइए ।
उत्तर :
कौटिल्य जिन्हें चाणक्य के नाम से जानते हैं । उन्होंने 2500 वर्ष पूर्व ‘अर्थशास्त्र’ नामकी पुस्तक में आर्थिक प्रवृत्ति के लिए चिंतन प्रस्तुत किया । अर्थशास्त्र की परिभाषा कौटिल्य ने इस प्रकार दिया : ‘मनुष्य की वृत्ति अर्थ है, मनुष्य का आवासवाली भूमि अर्थ है इसलिए पृथ्वी के देखभाल के उपाय दर्शानेवाला शास्त्र अर्थात् अर्थशास्त्र ।’ अथवा
कौटिल्य के मतानुसार “मनुष्य ने युक्त की भूमि और उसकी सुरक्षा के उपाय बताये वही अर्थशास्त्र है ।”
कौटिल्य ने राजधर्म, कर, कर के तत्त्व, दंड, पारिश्रमिक, वेतन, व्याज और कर्ज के संदर्भ में मार्गदर्शन दिया है ।
कौटिल्य ने भौतिक विचारधारा में साधन और साध्यों की स्पष्टता की है जिसका विरोध संभव नहीं है । उनकी विचारधारा की तुलना पाश्चात्य अर्थशास्त्र के साथ नहीं की जा सकती । मनुष्य आर्थिक लाभों की प्राप्ति के लिए हमेशा इच्छित रहता है और उसकी प्राप्ति के बाद उसकी सुरक्षा, उसे बनाये रखना, उनके उपाय अर्थशास्त्र बताता है ।
6. प्रो. मार्शल का अर्थशास्त्र और प्रो. रॉबिन्स का अर्थशास्त्र के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
प्रो. मार्शल का ख्याल | प्रो. रॉबिन्स का ख्याल |
(1) मार्शल की परिभाषा अत्यन्त सरल और स्पष्ट है । | (1) रॉबिन्स की परिभाषा जटिल और कठिन है । |
(2) प्रो. मार्शल अर्थशास्त्र को वास्तविक और आदर्श विज्ञान के साथ-साथ कला भी मानते हैं । | (2) प्रो. रॉबिन्स अर्थशास्त्र को केवल वास्तविक विज्ञान भी मानते हैं । |
(3) प्रो. मार्शल की परिभाषा के अनुसार अर्थशास्त्र का क्षेत्र अपेक्षाकृत संकुचित है । | (3) प्रो. रॉबिन्स की परिभाषा के अनुसार अर्थशास्त्र का क्षेत्र अपेक्षाकृत विस्तृत है । |
(4) प्रो. मार्शल की परिभाषा व्यवहारिक है । | (4) प्रो. रॉबिन्स की परिभाषा सैद्धान्तिक है । |
(5) प्रो. मार्शल का दृष्टिकोण आदर्शवादी है । | (5) प्रो. रॉबिन्स का अर्थशास्त्र यथार्थवादी है । |
7. “सूक्ष्म अर्थशास्त्र एवं बृहद अर्थशास्त्र परस्परावलंबी है ।” विधान समझाइए ।
उत्तर :
सूक्ष्म अर्थशास्त्र एवं बृहद अर्थशास्त्र आर्थिक मामलों का अध्ययन करनेवाली दो अलग-अलग पद्धतियाँ है । परन्तु ये दोनों पद्धतियाँ एक-दूसरे पर निर्भर है । ये बैलगाड़ी के उन दो पहियों के समान है जिस में किसी एक पहिए के बिना बैलगाड़ी नहीं चल सकती । बृहद अर्थशास्त्र के अन्तर्गत राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय उत्पादन, देश की कुल बेकारी, सामान्य भावस्तर, औद्योगिक नीतियाँ, बाजार माँग-पूर्ति इत्यादि का अध्ययन किया जाता है । परन्तु इसके अध्ययन के लिए – वैयक्तिक आय, वैयक्तिक उत्पादन, वैयक्तिक बेकारी, व्यक्तिगत माँग-पूर्ति इत्यादि का जानना आवश्यक होता है । तमाम बृहद आर्थिक परिमाणों का व्यवहार वैयक्तिक व्यवहारों पर से लिया जाता है जैसे – निवेश का सिद्धान्त, कुल उपभोग का सिद्धान्त इत्यादि । ठीक इसी प्रकार सूक्ष्म अर्थशास्त्र भी बृहद अर्थशास्त्र पर काफी हद तक निर्भर है । जैसे – लाभ की दर-निर्धारण का सिद्धान्त एवं व्याज की दर-निर्धारण का सिद्धान्त । लाभ की दर-निर्धारण के सिद्धान्त में नियोजक द्वारा कमाया गया लाभ का कद-निर्धारण और उसमें होनेवाले परिवर्तनों में लाभ का कद, कुल माँग का स्तर, कुल आय, सामान्य भावस्तर पर आधारित होते है ।
8. “बृहद अर्थशास्त्र विश्वव्यापी महामंदी की भेट हैं ।” विधान की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
बृहद अर्थशास्त्र का आधुनिक स्वरूप सन् 1929 में विश्वव्यापी महामंदी के कारण अस्त-व्यस्त हुए अर्थतंत्र को सुधारने के उद्देश्य से प्राप्त हुआ । अर्थशास्त्रीयों का विचार था कि बाजार तंत्रवाली अर्थव्यवस्था में स्वचालित समंजन की क्षमता है, जिसके कारण सारी अर्थव्यवस्था सदैव संतुलन में ही रहेगी, और किसी भी प्रकार के आर्थिक संकट को सुलझाने में बाजार तंत्र सक्षम है । परन्तु सन 1929 की विश्वव्यापी मंदी के संकट से निकलने में यह व्यवस्था असमर्थ रही । इसलिए इस विचार धारा पर प्रश्नचिहन लग गया, जिसकी वजह से बृहद अर्थशास्त्र का जन्म हुआ । आज के युग में बृहद स्तरीय आर्थिक विश्लेषण का आरम्भ इसी केंजीय सिद्धान्त से होता है ।
9. “बृहद अर्थशास्त्र एक ‘नूतन अर्थशास्त्र’ है ।” विधान की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
अर्थशास्त्र को स्पर्श करनेवाले बृहद (व्यापक) प्रश्नों के अध्ययन के सन्दर्भ में व्यापक विचारों (अभिगमों) को लॉर्ड कीन्स ने ‘नूतन अर्थशास्त्र’ के रूप में खूब प्रचलित और लोकप्रिय बनाया । आज जिसे बृहद अर्थशास्त्र के रूप में जाना जाता है. उसके कितने ही भागों को भूतकाल में मौद्रिक अर्थशास्त्र के रूप में जाना जाता था । आज जिसे नूतन अर्थशास्त्र कहते हैं प्राचीन काल में इसका अध्ययन मौद्रिक अर्थशास्त्र के रूप में किया जाता था ।
10. वृत्तांश आकृति बनाने की विधि समझाइए ।
उत्तर :
समग्र वृत्त एक समष्टी है और इसका एक भाग उसका हिस्सा हैं । जब अलग-अलग जानकारी वृत्त में दर्शायी जाती है । तब वृत्तांश आकृति का निर्माण होता है । तुलनात्मक प्रस्तुति के लिए वृत्तांश आकृति अधिक उपयोगी है ।
वृत्तांश आकृति बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :
- एक से अधिक जानकारी को दर्शाने के लिए वृत्तांश आकृति का उपयोग करते हैं ।
- प्रस्तुत जानकारी को सर्वप्रथम प्रतिशत में परिवर्तित करते हैं ।
- प्रतिशत संख्या को 360 और 100 के अनुपात से गुणा करके अंश में परिवर्तित करते हैं ।
- वृत्त की रचना करके एक त्रिज्या की रचना करते हैं ।
- त्रिज्या से सर्वप्रथम सबसे बड़े अंश (संख्या) को दर्शाते हैं ।
- उसके बाद उतरते क्रम में घड़ी की दिशा में दर्शाते हैं ।
- अलग-अलग अंश को अलग रंग या डिजाइन से दर्शाते हैं ।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के मुद्दासर उत्तर लिखिए ।
1. एडम स्मिथ और मार्शल द्वारा दी गयी अर्थशास्त्र की परिभाषा विस्तार से समझाइए ।
उत्तर :
प्राचीन समय में अर्थशास्त्र को अर्थनीतिशास्त्र के रूप में पहचाना जाता था । सन् 1776 से पूर्व अर्थशास्त्र का अभ्यास समाजशास्त्र के हिस्से के रूप में किया जाता था । प्राचीन अर्थशास्त्री अर्थशास्त्र को धन का शास्त्र या सम्पत्ति का शास्त्र मानते थे ।
सबसे पहले एडम स्मिथ नामक अर्थशास्त्री ने अर्थशास्त्र की पाश्चात्य विचारधारा को प्रस्तुत करने का प्रयास किया था । उन्होंने अपनी 1776 में लिखी पुस्तक ‘राष्ट्रों की सम्पत्ति’ (Wealth of Nations) में अर्थशास्त्र की परिभाषा इसी आधार पर दी है । इसीलिए एडम स्मिथ को अर्थशास्त्र का जनक कहते हैं । उन्होंने अपनी पुस्तक में अर्थशास्त्र की परिभाषा लिखते हुए बताया कि –
“अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है ।”
“Economics is the Science of Wealth.”
उन्होंने उपयोगी चीजवस्तुओं का परिचय देकर भौतिक सम्पत्ति पर विशेष ध्यान केन्द्रीत किया । इस प्रकार उत्पादक श्रम को वे भौतिक संपत्ति के साथ जोड़ लेते हैं ।
उनकी परिभाषा से यह निष्कर्ष निकलता है कि
- धन ही अर्थशास्त्र के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु है ।
- धन ही मानव सुखों का आधार है ।
- राष्ट्रीय धन में वृद्धि व्यक्तिगत समृद्धि के विकास के द्वारा हो सकती है ।
व्यक्ति संपत्ति पैदा करता है, उसका उपयोग करता है, उसका विनिमय करता है और उसका बँटवारा करता है । व्यक्ति के सम्पत्ति के साथ रहे हुए इस व्यवहार को समझाने के उद्देश्य से अर्थशास्त्र में संपत्ति के उत्पादन, उपभोग, विनिमय और बँटवारे का अभ्यास किया जाता है । उससे संबंधित सिद्धांत भी तैयार किए गये हैं ।
प्रो. स्मिथ के मतानुसार सम्पत्ति के उत्पादन और बँटवारे से सम्बन्धित संकल्पना का आय और रोजगार निर्धारण तथा आर्थिक वृद्धि जैसी आधुनिक संकल्पनाओं से घनिष्ठ सम्बन्ध है । इस प्रकार यह विचारधारा सम्पत्ति के शास्त्र संबंधी विचार वर्तमान में भी उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण हैं ।
औद्योगिक क्रांति के कारण संपत्ति में खूब वृद्धि हुई, जिसके फलस्वरूप धनवान, जमीदार, उद्योगपति जैसा वर्ग उभरकर सामने आया । उत्पादन में वृद्धि हुई और मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं की संतुष्टि संभव बनी । वैसे यह कहा जाता है कि जिस राष्ट्र के पास जितनी अधिक संपत्ति होगी वह उतना अधिक सुखी और विकसित राष्ट्र बनेगा । इसीलिए अर्थशास्त्र में संपत्ति का उल्लेखनीय महत्त्व है । एडम स्मिथ ने उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने में उपयोगी श्रम विभाजन और यंत्रों के उपयोग की हिमायत की है ।
वैसे इस विचारधारा में संपत्ति के साथ मानव व्यवहार को पर्याप्त महत्त्व नहीं दिया गया है । फिर भी यह विचार एक सीमित क्षेत्र के लिए अधिक उपयोगी और लाभदायी माना जा सकता है ।
प्रो. मार्शल की परिभाषा :
किसी भी व्यक्ति के लिए भौतिक संपत्ति उसके सुखों को प्राप्त करने का साधन हो सकती है, जिससे मानव कल्याण का ध्येय सिद्ध हो सकता है । संपत्ति के शास्त्र के सहयोग में मानव कल्याण की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए ।
प्रो. अल्फ्रेड मार्शल के मतानुसार अर्थशास्त्र कल्याणलक्षी शास्त्र है, जो व्यक्ति के दैनिक व्यवहार का अध्ययन करता है । व्यक्ति का दैनिक व्यवहार आय प्राप्त करना और उसे खर्च करना है । इसके अलावा अर्थशास्त्र सुख, भौतिक साधनों की प्राप्ति और उसके उपयोग के साथ घनिष्ठ संबंध रखनेवाले व्यक्ति और समाज के व्यवहार की अत्यंत सूक्ष्म जाँच करता है ।
परिभाषा : “राजकीय अर्थव्यवस्था या अर्थशास्त्र जीवन के साधारण व्यवसाय में मानव जाति का अध्ययन है । यह व्यक्तिगत तथा सामाजिक क्रियाओं के उस भाग की जाँच करता है जिसका सम्बन्ध मानव कल्याण के लिए अनिवार्य भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उपयोग से हैं ।”
उपरोक्त परिभाषा से यह फलित होता है कि ‘धन’ मनुष्य के लिए है, न कि मनुष्य धन के लिए । मानव जीवन का एक मात्र लक्ष्य ‘मानव कल्याण’ है और धन का प्रयोग केवल साधन के रूप में किया जाता है ।
उपरोक्त परिभाषा के आधार पर हम कह सकते हैं कि –
- अर्थशास्त्र में व्याख्या का अभ्यास मुख्य है । अर्थशास्त्र व्यक्ति के द्वारा अपनायी जानेवाली संपत्ति के उत्पादन और उपयोग की पद्धति का अध्ययन करता है ।
- अर्थशास्त्र व्यक्ति की आय प्राप्त करने और उसका उपयोग करने की पद्धति का अध्ययन करता है ।
- अर्थशास्त्र का संबंध व्यक्ति के भौतिक कल्याण के साथ है ।
- अर्थशास्त्र में केवल उन व्यक्तियों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जो वास्तविक, सामाजिक और सामान्य होते हैं न कि काल्पनिक और असामान्य ।
- कल्याणलक्षी अर्थशास्त्र में धन की अपेक्षा व्यक्ति को महत्त्व दिया गया है ।
2. अर्थशास्त्र में सांख्यकीय जानकारी के महत्त्व को मुद्दासर समझाइए ।
उत्तर :
आर्थिक अध्ययन में सांख्यकीय जानकारी को हम तीन प्रकार से प्रस्तुत कर सकते हैं :
(1) भाषा द्वारा वर्णनात्मक रीति से
(2) संख्याओं के द्वारा
(3) आकृति द्वारा (प्रतीकात्मक रूप से)
(1) भाषा द्वारा वर्णनात्मक रूप से : अर्थशास्त्र के किसी भी नियम या सिद्धांतों को हम भाषा या कथ्य स्वरूप में वर्णनात्मक ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं । जैसे : माँग के नियम को अपने समझा सकते हैं कि ‘वस्तु की कीमत में कमी होने से वस्तु की माँग में विस्तरण होता है ।’ इस प्रकार यहाँ माँग के नियम को शब्दों के द्वारा प्रस्तुत किया ।
(2) संख्याओं के द्वारा (सांख्यकीय स्वरूप) : अर्थशास्त्र का सम्बन्ध अंकों से विशेष हैं । इसलिए अपनी प्रस्तुति को अधिक आधारभूत एवं विश्वसनीय बनाने के लिए उसे संख्याओं में प्रस्तुत कर सकते हैं । जैसे उपर माँग के नियम को सांख्यकीय स्वरूप में निम्नानुसार प्रस्तुत कर सकते हैं :
कीमत (रु) | माँग (इकाई में) |
10 | 10 |
7 | 30 |
5 | 60 |
2 | 100 |
अंकों में भी वही बात स्पष्ट होती है कि कीमत घटने पर माँग का विस्तरण होता है ।
(3) आकृति द्वारा (प्रतीकात्मक रूप से) : अर्थशास्त्र में किसी भी आर्थिक जानकारी को वर्णनात्मक या सांख्यकीय स्वरूप की अपेक्षा संक्षिप्त में आलेख और आकृति द्वारा प्रस्तुत कर सकते हैं :
- आकृति में उद्गम बिंदु से देखने पर उपर से नीची की ओर जानेवाली रेखा यह बात दर्शाती है कि एक चल (कीमत) में कमी हो तो दूसरा चल (माँग) का विस्तरण होता है ।
- यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि दो चलों के बीच कार्यकारण का सम्बन्ध होता है । अर्थशास्त्र की सभी प्रस्तुति तार्किक होती है । ‘ऐसा और वैसा’ के स्वरूप में ही प्रस्तुत होती है और अधिक तार्किक होती है ।
- आलेख और आकृति की जानकारी को मात्र देखकर ही स्थिति को जान सकते हैं इसलिए पढ़ने में समय के व्यय को बचा सकते है ।
- आलेख्न या आकृति से तुलनात्मक अध्ययन भी सरल बन सकता है ।
- जानकारी अधिक असरकारक एवं रूचिकर बनती है ।
- आलेख और आकृति द्वारा प्रस्तुत जानकारी को लम्बे समय तक याद रख्न सकते हैं ।
3. ‘अर्थशास्त्र’ से संबंधित भारतीय चिंतन की जानकारी दीजिए ।
उत्तर :
भारत की सभ्यता और संस्कृति का इतिहास लगभग पाँच हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है । इसी कारण भारतीय तत्त्वचिंतन में मानवजीवन के विविध पहलूओं का अध्ययन और मार्गदर्शन देखने को मिलता है ।
मनुष्य के चार पुरुषार्थ हैं :
- धर्म
- अर्थ
- काम और
- मोक्ष जो मनुष्य को करने होते हैं । इनमें से ‘अर्थ’ के लिए की जानेवाली प्रवृत्ति से अर्थशास्त्र जुड़ा हुआ है ।
‘कुछ प्राप्त करने की’ अपेक्षा होनेवाली प्रवृत्ति यह ‘अर्थ पूर्ण’ प्रवृत्ति है । जीवननिर्वाह और भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए अर्थोपार्जन करना (आय प्राप्त करना) यह मनुष्य का कर्तव्य है । लगभग 2500 वर्ष पहले ‘अर्थशास्त्र’ नाम की पुस्तक में कौटिल्य (चाणक्य) ने मानवीय प्रवृत्ति के लिए चिंतन प्रस्तुत किया था । उनके अनुसार ‘मनुष्य की वृत्ति अर्थ है, मनुष्य के निवास करनेवाली भूमि अर्थ है इसलिए पृथ्वी के लालन-पालन (देखभाल) के उपाय दर्शानेवाला शास्त्र अर्थात् अर्थशास्त्र ।’
भारतीय चिंतन में मानव कल्याण का समग्रता के साथ विचार होता था । आर्थिक प्रवृत्ति भी मात्र ‘अर्थ’ केन्द्रित न रहकर नैतिक आधार के साथ समग्र मानवकल्याण को ध्यान में रखकर होता है । इसलिए चाणक्य के अर्थशास्त्र पर नीतिशास्त्र का प्रभाव है । चाणक्य के अधिकांशतः आर्थिक विचारों में सार्वजनिक और सामूहिक व्यवहारवाली आर्थिक प्रवृत्ति ही केन्द्र में है । विशेष रूप से कौटिल्य ने अपने मार्गदर्शन में राजाशाही राज्य व्यवस्था और कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था की आर्थिक बातों को प्रस्तुत किया है ।
4. रॉबिन्स के द्वारा दी गयी अर्थशास्त्र की परिभाषा को विस्तार से समझाइए ।
उत्तर :
प्रो. रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को न तो धन का विज्ञान ही माना, न ही मानव कल्याण का शास्त्र । उन्होंने तो मनुष्य की असीमित आवश्यकताओं का सीमित साधनों से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया है । उनकी पुस्तक ‘An Essay in to The Nature and Significance of Economic Science’ सन् 1932 . में निम्नलिखित परिभाषा के द्वारा अर्थशास्त्र को प्रस्तुत किया । परिभाषा :
“अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जिसमें साध्यों तथा उनमें सीमित एवं वैकल्पिक उपयोगोंवाले साधनों के परस्पर सम्बन्धों के रूप में मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है ।”
प्रो. रॉबिन्स के अनुसार अर्थशास्त्र प्रत्येक क्रिया के आर्थिक पक्ष का अध्ययन करता है । उनकी परिभाषा अर्थशास्त्र को आर्थिक- . अनार्थिक क्रियाओं, भौतिक-अभौतिक कल्याण आदि के बन्धन से मुक्त करती है । उन्होंने सामाजिक व्यवहार के स्थान पर मानव व्यवहार को अर्थशास्त्र का क्षेत्र बताया है । उनके मतानुसार आर्थिक समस्या का जन्म साधनों की दुर्लभता के कारण हुआ है । मनुष्य की सभी आवश्यकताएँ एकसमान महत्त्व की नहीं है ।
जब आवश्यकताएँ एकसमान नहीं होती तब उनकी पसंदगी की समस्या उत्पन्न होती है । तब मनुष्य उन्हें महत्त्व का क्रम देकर उनकी संतुष्टि करता है । वे बृह्यलक्षी अर्थशास्त्र की उपेक्षा करते हैं । वे उत्पादन और उसके वितरण पर अधिक जोर देते हैं । मनुष्य असीमित आवश्यकताओं की संतुष्टि सीमित साधनों के माध्यम से किस प्रकार तर्कबद्ध रूप से कर सकता है, उसका ज्ञान दिया गया है ।
फिर भी उनकी इस परिभाषा के अनुसार अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति पूर्णतः तटस्थ नहीं है । मानव व्यवहार को ‘निर्णय’ से सर्वथा मुक्त नहीं किया जा सकता है । उन्होंने केवल निगमन प्रणाली का प्रयोग ही बताया है ।
5. आर्थिक और अनार्थिक प्रवृत्ति को उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :
मनुष्य सतत प्रवृत्तिशील है । वह दिनभर अनेक प्रकार की प्रवृत्तियाँ करता हैं । अर्थशास्त्र मनुष्य की सभी प्रवृत्तियों का अध्ययन नहीं करता हैं, मात्र आर्थिक प्रवृत्तियों का अध्ययन करता है । इसलिए अर्थशास्त्र के अध्ययन में आर्थिक प्रवृत्ति का अर्थ समझना आवश्यक है ।’
(1) आर्थिक प्रवृत्ति : ‘मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के उद्देश्य से वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय के लिए आय प्राप्त करना और खर्च करने की प्रवृत्ति करता है उसे आर्थिक प्रवृत्ति कहते हैं ।’
आर्थिक प्रवृत्ति में तीन बातें महत्त्वपूर्ण हैं : आय, खर्च और विनिमय अर्थात आर्थिक विनिमय के लिए आय-प्राप्ति या खर्च करने की प्रवृत्ति अर्थात् आर्थिक प्रवृत्ति । संक्षिप्त में ‘आवश्यकता, संतुष्टि, अर्थ उपार्जन के लिए मनुष्य के द्वारा की गई प्रवृत्ति को आर्थिक प्रवृत्ति कहते हैं ।
इस प्रकार आर्थिक प्रवृत्ति में कुछ प्राप्त करने के लिए खर्च करना पड़ता है । इसमें विनिमय होना जरूरी है । जिसे नीचे के उदाहरणों से समझ सकते हैं :
- होटल में खाना खाना (खर्च करके आवश्यकता संतुष्ट करना)
- थियेटर में जाकर फिल्म देखना (खर्च करके मनोरंजन प्राप्त करना)
- खेत में जाकर परिश्रम करना (श्रम करके उत्पादन प्राप्त करना)
- स्कूल में बच्चों को पढ़ाकर वेतन प्राप्त करना (सेवा देकर आय प्राप्त करना)
(2) अनार्थिक प्रवृत्ति : जिस प्रवृत्ति का उद्देश्य आय प्राप्त करना, खर्च करना और विनिमय नहीं है इनको छोड़कर सभी प्रवृत्ति अनार्थिक प्रवृत्ति हैं ।
जैसे : दया, प्रेम, माया जैसी भावना से प्रेरित प्रवृत्तियाँ अनार्थिक प्रवृत्तियाँ हैं ।
जिस प्रवृत्ति में मात्र आय या मात्र खर्च हो और विनिमय न हो वह प्रवृत्ति अनार्थिक है । जिसे नीचे के उदाहरण से समझ सकते हैं
- दान देने की प्रवृत्ति (खर्च करने पर भी सामने से प्रत्यक्ष कुछ नहीं मिलता है ।)
- गृहिणी का घर में खाना पकाना (श्रम के बदले आय प्राप्त नहीं होती है ।)
- चोरी करके आय प्राप्त करना (बिना खर्च के आय प्राप्त करना)
- खुद के बच्चों को पढ़ाना (सेवा के बदले आय प्राप्त नहीं हुयी)
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए :
1. पश्चिम में अर्थशास्त्र के उद्भव और विकास के सम्बन्ध में संक्षिप्त में जानकारी दीजिए ।
उत्तर :
अर्थशास्त्र के सम्बन्ध में सर्वप्रथम तत्त्वचिंतक ऐरिस्टोटल ने Oeconomica नामक पुस्तक में आर्थिक चिंतन प्रस्तुत किया था। परंतु औद्योगिक क्रांति के बाद जैसे उद्योग क्षेत्र में सूक्ष्म श्रम-विभाजन और विशिष्टीकरण हुआ, उसी प्रकार ज्ञान के क्षेत्र में भी अध्ययन और संशोधन में भी विशिष्टीकरण हआ । भौतिक विज्ञान की तरह समाज विज्ञान और मानव व्यवहार का अध्ययन करनेवाले शास्त्रों में भी विशिष्टीकरण हुआ । अध्ययन की पद्धति का मात्र तर्क या कल्पना आधारित नहीं, प्रयोग और जाँच आधारित वैज्ञानिक पद्धति का अध्ययन शुरू हुआ । अर्थात् अब तक मनुष्य के आर्थिक व्यवहार का राज्यशास्त्र और नीतिशास्त्र या तत्त्व चिंतन के हिस्से रूप में अध्ययन होता था। उसका स्वतंत्र विषय के रूप में अध्ययन शुरू हुआ ।
औद्योगिक क्रांति के कारण बड़े-बड़े यंत्र, बड़े पैमाने पर उत्पादन, आर्थिक सत्ता का केन्द्रीकरण और बड़े पैमाने पर पूँजी निवेश के कारण एक नयी ही आर्थिक – सामाजिक व्यवस्था खड़ी हुयी । इस संदर्भ में, ‘किसी भी देश की आर्थिक संपत्ति में वृद्धि होने का कारण क्या हो सकता है ?’ इस प्रश्न पर गहन चिंतन के बाद 1976 में एडम स्मिथ ने अर्थशास्त्र का स्वतंत्र चिंतन करनेवाली पुस्तक ‘An Enquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Nations’ लिखी जिसे संक्षिप्त में ‘Wealth of Nations’ नाम से प्रसिद्ध हुयी। इस पुस्तक के कारण ही अर्थशास्त्र का स्वतंत्र और वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन शुरू करने का सम्मान एडम स्मिथ को मिला हैं ।
एडम स्मिथ के अतिरिक्त मार्शल, रॉबिन्स और सेम्युअल्स के विचार भी अर्थशास्त्र में प्रसिद्ध हैं ।
एडम स्मिथ के अनुसार अर्थशास्त्र की परिभाषा : ‘Economics is the science of wealth’ अर्थात् अर्थशास्त्र यह धन का शास्त्र है । एडम स्मिथ मानते हैं कि ‘उत्पादक श्रम द्वारा उत्पन्न हुयी भौतिक संपत्ति का उत्पादन, उपयोग और विनिमय का अध्ययन करनेवाला शास्त्र अर्थात् अर्थशास्त्र ।’
मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र की परिभाषा : ‘अर्थशास्त्र मनुष्य की दैनिक जीवन के आर्थिक व्यवहारों का अध्ययन करता है । जहाँ वह भौतिक चीजवस्तुओं के उपयोग से सुख प्राप्त करता हैं ।’
रॉबिन्स के अनुसार अर्थशास्त्र की परिभाषा : रॉबिन्स के अनुसार ‘Economics is the Science which studies human behaviour as a relationship between ends and scarce means which have alternative uses.’ ‘अर्थशास्त्र यह मनुष्य अपनी आवश्यकताओं और वैकल्पिक उपयोग करनेवाले साधनों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करता है । उसके व्यवहार का अध्ययन करनेवाला विज्ञान है ।’
सेम्युअलस के अनुसार अर्थशास्त्र की परिभाषा : ‘Economics is the study of how societies use scare resourses to produce valuable commodities and distribute the among different people.’ अर्थात् ‘समाज किस प्रकार से अपने मर्यादित साधनों द्वारा महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं का उत्पादन करता है और अलग-अलग लोगों के बीच बाँटता है । उसका अर्थशास्त्र अध्ययन करता है ।’
2. ‘सांख्यकीय जानकारी को संक्षिप्त में प्रस्तुत करने के लिए आकृति और आलेख अधिक अनुकूल है ।’ – समझाइए ।
अथवा
‘आर्थिक जानकारी की प्रस्तुति की पद्धतियाँ बताकर सांख्यकीय जानकारी को प्रस्तुत करने में आलेख और आकृति की पद्धति अधिक अनुकूल है ।’ चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
आर्थिक अध्ययन में सांख्यकीय जानकारी को हम तीन प्रकार से प्रस्तुत कर सकते हैं :
(1) भाषा द्वारा वर्णनात्मक रीति से
(2) संख्याओं के द्वारा
(3) आकृति द्वारा (प्रतीकात्मक रूप से)
(1) भाषा द्वारा वर्णनात्मक रूप से : अर्थशास्त्र के किसी भी नियम या सिद्धांतों को हम भाषा या कथ्य स्वरूप में वर्णनात्मक ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं । जैसे : माँग के नियम को अपने समझा सकते हैं कि ‘वस्तु की कीमत में कमी होने से वस्तु की माँग में विस्तरण होता है ।’ इस प्रकार यहाँ माँग के नियम को शब्दों के द्वारा प्रस्तुत किया ।
(2) संख्याओं के द्वारा (सांख्यकीय स्वरूप) : अर्थशास्त्र का सम्बन्ध अंकों से विशेष हैं । इसलिए अपनी प्रस्तुति को अधिक आधारभूत एवं विश्वसनीय बनाने के लिए उसे संख्याओं में प्रस्तुत कर सकते हैं । जैसे उपर माँग के नियम को सांख्यकीय स्वरूप में निम्नानुसार प्रस्तुत कर सकते हैं :
कीमत (रु) | माँग (इकाई में) |
10 | 10 |
7 | 30 |
5 | 60 |
2 | 100 |
अंकों में भी वही बात स्पष्ट होती है कि कीमत घटने पर माँग का विस्तरण होता है ।
(3) आकृति द्वारा (प्रतीकात्मक रूप से) : अर्थशास्त्र में किसी भी आर्थिक जानकारी को वर्णनात्मक या सांख्यकीय स्वरूप की अपेक्षा संक्षिप्त में आलेख और आकृति द्वारा प्रस्तुत कर सकते हैं :
- आकृति में उद्गम बिंदु से देखने पर उपर से नीची की ओर जानेवाली रेखा यह बात दर्शाती है कि एक चल (कीमत) में कमी हो तो दूसरा चल (माँग) का विस्तरण होता है ।
- यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि दो चलों के बीच कार्यकारण का सम्बन्ध होता है । अर्थशास्त्र की सभी प्रस्तुति तार्किक होती है । ‘ऐसा और वैसा’ के स्वरूप में ही प्रस्तुत होती है और अधिक तार्किक होती है ।
- आलेख और आकृति की जानकारी को मात्र देखकर ही स्थिति को जान सकते हैं इसलिए पढ़ने में समय के व्यय को बचा सकते है ।
- आलेख्न या आकृति से तुलनात्मक अध्ययन भी सरल बन सकता है ।
- जानकारी अधिक असरकारक एवं रूचिकर बनती है ।
- आलेख और आकृति द्वारा प्रस्तुत जानकारी को लम्बे समय तक याद रख्न सकते हैं ।
3. आर्थिक समस्याओं के अध्ययन में सांख्यकीय जानकारी के महत्त्व की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
आर्थिक प्रस्तुति में सांख्यकीय जानकारी का महत्त्व निम्नानुसार है :
(1) सिद्धांतों की आधारभूतता (विश्वसनीयता) में वृद्धि होती है : अर्थशास्त्र में दो आर्थिक चलों के बीच कार्यकारण के सम्बन्ध की जाँच करके सिद्धांत प्रस्तुत किये जाते हैं । इन सिद्धांतों को व्यवहारिक जाँच के लिए आधारभूत प्रस्तुति के लिए सांख्यकीय माहिती आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है ।
जैसे : वरसाद और कृषि उत्पादन के बीच सम्बन्ध, कीमत और माँग के बीच सम्बन्ध, लाभ और उत्पादन के बीच सम्बन्ध सांख्यकीय आधार के साथ प्रस्तुत किया जाये तो अधिक विश्वसनीय और सत्य है । यह जान सकते हैं ।
(2) दशा और दिशा जानने के लिए : समग्र अर्थतंत्र या उसके किसी एक क्षेत्र में प्रवाह किस प्रकार का है, किस दिशा में है यह अंकों द्वारा जान सकते हैं ।
जैसे : ‘राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र में हिस्सा कम हो रहा है । आयात में वृद्धि हो रही है । मुद्रा आपूर्ति बढ़ रही है । यह प्रवाह अंकों द्वारा जान सकते हैं । अंक दशा और दिशा दोनों दर्शाते हैं । अर्थतंत्र किस दिशा में जा रहा है ? किन देशों के साथ आर्थिक व्यवहार बढ़ रहे हैं । किस क्षेत्र में उत्पादन बढ़ रहा है ? कौन-सा क्षेत्र रोजगार दे रहा है ? यह सभी दिशा सांख्यकीय जानकारी से जान सकते हैं ।
(3) तुलनात्मक अध्ययन के लिए : तुलनात्मक अध्ययन के लिए सांख्यकीय जानकारी खूब ही उपयोगी सिद्ध होती है । स्थान या समय के आधार पर तुलना अंकों द्वारा ही होती हैं । भारत में ही 1951 की तुलना में 2015 में अपने आर्थिक क्षेत्र में कितने प्रमाण में परिवर्तन हुआ है । तथा दुनिया के अमेरिका, चीन, ब्रिटेन की तुलना में अपने कहाँ है यह जानने के लिए सांख्यकीय जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है ।
(4) संक्षिप्त में प्रस्तुति के लिए : आर्थिक अध्ययन में लंबे वर्णनों की अपेक्षा आर्थिक बातों को संक्षिप्त और प्रतीकात्मक प्रस्तुति के लिए सांख्यकीय जानकारी और आलेख खूब महत्त्वपूर्ण हैं । सामान्य मनुष्य भी समझ सके इस प्रकार से प्रस्तुत सांख्यकीय जानकारी, तुलनात्मक, प्रवाह और सिद्धांतों की सचोट और संक्षिप्त में प्रस्तुत कर सकते हैं और आलेख प्रथमदर्शीय समझ देते हैं ।
(5) आर्थिक समस्या की तीव्रता जानने के लिए : आर्थिक प्रस्तुति के लिए सांख्यकीय जानकारी महत्त्वपूर्ण है । सांख्यकीय जानकारी के द्वारा आर्थिक समस्या की तीव्रता को जान सकते हैं तथा उसे हल करने के लिए योजना बना सकते हैं । जैसे : जन्मदर, मृत्युदर, गरीबी, बेकारी आदि ।
4. सांख्यकीय जानकारी को आकृति-आलेख्न में प्रस्तुत करते समय कौन-कौन सी बातें ध्यान में रखनी चाहिए ?
उत्तर :
अर्थशास्त्रीय प्रस्तुति में, संशोधनों के निष्कर्षों में सिद्धांतों के फलितार्थों की विश्वसनीयता का आधार सांख्यकीय प्रस्तुति पर है । अंकों में प्राप्त जानकारी को आलेख या आकृति में प्रतिकात्मक रूप से आकर्षक रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं । आलेख या आकृति द्वारा जानकारी को सरलता से समझा सकते हैं, परंतु प्रस्तुत करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :
(1) विश्वसनीय प्राप्तिस्थान : आर्थिक सिद्धांत या निष्कर्ष जिसके आधार पर दिए गये हैं, उस सांख्यकीय जानकारी के प्राप्तिस्थान विश्वसनीय और सर्वसामान्य हो यह इच्छनीय हैं । जैसे कि आर्थिक स्थिति दर्शाने के लिए राष्ट्रीय सर्वे, विश्व बैंक की रिपोर्ट, केन्द्र सरकार की सांख्यकीय संस्था आदि के अंक अधिक आधारभूत और विश्वसनीय गिने जाते हैं ।
(2) स्वतंत्र और परतंत्र चल : दो या उससे अधिक चलों के बीच सम्बन्ध आलेख्न या आकृति में प्रस्तुत करते समय ध्यान रखना चाहिए कि स्वतंत्र चलों को क्षैतिज रेखा पर और (आधारित चलों को) परतंत्र चल को ऊर्ध्य रेखा पर दर्शाया जाता है । जैसे : देश, वर्ष, वरसाद यह स्वतंत्र चल हैं; जबकि जनसंख्या, आय, उत्पादन यह परतंत्र चल हैं । जैसे : वर्ष स्वतंत्र चल हैं जिसे OX अक्ष पर और उत्पादन परतंत्र चल हैं जिसे OY अक्ष पर दर्शाया जाता है ।
(3) उचित स्केल माप की पसंदगी : अंकों को आकृति में उचित रूप में प्रस्तुत करने के लिए योग्य स्केल माप या प्रमाण माप लेना चाहिए । जैसे समय से सम्बन्धित जानकारी हो तो 10 वर्ष के लिए एक स्केल माप निश्चित करके प्रस्तुत करना चाहिए । एक बार स्केलमाप निश्चित करने के बाद उसे बनाए रखना चाहिए । जैसे : एक ईंच = 5 वर्ष निश्चित किया हो फिर प्रत्येक 5 वर्ष बढ़ाने के लिए एक इंच आगे बढ़ना चाहिए । सांख्यकीय जानकारी को आकृति में संक्षिप्त में प्रस्तुत करते समय उन अक्ष पर = (ss) निशानी करते हैं ।
5. सांख्यकीय जानकारी को आकृति या आलेख में किन स्वरूपों में दर्शा सकते हैं ?
अथवा
आलेख या आकृति के प्रमुख प्रकारों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
सांख्यक जानकारी को आकृति या आलेख में विविध स्वरूप में दर्शा सकते हैं । दो चलों के बीच संबंध को बिन्द द्वारा और बिन्दुओं को जोड़नेवाली रेखा द्वारा दर्शाये तब रेखा आलेख बनता है । जिसे सामयिक श्रेणी भी कहते हैं । जैसे : माँग रेखा सांख्यकीय जानकारी को दर्शाने के लिए मुख्य रूप से तीन प्रकार के आलेखों का उपयोग करते हैं :
(1) स्तंभ – आलेख
(2) पास-पास की स्तंभाकृति (स्तंभालेख)
(3) वृत्तांश आकृति
(1) रतंभ आलेख : एक ही प्रकार की जानकारी के लिए स्तंभालेख या सादा स्तंभालेख का उपयोग करते हैं । आकृति में आधारित चल को ऊर्ध्व रेखा (y-अक्ष) पर दर्शाते हैं । स्वतंत्र चल क्षैतिज रेखा (x-अक्ष) पर दर्शाते हैं और उसके परिवर्तन में समय का अंतराल हैं। जैसे गेहूँ की दर वर्ष उत्पादन कितना हुआ उसकी सांख्यकीय जानकारी अपने पास हो तो स्तंभ आलेख में दर्शा ससकते हैं ।
(2) पास पास का स्तंभ-आलेख : जब स्वतंत्र चल एक और आधारित चल दो या उससे अधिक हो तो पास-पास के स्तंभ-आलेख में अच्छी तरह से दर्शा सकते हैं । जैसे : भारत में अक्षरज्ञान में वृद्धि जिसमें समय का परिबल एक है और परिवर्तित चलों में स्त्री साक्षरता . दर, पुरुष साक्षरता दर, कुल साक्षरता दर ऐसी तीन बातें हैं ।
गुजरात में साक्षरता दर का प्रमाण (%में)
वर्ष | पुरुष | स्त्री | कुल |
1951 | 30.17 | 12.79 | 21.09 |
1961 | 48.73 | 12.77 | 36.19 |
1971 | 53.78 | 29.00 | 41.84 |
1981 | 65.10 | 38.50 | 52.20 |
1991 | 73.13 | 48.64 | 61.29 |
2001 | 80.50 | 58.60 | 69.14 |
2011 | 87.23 | 70.73 | 79.31 |
(3) वृत्तांश आकृति : समग्र वृत्त एक समष्टि है । उसके भाग एक जानकारी है । यह दर्शाने के लिए वृत्तांश आकृति बनती है । – वृत्तांश अर्थात् वृत्त का अंश जैसे भारत की राष्ट्रीय आय (G.D.P.) में तीन महत्त्व के क्षेत्रों का योगदान निम्नानुसार है :
क्षेत्र | राष्ट्रीय आय में हिस्सा (% में) |
कृषि क्षेत्र | 13.9 |
उद्योग क्षेत्र | 26.2 |
सेवा क्षेत्र | 59.9 |
गणना :
कृषि क्षेत्र = 13.9 ×
उद्योग क्षेत्र = 26.2 ×
सेवा क्षेत्र = 59.9 ×
6. अर्थशास्त्र विषय के महत्त्व की चर्चा कीजिए ।
अथवा
अर्थशास्त्र के उद्देश्यों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
वर्तमान समय आर्थिक युग है । मनुष्य प्रत्येक प्रवृत्ति लाभ और हानि की तुलना के साथ करता हैं । बहुत ऐसे कम लोग हैं जो बिल्कुल निःस्वार्थ भाव से काम करता है । आर्थिक बातों से दूर रह सके ऐसा संभव नहीं है । इसलिए अर्थशास्त्र विषय का महत्त्व बढ़ जाता है । अर्थशास्त्र का महत्त्व दो दृष्टि से देख सकते हैं :
(1) व्यवहारिक महत्त्व
(2) व्यावसायिक महत्त्व
(1) व्यवहारिक महत्त्व :
अर्थशास्त्र अपने दैनिक जीवन के साथ जुड़ा हुआ है । अर्थशास्त्र का महत्त्व अपने व्यवहारिक महत्त्व निम्नानुसार है :
(i) अंतरराष्ट्रीय घटनाएँ : आज के समय में आर्थिक बातें ही अंतर्राष्ट्रीय बातों को असर करती हैं । अमेरिका क्यों सुपर पावर है ? क्रूडतेल का भाव बढ़ता-घटता है । रशिया और अमेरिका, चीन और भारत में कौन-सी आर्थिक समानता और अंतर है । कौनसा देश पूँजीवाद है और कौन-सा देश साम्यवादी ? इस जानकारी के आधार पर अपने किस देश के साथ सरलता से व्यवहार कर सकते हैं, वह समझ सकते हैं ।
(ii) ऐतिहासिक घटनाएँ : तेजपत्ता और गरम मसाले का भाव बढ़ा इसके लिए इंग्लैण्ड के व्यापारियों ने ईस्ट इण्डिया कंपनी की स्थापना करके भारत में व्यापार किया फिर कूट नीति से सत्ता स्थापित की । रोजगार और उद्योग धंधे नष्ट हुए, ऊँचे टेक्स के त्रास से भारतीय प्रजा ने अंग्रेजों के शासन का विरोध किया । देश-दुनिया में भाववृद्धि, अधिक टेक्स, कमी जैसे आर्थिक परिबल राजनैतिक अव्यवस्था सर्जित । करते हैं । इस प्रकार ऐतिहासिक घटनाओं के अनुभव से वर्तमान तथा भविष्य की नीति निर्माण में सहायता मिलती है ।
(iii) दैनिक निर्णय के लिए : डॉक्टर, वकील, गायक, शिक्षक, अभिनेता भी आर्थिक निवेश करते हैं । सीधे-सीधे से आर्थिक प्रवृत्ति से न जुड़े होने पर भी बचत और पूँजी निवेश, आय और खर्च की प्रवृत्ति से जुड़े होते हैं । गृहिणी से लेकर सरकार तक लोगों को निर्णय लेने में अर्थशास्त्र का अध्ययन उपयोगी होता है ।
(iv) सरकार की नीतियाँ समझने के लिए : भारत जैसे देशों में सरकार मुद्राकीय नीति, राजकोषीय नीति और आर्थिक नीति अपने दैनिक जीवन को प्रभावित करती हैं । इसलिए अर्थशास्त्र के अध्ययन से इस नीतियों को समझने तथा उसके अनुसार निर्णय लेने में सहायक होता है । जैसे : रिजर्व रेपोरेट के परिवर्तन के अनुसार अपने बचत और निवेश से सम्बन्धित निर्णय ले सकते हैं ।
(2) व्यावसायिक महत्त्व :
अर्थशास्त्र का अध्ययन व्यावसायिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है । आय और खर्च, माँग और पूर्ति यह सभी बातें व्यवसाय से जुड़ी हैं । अर्थशास्त्र का अध्ययन प्रत्येक व्यवसाय की आर्थिक गणना में सहायक है । वस्तु या सेवा के सम्बन्ध में कीमत – निर्धारण, साधन तथा कच्चा माल का क्रय-विक्रय, श्रमिक या कर्मचारियों के वेतन निश्चित करने जैसी तमाम बातों सम्बन्धित निर्णय में अर्थशास्त्र का अध्ययन सहायक हैं । जैसे : तीव्र स्पर्धावाले बाजार में कीमत कम करने से ग्राहकों को आकर्षित कर सकते हैं ।
अर्थशास्त्र मूलभूत रूप से आर्थिक निर्णय में सहायक होनेवाला शास्त्र है और उसका व्यावसायिक महत्त्व है । आर्थिक संसार. में मनुष्य के तीन स्वरूप हैं : (1) ग्राहक (2) उत्पादक (3) श्रमिक । इन तीनों स्वरूपों में कम-से कम, आय में अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने का प्रयत्न करता है और आर्थिक सिद्धांत यहाँ उसकी सहायता करते हैं ।